अप्रैल 11, 2023

वैधानिक चेतावनी ख़तरा है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

     वैधानिक चेतावनी ख़तरा है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

बात सबको भाई , दूल्हे ने सीटी बजाई , दुल्हन ने पिस्टल से गोली चलाई , हमको इक पहेली याद आई । किसी ने ठोकर खाई बच गया उपरवाले ने जान बचाई , पूछा उस से शादी जब थी मैंने रचाई क्यों नहीं तब समझाई सच्चाई , फंस गया मैं राम दुहाई । तमाम तरह की चेतावनियां हर जगह दिखाई देती हैं  शराब सिगरेट से दवाओं खाने पीने के पदार्थों से सड़क पर सुरक्षा की बात समझाने को और तो और आजकल चोर तक को सावधान रहने की हिदायत देते है सीसीटीवी कैमरे की सूचना लिखी हुई मिलती है । ख़तरे ज़िंदगी का हिस्सा हैं और बहुत लोग जानते हुए भी ख़तरे मोल लेते हैं सच लिखना भी ख़तरनाक़ होता है समझदार सबक सिखलाते हैं कड़वे सच पर झूठ की चाशनी लगा कर परोसते हैं लोग खाते हैं मुस्कुराते हैं व्यंग्य लिखना आसान नहीं चुटकुले से काम लेते हैं अख़बार में हर सप्ताह कॉलम छपवाते हैं नाम शोहरत ईनाम ख़िताब पाते हैं शोकेस में सजा कर घर की शान ओ शौकत और रौनक बढ़ाते हैं । बधाइयां देने वाले फ़ल फूल मिठाई लाते हैं इक फोटो साथ करवाते हैं सोशल मीडिया पर लगाकर अपनी औकात बनाते हैं । ख़तरों के खिलाड़ी हम नहीं हैं शादीशुदा बंदे हैं जिनकी बनाई रोटी खाते हैं उनको सब समझते हैं भले हम उनको कैसे भी लगते हैं हम नहीं झूठ बोलते तुम से अच्छा कोई नहीं डायलॉग हर बार दोहराते हैं । ये बात सच है उनको भी यही लगता है कुछ और बात माने नहीं माने इस बात को मान जाते हैं । शादी का लड्डू खाने वाले और नहीं खाने वाले कहते हैं जानकार दोनों पछताते हैं ये अजब पहेली है अनसुलझी रहने देते हैं वैधानिक चेतवनी की बात को आगे बढ़ाते हैं चलो उस बारात में शामिल हो जाते हैं ।    
 
ढोल बजा बैंड बजा और बजने लगी शहनाई दुल्हन दूल्हे संग नाची झूमी ज़रा भी नहीं शर्माई सीटी बजाई दूल्हे ने दुल्हन ने गोली चलाई । पंडित जी नहीं घबराए सबको विवाह की आधुनिक काल की नई रीत है ये बात समझाई । दूल्हे राजा को समझ आ गया भविष्य में कभी सीटी बजाई तो दुल्हन जानती है पिस्टल चलाना सीटी की आवाज़ पर गोली की आवाज़ भारी पड़ती है समझे राजा जंवाई । शादी से पहले सावधान करना ज़रूरी है डरते हो तो वक़्त है भाग सको तो भाग लो वर्ना गोली की आवाज़ को रखना याद समझ नहीं पाओगे कब शामत आई अपनी बात सब को ख़ास लगती है और साधारण सी बात है कहते हैं जब हो पराई । विवाहित जीवन सुंदर सपना लगता है असलियत होती है बड़ी कठिनाई आपको लगता है सामने कुंवा है पीछे भी है गहरी खाई । चलती नहीं कोई चतुराई होशियारी जिस ने दिखलाई उल्टा उसने मुंह की खाई । हमने बस इक उनको देखा जिन्होंने घर बार छोड़ खाक़ छानी गलियों की किस्मत उनकी जब रंग लाई आख़िर माना की थी शादी नहीं निभाई भाई है तन्हाई । मन की बात सबको सुनवाई फिर भी समझे नहीं जो उनकी समझ अपनी जनाब ने खैर मनाई , जाओ जो करना कर लो हरजाई ।  इक राज़ है उनकी बात नहीं जानता कोई भी किस लिए अपनी नई नवेली दुल्हन को बीच मझधार छोड़ आये थे बड़ी देर बाद असलियत उनकी समझ आई है । बंदे की यही आदत उसकी चतुराई है किरदार बदलता रहता है कभी चोर कभी सिपाही कभी राजा कभी भिखारी कभी शहंशाह कभी फ़क़ीर होने का दम भरता है मगर वास्तव में हर कर्तव्य अपने किरदार का फ़र्ज़ निभाने से डरता है सब कुछ कर सकता है यही सभी समझते हैं और वो कुछ भी नहीं करता बस इक यही काम करता है । खुद नहीं पीता न किसी को पिलाता है पीने नहीं देता ख़ाली जाम भरता है और मस्ती में उस भरे जाम को पत्थर से टकराता है , शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है यही गीत उसको सबसे अधिक भाता है । ख़ाली जाम उस मयकदे से हर प्यासे को मिलते हैं प्यास नहीं मिटाता प्यासा रखता है और प्यास को बढ़ाता है । ये खेल राजनीति कहलाता है उसको बड़ा मज़ा आता है अपने हुनर पर उसको गर्व है बड़ा इतराता है ।  

सरकार ने तलाक पर बड़ी गहराई से विचार विमर्श किया और नियम कायदा कानून बनाया है , तलाक की तरह शादी को लेकर भी चिंतन किया जाना ज़रूरी है । नियम बना सकते हैं विवाह करने से पहले भविष्य की तमाम बातों पर ध्यान दिलाने को इक चिन्ह और इक स्लोगन  शादी कार्ड से लेकर विवाह स्थल तक लगाया जाना आवश्यक हो सुरक्षित जीवन के लिए सावधानी भली होती है ।