सुनो गर दास्तां तुमको सुनाएं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
सुनो गर दास्तां तुमको सुनाएं
तुम्हें हम मेहरबां अपना बनाएं ।
नज़र आये नया कोई सवेरा
डराने लग गई काली घटाएं ।
सभी इंसान हों इंसानियत हो
यही मज़हब चलो अपना बनाएं ।
है दिल ऊबा हुआ तनहाइयों से
कोई अपना मिले घर पर बुलाएं ।
कोई अपना मिले घर पर बुलाएं ।
हमें रुसवा नहीं करना है उनको
किसी को ज़ख्म कैसे हम दिखाएं ।
चलेंगे साथ मिलकर ज़िंदगी भर
सभी शिकवे गिले हम भूल जाएं ।
तुम्हारा साथ मिल जाए हमें तो
मुहब्बत क्या ज़माने को दिखाएं ।
1 टिप्पणी:
Bhut khoobbb
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