कौन किस तरह जीता , सोचता कोई नहीं ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
कौन किस तरह जीता , सोचता कोई नहीं
बदनसीब जनता को , देखता कोई नहीं ।
हाथ जोड़ कर तुम सरकार से खैरात लो
लूट को अमीरों की रोकता कोई नहीं ।
अब नहीं मिलेगा उनको खुला आकाश जब
पर उड़ान भरने को खोलता कोई नहीं ।
छटपटा रहे जकड़े बेड़ियों में लोग हैं
कुछ रिवायतों को अब तोड़ता कोई नहीं ।
कौम के मुहाफ़िज़ होते नहीं ऐसे कभी
बेज़मीर सारे सच बोलता कोई नहीं ।
दौर नफ़रतों का ऐसी सियासत देश की
चोर सब सिपाही हैं मानता कोई नहीं ।
देशभक्त होने का टांग तमगा जो लिया
कौन दे गया ' तनहा ' पूछता कोई नहीं ।
2 टिप्पणियां:
Bahut khoooob sir👍
दौरे हाज़िर पर बढ़िया शेर👌👍
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