हर किसी का अलग ख़ुदा है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
हर किसी का अलग ख़ुदा है
अब ज़माना बहुत नया है ।
प्यार की बात कर रहे हो
प्यार करना बड़ी ख़ता है ।
जाम भर भर मुझे पिलाओ
ज़हर ये दर्द की दवा है ।
हम से दुनिया ख़फ़ा है सारी
बोलते सच मिली सज़ा है ।
मौत भी जश्न बन गई है
रोज़ होता ये हादिसा है ।
साथ हर बार और कोई
आजकल की यही वफ़ा है ।
झूठ ' तनहा ' से कह रहा है
ये बता सच का हाल क्या है ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब
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