पशुओं से प्यार इंसान से तकरार ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
न उनकी दोस्ती अच्छी न उनसे दुश्मनी अच्छी। जाने क्या सोचकर मनोविज्ञानिक उन पर शोध कर बैठे अब पछताते हैं क्या जुर्म बेलज्ज़त कर बैठे। चर्चा कर उनके आचार व्यवहार को समझ कर नतीजा निकला उनको खुद अपना इंसान होना अजीब लगता है। बाहर से इंसान लगते हैं अंदर जानवर नहीं शैतान और हैवान रहता है उनको खबर नहीं होती कब उनके भीतर कौन सा जानवर सामने निकलने को बेताब रहता है। कुत्ता बिल्ली चूहा सभी के गुण शामिल हैं लोमड़ी और गिरगिट उनके लिए उस्ताद हैं जबकि शेर होने की उनकी हसरत है गधों से उनका लगाव सबसे बढ़कर है तभी गधे को अपना पूर्वज समझने में उनको संकोच नहीं है। मांसाहारी हैं जानवर को उनकी पसंद का खाना खिलाते हैं खुद उनको ज़िंदा इंसान का लहू पीकर उसकी बोटी बोटी से हड्डियां तक चबाना बड़ा ही मज़ेदार लगता है। इंसान इंसानियत जैसे शब्द उनको ज़रा भी पसंद नहीं हैं खुद अपने आप को जब कभी आईने के सामने खड़ा कर देखते हैं उनको दर्पण में किसी आदमखोर जानवर की छवि नज़र आती है। पशुओं को पालना और अपने इशारों पर नचाना उनको खेल लगता है जिस खेल को खेलकर उनको अपार सुःख की अनुभूति होती है। उनको लगता है शहर गांव में बड़े बड़े मकानों में पशुओं को रहना चाहिए नर्म बिस्तर और गर्मी में ढंडी हवा और सर्दी में हीटर लगे कमरे उनके लिए होने ज़रूरी हैं इंसान को फुटपाथ भी नहीं मिलना चाहिए जंगल जाकर बसना चाहिए।
उनको नहीं मालूम उनके अंदर का इंसान कब मरा पशुओं से प्यार होने से पहले या पशुओं से प्यार करते करते इंसान और इंसानियत को खुद क़त्ल किया उन्होंने। पर अब उनको इंसान देखना अच्छा नहीं लगता है जानवर उनको अपने लगते हैं इंसान किसी और दुनिया के वासी लगते हैं। हर जानवर पशु पक्षी को जैसा चाहे शिक्षित कर उनसे मनचाहा काम करवाना आता है इंसान को लाख कोशिश कर भी उस तरह का नहीं बना पाए जैसा उनको पसंद है। इंसान सवाल करते हैं तकरार करते हैं और उनको तकरार करने वाले बड़े खराब लगते हैं। ये उन्होंने पत्नियों से हुनर सीखा है अपने पतियों को अपना गुलाम बनाकर रखना और उन पर हुक्म चलाकर उनसे हर बात मनवाना मगर कभी न कभी ये पति नाम वाले भी इनकार कर देते हैं लेकिन पशु कभी ऐसा कर ज़िंदा नहीं रहते हैं उनको बीमार पागल घोषित कर मार कर उनका उपयोग कितनी तरह किया जाता है। इंसान की कीमत जीते जी भी कुछ भी नहीं होती और मौत के बाद उसको कोई नहीं चाहता है जबकि जानवर मौत के बाद भी हज़ार काम आते हैं।
आधुनिक होना रईस धनवान और बहुत ख़ास होना सभी चाहते हैं और सब हासिल होने के बाद बस यही महत्वपूर्ण होता है इंसान और इंसानियत से रिश्ते छोड़ पशुओं जानवरों से संबंध बनाना। पुराने समय में कुत्ते घर के बाहर चौखट दरवाज़े पर बैठे होते थे और महमान पड़ोसी जानकर अजनबी लोग घर की बैठक में शोभा बढ़ाते अच्छे लगते थे। इधर मामला उल्टा हो गया है कुत्तों से गले लगते हैं गोदी में बिठाकर चूमते दुलारते हैं इंसान को दूर भगाते हैं धुधकारते हैं झूठी शान बघारते हैं। सुख सुविधा लोभ लालच ने आदमी को इंसान से खूंखार जानवर बना दिया है आजकल बड़े बड़े शहर महानगर में अमीरों की बस्ती में ऐसे लोग अपने जैसे भाई बंधु जानवर पशु पंछी को पालते हैं उनका भरोसा आदमी पर नहीं खुद से बढ़कर पालतू जानवर पर बचा है। यही उनको अपने लगते हैं। जिनको उनसे संबंध रखना हो उन्हें इंसान नहीं जानवर बनना पड़ता है आपको अपने जैसा बनाना उनका मकसद है।
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