ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु गॉड चर्चा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
आपने मंच पर नाटक में जैसा देखा होगा बस ठीक उसी तरह कहीं आसमान या जाने कोई और लोक है वहां सभी धर्म वाले भगवान मिलकर चर्चा कर रहे हैं। एक ही अभिनेता अपना किरदार बदल कभी कुछ कभी कुछ बन जाता है दर्शक समझते हैं कब नायक किस किरदार को निभा रहा है। दुनिया के मंच पर हम सभी भी ज़िंदगी और जीने का अभिनय ही करते हैं शायद खुद अपने किरदार को कभी नहीं समझते कोशिश करते रहते हैं हर किसी को समझने की। समझदारी कहते हैं अपने पागलपन को। समझ नहीं आया तो चलो दर्शक की तरह मंच पर जारी चर्चा विचार विमर्श को ध्यानपूर्वक सुनते हैं। इक धर्म का रूप धारण कर भगवान कह रहा है मैं एक हूं मेरे रंग मेरे चेहरे मेरे तौर तरीके अनेक हैं आज मुझे अपने हर अवतार को धारण कर चर्चा में सभी तरह के ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु गॉड बन कर सभी को लेकर बातचीत करनी है। पलक झपकते ही रूप बदल जाता है दूसरे धर्म वाला भगवान बन कहता है माफ़ करना बीच में टोकना पड़ा है पहले इस युग कलयुग की बात करनी है क्या कलयुग में कोई भगवान होता है कौन अवतार लेता है किस रूप में समझना कठिन है कितने भगवान बन बैठे हैं लेकिन किसी भी भगवान के मानने वालों को मिलता कुछ भी नहीं कोई भी तथाकथित भगवान भक्तों की झोली भरता नहीं है सबकी झोली खाली है भरी हुई झोली वाले अपने भगवान के दर पर आते हैं मगर जाते हैं लौट कर खाली झोली हाथ जोड़े निराश हमेशा।
अचानक तीसरे धर्म वाले भगवान दिखाई देते हैं कहते हैं कलयुग में मसीहा पय्यम्बर नहीं जन्म लेता कभी भी। शैतान को भगवान ने ये वरदान दिया हुआ है कि लोग दुनिया कलयुग में उसको ही अपना विधाता भाग्यविधाता समझ उसका गुणगान करेंगे। भगवान बेबस होकर ये तमाशा देखते रहते हैं लोग सब जानकर देख कर समझ कर भी शैतान की अनुचित अनैतिक बातों को भी सही मानकर उसकी जयजयकार करते हैं। जिस जिस को मसीहा भगवान पय्यम्बर समझते हैं वही उनको ठगता है लूटता है धोखा देता है तब भी उसी की वंदना करते हैं। रोज़ टीवी चैनल वाले इस समय की माहमारी का कारण वायरस के नये नये अवतार की बात करते हैं भला कीटाणु विषाणु के भी कभी अवतार होते हैं मगर देखो हर कोई भगवान से बढ़कर कोरोना के नाम की माला जपता है। जिसकी माला जपते हैं उस से ही बचना भी चाहते हैं। फ़िल्मी लगता है ख़लनायक को खुश करने को उसकी महिमा का गुणगान करते हैं।
किसी अभिनेता को सदी का महानायक नाम दिया है किसी को धन दौलत का अंबार लगाने पर उसकी बढ़ाई करते हैं टीवी अख़बार वाले खुद को सबसे महान सच्चा बताकर उल्लू बनाते हैं। ये सभी चोर चोर मौसेरे भाई हैं मिलकर बांटकर खाते मौज मनाते हैं झूठ का दरबार लगाकर सच के पैरोकार कहलाते हैं। मापदंड इनके सुविधा से बदल जाते हैं जिसको गुंडा बदमाश कहते हैं उसी की हाज़िरी लगाते हैं उसके पांव दबाते हैं। भोगी लोभी योग सिखाते हैं खूब धन कमाते हैं जनता को रोगमुक्त होने के उपाय समझते मगर खुद दवा की दुकान चलाते हैं। समझ नहीं आता क्या किसको समझाते हैं खुद को सच्चा और बाकी सभी को झूठा बताते हैं इस तरह खोटा सिक्का अपना दुनिया भर में चलाते हैं। ऐसे लोग भिखारी से जाने कैसे शासक बन जाते हैं देश को विकास और भले वक़्त की बातों से बहलाते हैं मगर वास्तव में सत्यानाश विनाश और बर्बादी लेकर आते हैं। कलयुग में हंस दाना दुनका चुगता है कौवे मोती खाते हैं। जनता की झौपड़ी भी नहीं रहती और सरकार जनाब आलिशान घर महल दफ्तर बनवाते हैं। मंच पर कोई नहीं है नेपथ्य से आवाज़ आने लगी है भगवान को गहरी नींद आ गई है उसको नहीं जगाते लोरी गाकर सुलाते हैं। आखिर में इक फ़िल्मी भजन से कथा का अंत कर विराम देते हैं और घर पर रहो सुरक्षित रहो दो गज़ की दूरी मास्क है ज़रूरी का संदेश सुनते हैं खामोश होकर नाटक के दर्शक अपने स्मार्ट फोन पर समय बिताते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें