बड़ा नामुराद सोशल मीडिया रोग ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया
ये ऐसा मीठा मीठा दर्द है जो हर किसी को अच्छा लगता है पहले , उसके बाद धीरे धीरे मज़ा आने लगता है आखिर लगता है ये मुसीबत बन गया है मगर तब तक नशा बन चुका होता है छोड़ना चाहते हैं छोड़ नहीं पाते हैं। कोई इस से बचा नहीं इंसान से बेजान सरकार तक उलझे हैं फेसबुक व्हाटऍप्स के मायाजाल में। सब से दुनिया भगवान रिश्तों से मोहभंग हो सकता है मुआ यही इक है जिस बिन जीना मुहाल लगता है फरिश्तों की दुनिया है बाकी सब जी का जंजाल लगता है। इंटरनेट नहीं हो डाटा खत्म हो मत पूछो जीने मरने का सवाल लगता है। मैंने ज़िंदगी के दस साल खुद को गंवाया है अब जाकर समझ आया है खोया ही हैं समय बर्बाद किया है नहीं कुछ भी पाया है। एक बार नहीं सौ बार आज़माया है। जिधर देखते हैं बढ़ता जाता ये शाम का साया है हर किसी ने सोच समझ का दीपक खुद ही बुझाया है ये घना अंधियारा हर किसी को बहुत भाया है। सबने औरों को सब कुछ समझाया है कभी किसी को समझ नहीं आया है दवा जानकर मीठा ज़हर खाया है। आपको अपनी कहानी बताते हैं इस दुनिया की तस्वीर बनाते हैं भगवान से बाज़ार तक यहीं मिलते हैं ये कुछ नहीं सिर्फ इक फैला हुआ रेगिस्तान है जिस में कभी गुलशन नहीं खिलते हैं। आज मंच पर आते हैं हर पर्दा उठाते हैं सच और झूठ दोनों को आमने सामने बिठाते हैं फिर दर्द की दास्तां सुनते हैं मगर उदास नहीं होते हैं ख़ुशी जताते हैं हंसते गाते मुस्कुराते हैं ये दिखावे की दुनिया है डीपी खूबसूरत चुनकर लगाते हैं।
आपको हर शख़्स ऑनलाइन दिखाई देता है पढ़ता है जाने कैसी उल्टी सीधी पढ़ाई राज़ कोई नहीं जानता दोस्त दुश्मन भाई भाई दिखाई देता है। मिलते नहीं बात करते नहीं गली से जिनकी गुज़रते नहीं उनको सुबह शाम शुभकामना संदेश भेजते हैं। मुझे बड़े अच्छे सच्चे लगते हैं कुछ लोग हिम्मत वाले जो मुझे पसंद नहीं करते ब्लॉक कर देते हैं अपने दिल की हसरत का पता देते हैं मेरे बारे जो अफ़वाह उड़ा देते हैं ये अल्फ़ाज़ बड़े शायर से उधार लिए हैं ज़रूरी है साफ बता देते हैं। सोशल मीडिया पर सरकार चलती है कितनी बेकार हो तब भी शानदार चलती है झौंपड़ी महल दिखाई देती है अंधों की नगरी काना राजा है जम्हूरियत लंगड़ी लूली है बैसाखियों की महिमा हर बार चलती है। कुदरत की नहीं है किसी और की माया है कुछ भी मिला नहीं किसी को सभी ने खुद को गंवाया है जिस दिन से पड़ा ये मनहूस साया है इक पागलपन सभी पर छाया है समझ कोई नहीं असलियत को पाया है।
पढ़ता सुनता कोई भी नहीं है समझता सच्चाई कोई भी नहीं है गरीब की जोरू सबकी भाभी है बहन कोई नहीं भरजाई किस की कौन है नहीं मालूम किस घर मातम किस घर बजती शहनाई सोचता हरजाई कोई भी नहीं। माता पिता का निधन सोशल मीडिया पर बता रहे हैं जैसे मौत का जश्न मना रहे हैं लाइक देखते हैं कमेंट पढ़ कर जवाब देते हैं कुछ इस तरह दुनियादारी निभाते हैं सारा हिसाब देते हैं। भगवान परेशान हैं क्या हाल किया है भक्तों ने बिना सोचे समझे कोई टकसाल किया है अंधभक्तों ने। इंसान कितने ख़ुदा बन गए है ईमान बेचकर दौलत बनाई है मत पूछो किसी कैसी कमाई है उस तरफ कुंवा इस तरफ गहरी खाई है सबने अपनी रफ़्तार बढ़ाई है। इंसानियत बच नहीं पाई है लाश उसकी हर किसी ने सजाई है। फेसबुक व्हट्सएप्प दोस्ती बढ़ाएंगे दावा झूठा है नफरत बढ़ाई है इक दीवार रिश्तों में खड़ी की है कोई उसका चाहने वाला कोई इसका चाहने वाला दो चोरों ने राजनीति में क्या आग लगाई है। आपसी कोई मतभेद नहीं है दिखाई देता बस छेद नहीं है राजनेता मिल बैठेंगे अवसर मिलते ही हम लड़ते रहेंगे मिलने का कोई अनुछेद नहीं है। लगता हैं हम गुलाम हैं आज़ाद नहीं हैं ख्यालात नहीं कोई जज़्बात नहीं हैं जिनको मसीहा बना लिया सभी ने वास्तव में उनकी कोई औकात नहीं है नेताओं की कोई धर्म जात नहीं है ये बदल हैं जिनकी होती बरसात नहीं है।
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