नवंबर 06, 2016

अपनी अपनी सुविधा के आंकड़े ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

    अपनी अपनी सुविधा के आंकड़े ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

                   9 5 प्रतिशत लोग खुश हैं , मंत्री जी का बयान है आज की खबरों में। आप ऐसा कदापि नहीं कह सकते कि उनके आंकड़े सही नहीं हैं। वो साबित कर देंगे उनके आंकड़े तथ्यों पर आधारित हैं। कितनी संख्या है कुल और विरोध करने कितने आये आप खुद गिनती कर लो , हो गया उनका गणित सही। जो विरोध करने नहीं आते वो सभी सरकार का समर्थन करते हैं। आप नहीं पूछ सकते फिर आपका समर्थन करने वाले आपके समर्थन में भी सामने आते क्यों नहीं। ये सुविधा के आंकड़े हैं। कोई साबुन 9 9 प्रतिशत किटाणु  नष्ट करने का दावा करता है किसलिये , जब कोई दिखला दे कि आपका साबुन उपयोग किया तब भी किटाणु  बचा रहा , तब उनका एक प्रतिशत काम आता है उनको सही साबित करने को। मीडिया वाले सर्वेक्षण करते हैं हर दिन , हज़ार लोगों से पूछते हैं या उनके एस एम एस आते हैं , और तय हो जाता है करोड़ों लोगों का अभिमत। ये झूठ हो सकता है तब भी प्रमाणित सत्य यही है। वास्तविक सच खुद को बेबस पाता है क्योंकि उसकी प्रमाणिकता साबित ही नहीं हुई होती। टीवी के रियल्टी शो का सच यही है। किसी खबर पर समाचार टीवी चैनल की असलियत भी यही है। सरकार पांच साल तक इसी खुशफहमी में जीती हैं , उनकी सभाओं में जय जयकार वाले अधिक होते हैं और काली पट्टी वाले बेहद कम। लोकतंत्र संख्या का खेल है , समस्या ये है कि मतदान में गणित गलत साबित हो जाता है क्योंकि खामोश रहने वाले भी चुप चाप अपना मत ज़ाहिर कर देते हैं।

                      सरकारी आंकड़े अजीब होते हैं , जो वो बताते हैं वो जनता को वास्तव में नज़र आता ही नहीं। उनकी योजनाएं उनका प्रचार कुछ भी ज़मीन पर दिखता नहीं , उनको देखने को सत्ता का चश्मा पहनना ज़रूरी है। इक खबर और छपी है , सत्ताधारी दल के नव-नियुक्त अधिकारी ने कई लोगों को गोली मार कर कत्ल कर दिया , दल का दावा है अपराधियों को शामिल नहीं करने का। दल कोई भी हो सत्ता मिलते नेता कहलाते ही भीतर का गुंडा बाहर आ जाता है। बड़े बड़े नेता जब भी किसी शहर जाते हैं उनके समर्थक शिकायत करते हैं कि प्रशासनिक अधिकारी उनकी बात नहीं मानते , और वे अफ्सरों को निर्देश दे जाते हैं अपने दल के लोगों की बात मानने को। सरकार केवल निर्वाचित विधायक सांसद ही नहीं चलाते , सत्ताधारी दल का हर कार्यकर्ता खुद को शासक मानता है कि दल की सरकार है। सेवक कोई नहीं है , नेता हों चाहे मंत्री या दल में शामिल आम कार्यकर्ता सभी शासक की तरह आचरण करते हैं। अपराधी नेताओं का प्रतिशत भी वो आंकड़ा है जो किसी को समझ नहीं आता , जिन पर मुकदमें हैं वो खुद को निर्दोष बताते हैं , जो कभी पकड़े नहीं गये लोग उनकी शराफत से डरते हैं।

                               आंकड़ों की भाषा को समझना आसान नहीं है , शिक्षा , स्वास्थ्य , गरीबी , ख़ुदकुशी करने , स्वच्छता अभियान से खुले में शौच बंद होने तक सभी झूठे होने के बावजूद सरकारी प्रमाण पत्र हासिल किये हुए हैं। मेरा शहर खुले में शौच मुक्त घोषित ही नहीं पुरस्कृत भी है , मगर मेरे घर के ठीक सामने ग्रीन बैल्ट कुछ और दिखाती है। जो सच मुझे नज़र आता है वो प्रमाणित नहीं है , प्रशासन के पास प्रमाण है ज़िला खुले में शौच की समस्या से मुक्त है। झौपड़ी वाले पूछते हैं क्या उनको शौचालय उपलब्ध हो चुका है , अगर है तो कोई उनको दिखला दे।आज तक घोटालों पर बहुत कुछ लिखा और समझा समझाया जा चुका है , आपको आंकड़े मिल जायेंगें किस घोटाले में कितना धन लूटा गया। मगर अभी तक किसी ने आपको सब से बड़े घोटाले के बारे शायद ही बताया होगा। वो कब से हो रहा है और आज भी जारी है। जानते हैं क्या है वो घोटाला , सरकारी विज्ञापनों का घोटाला। उन पर बिना किसी ज़रूरत या जनता की भलाई के करोड़ों करोड़ रूपये सभी सरकारें हर साल बर्बाद करती रही हैं केवल अपने महिमामंडन की खातिर। इस गरीब देश में जनता का इतना धन व्यर्थ खर्च करना किसी अपराध से कम नहीं है। सूचना के अधिकार का उपयोग कर कभी पता लगायें आज़ादी के बाद से आज तक कितना धन फज़ूल बर्बाद किया गया है। आप चौंक जाओगे। 

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