एक दिन ज़िंदगी मुझे दे दे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
एक दिन ज़िंदगी मुझे दे दे
पल दो पल की ख़ुशी मुझे दे दे ।
क्यों है रूठी नहीं पता मुझको
कुछ तेरी बंदगी मुझे दे दे ।
प्यार बिन कुछ कभी नहीं मांगा
सब नहीं इक वही मुझे दे दे ।
राह सच की नहीं है आसां पर
चल सकूं दिल्लगी मुझे दे दे ।
लोग अपने हैं देश अपना सब
आशिक़ी इक यही मुझे दे दे ।
जिस से सारा जहां रहे रौशन
सुरखुरु रौशनी मुझे दे दे ।
सबको खुशबू सदा मिले जिस से
फूल सी ताज़गी मुझे दे दे ।
लोग मेरी हंसी उड़ाते हैं
और दीवानगी मुझे दे दे ।
बस ये हसरत बची हुई ' तनहा '
कुछ न दे सादगी मुझे दे दे ।
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है... एक दिन ज़िंदगी.👍लोग मेरी हँसी उड़ाते हैं👌👌👌
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