खोखले आदर्श झूठी संवेदनाएं ( आधुनिक समाज ) डॉ लोक सेतिया
आंसू बहाना रो देना वास्तव में कायरता नहीं होता है मगर तब जब हमारी भावनाएं सच्ची हों जो पल भर को नहीं हमेशा स्वभाव में नज़र आएं। बार बार देखते हैं टीवी शो में किसी की दुःख भरी घटना सबकी पलकें भिगो देती है तथाकथित नाम वाले लोग मंच पर टिशू पेपर से अपने आंसू पौंछते हैं लगता है सारे जहां का दर्द हमारे सीने में है। मगर ऐसा वास्तविक जीवन में होता नहीं है हम वही दर्शक बेहद निष्ठुर बन जाते है अपने करीब कुछ भी घटता देखते हुए। और टीवी पर किसी को झट से लाख रूपये का चैक देने वाले किसी गरीब को मांगने पर भीख भी नहीं देते है। जनाब आर पी महृषि जी कहते हैं " ये हादिसा भी हुआ इक फाकाकश के साथ , लताड़ उसको मिली भीख मांगने के लिए। अजीब बात है असली भिखारी नहीं मिलते नकली भिखारी हर तरफ दिखाई देते हैं कौन किस किस बात का चंदा मांगता है और चंदे से क्या शान से रहता है कोई हिसाब नहीं है। भिखारी हैं जो नौकरी काम करने का वेतन सुविधाएं पाने के बाद रिश्वत और बेईमानी करते हैं देश समाज अपने कर्तव्य के साथ। लेकिन धर्म का चोला पहन मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे जाकर भगवान तक को अपने पाप का भागीदार बनाते हैं अमर अकबर ऍंथोनी के अमिताभ बच्चन की तरह लूट चोरी का आधा दान पेटी में डालकर खुद को मसीहा समझते हैं।
दावे करते हैं सत्ताधारी राजनेता जनता का कल्याण और गरीबी मिटाने को लेकर जबकि आज़ादी के 74 साल होने को हैं और आधी आबादी भूखी है अधिकांश को बुनियादी सुविधाएं नहीं हासिल हैं। कारण ये नहीं कि देश के पास संसाधन नहीं हैं बल्कि वास्तविक कारण ये है कि कुछ लोगों को अधिक पाने की हसरतें खत्म ही नहीं होती है शासक वर्ग रईस लोग धनवान कारोबारी उद्योगपति फिल्म टीवी वाले टीवी चैनल अख़बार से समाज सेवा और धर्म की दुकान चलाने वाले महल बनाने और देश विदेश जाकर अपना डंका पीटने पर पैसा बर्बाद करते हैं। इक पागलपन है नाम शोहरत और किसी तरह इतिहास में ख़ास होने को दर्ज होने को। सरकार आलीशान भवन सभागार और ऊंची मूर्तियां जाने क्या क्या आडंबर करती है फिर भी सड़क पर सोशल मीडिया पर इश्तिहार छपवाने पर बेतहाशा धन खर्च किया जाता है खुद के गुणगान पर। असल में अच्छे कार्य करते तो इनकी ज़रूरत नहीं पड़ती वास्तव में शोहरत पाने को इन बातों की कोशिश करना खुद किसी अपराध से कम नहीं है।
लोग समझते हैं अमुक नेताओं ने अधिकारी कलाकार खिलाडी धनवान लोगों ने देश समाज को दिया है जबकि सच इस के विपरीत है उन्होंने जनता से पाया है और केवल दिखाने को नाम भर को वापस जनता को देकर उपकार एहसान करने की बात कहकर अपराध किया है। आपको बड़ी बड़ी कथाओं कहानियों से सबक सिखलाने वालों ने खुद कोई सबक सच्चाई ईमानदारी का सीखा नहीं है अन्यथा अपने लिए नहीं देश के नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने को काम करते। जिन को लाखों करोड़ के शाही विमान और शानदार घर दफ्तर की चाहत है उनको गरीब जनता की भूख रोटी शिक्षा स्वास्थ्य की चिंता करनी चाहिए थी। ये सब राजा बने बैठे हैं कोई राजा नहीं हैं सेवक हैं खुद कहते थे चौकीदार हैं फिर मालिक बन बैठे किस तरह। चलो आपको फिर इक बार असली और नकली धर्म दान की पहचान करवाते हैं। रहीम का नाम सुना तो होगा , कवि के साथ साथ खानदानी नवाब थे जिनको ज़रूरत होती उनकी सहायता किया करते थे। उनकी सभा में इक कवि गंगभाट देखा करते कि रहीम सहायता देते समय अपनी आंखों को झुकाए रहते थे। उनको समझ नहीं आता था नवाब जी ऐसा क्या सोचकर करते हैं। इक दिन उन्होंने दोहा पढ़कर ये बात रहीम से पूछ ली।
सिखियो कहां नवाब-जू , ऐसी देनी दैन
ज्यों ज्यों कर ऊंचों करें , त्यों त्यों नीचे नैन।
रहीम ने उनके सवाल का जवाब अपना दोहा पढ़कर दिया।
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