जून 26, 2023

POST : 1684 सुनो गर दास्तां तुमको सुनाएं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

     सुनो गर दास्तां तुमको  सुनाएं  ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

सुनो गर दास्तां तुमको सुनाएं  
तुम्हें हम मेहरबां अपना बनाएं ।

नज़र आये नया कोई  सवेरा   
डराने लग गई काली घटाएं ।
 
सभी इंसान हों इंसानियत हो   
यही मज़हब चलो अपना बनाएं ।  
                                           
है दिल ऊबा हुआ तनहाइयों से
कोई अपना मिले घर पर बुलाएं ।

हमें रुसवा नहीं करना है उनको  
किसी को ज़ख्म कैसे हम दिखाएं ।

चलेंगे साथ मिलकर ज़िंदगी भर  
सभी शिकवे गिले हम भूल जाएं ।

तुम्हारा साथ मिल जाए हमें तो
मुहब्बत क्या ज़माने को दिखाएं । 
 
   {  1973 की लिखी अपनी  पहली ग़ज़ल को सुधारा है फिर से   }