ग़ुलामी हमारी पसंद रही है ( इतिहास भूगोल से कथाओं तक )
डॉ लोक सेतिया
लिखने लिखवाने की बात नहीं है समझने और समझाने की बात है । हम पर कोई हुकूमत कर सके दुनिया में किस की औकात है । आगे आगे देखिए होता है अभी तो बस इक शुरुआत है हम खुश हो कर कहते हैं जोरू के हैं ग़ुलाम शर्म की क्या बात है । हम शूरवीर दुश्मन को ख़ाक में मिलाने वाले , अपनी आज़ादी का जश्न मनाने वाले , महान पूर्वजों की संतान हैं शेर की मांद में घुसकर उसे मज़ा चखाने वाले , कायरता से नहीं कोई रिश्ता नाता रहा किसी ताकत से कभी नहीं घबराने वाले । माना हमारी फितरत नहीं भयभीत करना मगर हम नहीं किसी से डर जाने वाले । हमारे देश में करोड़ों देवता बसते थे ईश्वर कितने अवतार लिया करते थे हम किसी से कम नहीं जिनको नहीं पता नादान हैं उनको समझाने वाले । युग पहले हमारे पर ब्रह्मास्त्र थे पुष्पक विमान से पर्वत को उठाने संजीवनी लाने वाले भगवान थे संजय जी के पास कहीं दूर लड़ी जा रही महाभारत को देखने सुनने और धृतराष्ट्र जैसे शासक को बताने वाले ज्ञानचक्षु थे । अचूक निशाने पर लगते तीर थे अग्निबाण से जाने क्या क्या पास हमारे था बड़े विशाल थे फिर भी महीन थे । किसी को पत्थर बना दिया किसी को शिला से वापस जिला दिया हमने अनहोनी को कर के दिखा दिया सोने की लंका को आग लगा कर जला दिया । सोने का हिरण इक माया था छलावा था भगवान भी जानते थे ज़िद थी अर्धांगनी की जादू चला दिया । रावण बड़ा ज्ञानवान था शूर्पणखा की बात से परनारी पर बुरी नज़र डाल कर कर बैठा जो गुनाह सब फल तपस्या के क्षण में गंवा गया । हां सब बिलकुल सच है बस यही झूठी बात है किसी मुगल शासक ने हमको अपना ग़ुलाम बना लिया या किसी ब्रिटिश राज ने हमारे देश पर अपना सिक्का चला लिया और हमसे अपनी रानी के गुणगान का गीत लिखवा लिया । देश सोने की चिड़िया था हमने शाख शाख पर उल्लू बिठा दिया गुलशन को बर्बाद करने को दुश्मन की क्या ज़रूरत खुद हमने बाड़ बन कर सारा खेत खा लिया ।
ऊपर सिर्फ भूमिका लिखी है सोचने समझने को कि ग़ुलामी कोई अभिशाप बन कर नहीं मिली हमको बल्कि हमको ग़ुलाम होना इतना रास आया कि भले देश को विदेशी शासकों से मुक्ति मिल गई देश आज़ाद हो गया हम लोग मानसिक दासता से पीछा नहीं छुड़ा सके । किसी न किसी की चरणवंदना कर हमारे मन को परम सुख और आनंद की अनुभूति होती है तभी हमने कितने और कैसे कैसे खुदा बना लिए हैं । कैफ़ी आज़मी की इक नज़्म कितनी बार दोहराई है इक बार और सही । कुछ लोग इक अंधे कुंवे में कैद थे और भीतर से ज़ोर ज़ोर से शोर कर आवाज़ दे रहे थे , हमको आज़ादी चाहिए , हमको आज़ादी चाहिए । जब उनको बाहर निकाला गया तो घबरा गए रौशनी से उनकी आंखें चुंधिया गईं और उन्होंने वापस कुंवे में छलांग लगा दी । और फिर वही शोर मचाने लगे कि हमें आज़ादी चाहिए हमें रौशनी चाहिए ।
महानायक कहलाते हैं जो इतिहास को रचते हैं इतिहास को बदला नहीं जा सकता है भूगोल को बदल सकते हैं जो घटा उसको झुठलाना खुद वास्तविकता से नज़रें चुराना है । गौरवशाली इतिहास से सीख कर बहुत कुछ कर सकते हैं और जो भूल जो गलतियां इतिहास में दर्ज हैं उन से सबक लेकर भविष्य में दोहराना नहीं है ऐसा प्रयास कर सकते हैं । देश का विभाजन गांधी जी की हत्या आपत्काल और शासकों की मनमानी या तमाम घोटाले दंगे फसाद भ्र्ष्टाचार बहुत कुछ हैं जो दाग़ हैं और दाग़ अच्छे नहीं लगते ये विज्ञापन धोखा है अपने फायदे को , लेकिन जब दाग़दार लोग सत्ता को भाते हैं बहुमत साबित करने को काम आते हैं तब तमाम आदर्श खोखले साबित होते हैं और इक काला अध्याय लिखवाते हैं । कभी इक ईस्ट इंडिया कंपनी को घर बुलाया था नतीजा बड़ी देर से समझ आया था आजकल किस किस कंपनी किस किस साहूकार का चलता बढ़ता साम्राज्य है बस उन्हीं का भाग्य जनता का दुर्भाग्य है । ये भविष्य की इक तस्वीर है रूठी हुई अपनी तकदीर है नहीं दिखाई देती कोई तदबीर है ।
1 टिप्पणी:
हमारी फितरत के ऊपर बढ़िया लेख
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