जुलाई 03, 2021

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ( ज़फ़र से जारी है सफ़र ) डॉ लोक सेतिया

 बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ( ज़फ़र से जारी सफ़र ) 

                                       डॉ लोक सेतिया

जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी। बादशाह होकर भी उनकी मुश्किल वही थी और सदियों बाद हमारी भी हालत उन से बढ़कर कठिन है। दुष्यंत कुमार को भी बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार। ये कोई सरकारी फ़रमान की ही बात नहीं है घोषित आपात्काल की बात भी नहीं हालात समाज के ऐसे बन गए हैं कि शोर मचाने की छूट है हर कोई बंद कमरे में बैठा सोशल मीडिया पर भड़ास निकाल सकता है घर की चौखट लांघते ही सोच विचार कर मुंह खोलना होता है। बात किसी अपने से करनी हो या जान पहचान वाले से अथवा अनजान अजनबी से कहने से पहले समझना ज़रूरी है किसको क्या सुनना है बस जिसको जो अच्छा लगता है आपको उस से वही कहना हैं नहीं तो चुप रहना सब सहना है। इस दौर में ख़ामोशी सबसे बड़ा गहना है ज़ालिम को मसीहा क़ातिल को ख़ुदा कहना है उनकी दुनिया में जीना मौत से दुश्वार है। हर कोई लाचार है बंदा गुनहगार है सरकार खुद बेज़ार है इश्तिहार ही इश्तिहार है। राजाओं की सभाओं से धर्म की चर्चाओं में कभी वाद-विवाद होते थे चर्चा में अपने विचार से बात मनवाई जाती थी सच कहना जुर्म नहीं था कोई आफ़त नहीं ढाई जाती थी तीर तलवार मैदान-ए -जंग में चलाई जाती थी। महफ़िल में इक शमां जलाई जाती थी अपनी कही सबकी सुनी समझी और समझाई जाती थी।  
 
मन की बात का ढिंढोरा नहीं पीटा जाता है मन की बात दुनिया से नहीं होती है शोर करना उलझन की बात होती है। राजा बोला रात है रानी बोली रात है , मंत्री बोला रात है सन्तरी बोला रात है , ये सुबह-सुबह की बात है। इधर काली अंधियारी रात को दिन का उजाला कहना है  बस्ती में रहना है तो झूठ को सच कहना है। दोस्तों से फ़ासिले हो गए हैं ख़त्म सब सिलसिले हो गए हैं , आवाज़ गुम हो गई है लब हिले कुछ सिले हो गए हैं। खुद से मुलाक़ात नहीं होती ज़माने के शिकवे गिले हो गए हैं। किसी से दोस्त से पत्नी से भाई बहन खास रिश्ते से उसकी नापसंद बात करना आपसी संबंध को बिगाड़ना है। मीठा खाना सब चाहते हैं मधुमेय की चिंता छोड़ कर झूठी तारीफ भाती है सच सुनते नातों में कड़वाहट भर जाती है यूं अदब से हंसकर मिलते हैं मन में नफरत का ज़हर छुपाए रखते हैं। मुझे आप जैसे लोग पसंद हैं कहते हैं हम आपके दिल में रहते हैं मौका मिलते ही ऊंचे महल ढहते हैं कहने वाले कहते हैं दुनिया के दस्तूर निराले हैं भीतर अंधेरे बाहर उजाले हैं। आज सवाल करते हैं कड़वा सच किसलिए बोलते हैं क्यों सच के तराज़ू पर सभी को तोलते हैं। इक दिन खोलेंगे लबों को भरी सभा में कहेंगे कहां चले गए वो जो वक़्त पर बोलते हैं।
 

 
 
 
 
 
 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Bdhiya lekh...Sch bolna gunaah h...Ha m ha rakhwana chahte hn raja log