चाय की कहानी उसकी ज़ुबानी ( अजीब दास्तां ) डॉ लोक सेतिया
चाय की चुसक्कियां लेते लेते लिख रहा हूं सामने भरी प्याली में गर्म गर्म चाय है इस हाथ टाइपिंग उस हाथ कप लिए। ये ज़रूरी था चाय की शर्त थी बस हम दोनों सबसे अलग इक साथ होंगे तभी अकेले में खुलकर बातें होंगी। चाय जैसी कोई नहीं है हुई नहीं होगी भी नहीं कभी भी। चाय इंसान इंसान में भेदभाव नहीं करती है जाने किसने झूठ कहा है चाय की प्याली और होंटों के बीच का फ़ासला इतना है कि कभी कभी सालों लग जाते हैं और प्याली के लबों तक पहुंचने में कितने जोख़िम हैं। चाय चाह का नाम है जहां चाह वहां राह होती है चाय से बिगड़ी बात बन जाती है सर्दी की धूप में चाय पीना लुत्फ़ और बढ़ा देता है तो गर्मी में गर्म चाय ठंडक पहुंचाती है। पत्नी महबूबा दिलरुबा इक प्याली चाय से मान जाती है सुबह की चाय ताज़गी लाती है शाम की चाय आशिक़ाना बनाती है। चाय की चाहत कम नहीं होती कभी ज़िंदगी भर साथ निभाती है बिछुड़ों को मिलाती है सब के मन को भाती है। खुद अपनी ज़ुबानी कहानी चाय सुना रही है कोई केतली रसोई में गुनगुना रही है खुशबू बाहर तलक जा रही है पड़ोसी को जैसे बुला रही है।
मैं नहीं बदली दुनिया बदलती रही है प्याली कभी गलास कभी मग कभी लोटा भर कर कटोरी में डालकर पीना हज़ार ढंग बदले हैं पीने पिलाने वालों ने मेरा मिजाज़ नहीं बदला अंदाज़ नहीं बदला। मेरा साथ छोड़ा प्लेट प्याली का जोड़ा बिछुड़ा प्याली का अकार बदलता रहा मग का भरोसा नहीं कभी कितना बड़ा कितने संगी साथी कभी अकेला अलग अलग हुआ मगर मुझसे जुदा होकर नहीं रहा खुश कभी भी। कॉफी से मेरा कोई झगड़ा नहीं है कड़वाहट मिठास का रिश्ता होता नहीं है मुझे पीने वाले कभी बेवफ़ा नहीं होते हैं ये बात बतानी है कोई लफड़ा नहीं है। बिस्कुट से नाता मेरा सदियों पुराना है नमकीन से भी मुझको रिश्ता निभाना है बारिश में मौसम हो जाता सुहाना है कड़ाही संग टबलर मिल जश्न मनाना है गर्म पकोड़े चाय का रहता ज़माना है। चाय पीने को घर पर बुलाया है शायद मम्मी को बेटी की शादी का ख्याल आया है। चाय ने कितने संबंध बनाये हैं कारोबार कितने लोगों ने चाय साथ साथ पीकर बढ़ाए हैं। कौन है जिसने मुझे नहीं आज़माया है जब कोई नहीं देता साथ चाय ने निभाया है।
पीने को बोतल शराब की भी कितनी हैं शर्बत कितने हैं और सबको लुभाती ढंडी रंग बिरंगी अनगिनत नाम की बाज़ारी जिस्मफ़रोश हैं बर्बाद करती हैं। लस्सी दूध को छोड़ सभी आदमी का सत्यानाश करती हैं। चाय पर कोई ऐसा इल्ज़ाम नहीं है दुनिया में कोई मेरा हमनाम नहीं है। चाय मुहब्बत का पैगाम देती है दोस्तों को बिठाती है साथ चाहे जिस जगह हो भूले नहीं ऐसा ईनाम देती है। घर की होटल की चायखाने की ढाबे की किसी चलते फिरते चायवाले की महंगी नहीं सस्ती नहीं बस गर्माहट देती है ठंडे रिश्तों को पल भर में नया करती है। प्याली खुद नहीं पीती बुझाती है चाह सबकी चाय की मस्ती है शहर गली बस्ती है। चाय के दुनिया में दीवाने बहुत हैं इक इक प्याली को याद अफ़साने बहुत हैं। चाय गर है साथ याराने बहुत हैं कहने को कई महंगे नज़राने बहुत हैं पर चाय की प्याली तूफ़ान खड़े करती है घर घर में रहती है सब चुपके से कहती है पीकर गाओ दिलकश तराने बहुत हैं। चाय की प्याली भी जिनको मिलती नहीं वही समझते हैं कितनी बड़ी कीमत है उसकी। ये मेरी चाय की प्याली नहीं है कहकर ढंडी आह भरते हैं अक्सर लोग।
1 टिप्पणी:
चाय चाह का नाम..👌👍
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