जुलाई 02, 2024

ख़ामोश रहो हसरत है उनकी ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      ख़ामोश रहो हसरत है उनकी ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया  

उनकी सियासत मुसीबत है हमारी सत्ता को लगी है इक ऐसी बिमारी , जनता की बड़ी भूल जो की उन्हीं से है यारी । सहयोग करें उनका फ़रमान है जारी , चाकू की शिकायत है मदद करती नहीं पसलियां हमारी ,  शायर दुष्यंत कुमार पढ़ पाये नहीं आदेश सरकारी । जाने खुद आये या बुलाया गया उनको खफ़ा थे किसी बात पे मनाया गया उनको सब लोग गुनहगार हैं , ये उनकी अदालत है कुछ भी किसी से पूछा नहीं सुना नहीं , बस फैसला था उनका सुनाया गया सबको । तलवार हैं या कि खऱीदार हैं , जाने किस किस बात से रूठे हुए खुद सरकार हैं , अपने मुंह मियां मिट्ठू मियां अपना पक्ष रखता इश्तिहार हैं जनाब , आपका नसीब हाथ जोड़ खड़े हैं सभी चुपचाप ख़ानाख़राब । वो आए कि बुलाए गए कोई फर्क नहीं पड़ता है , लेकिन वो शिकायत सुनने को नहीं खुद शिकयत करने को उत्सुक थे । शिकायतें शिकवे उनको सभी से थे कम नहीं जाने कितने थे लेकिन सब से बड़ी शिकायत थी लोग खामोश होकर उनकी सुन कर यकीन नहीं करते यही उनकी बेचैनी है उनकी नींद में खलल पड़ता है , नींद क्यों रात भर नहीं आती । जाने कब से उनको यही महानता लगती थी कि लोग ही नहीं दुनिया तक उनसे डरती है , किसी को भयभीत करना शूरवीरता नहीं होती है शूरवीर डर रहे लोगों को निडरता का भरोसा देते हैं सत्य हमेशा निडर होकर सच के पक्ष में खड़े होने का पाठ पढ़ाता है ।

सत्ता का रोग ही ऐसा है कि शासक बनते ही सभी अपने बेगाने लगने लगते हैं केवल हां जी कहने वाले चाटुकार अपने परिजन लगते हैं । ऐसा भी होता है हम खुद कुछ सोच कर किसी को आदर दे कर आमंत्रित करते हैं , मगर हम नहीं जानते कि जब किसी को सत्ता मिलती है तो वो शालीन होकर आपकी गरिमा की परवाह नहीं रख अपनी असलियत दिखला ही देता है । शायद शासक बनते ही सभी का आचरण बदल जाता है और जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि खुद को जनसेवक नहीं दाता समझने लगते हैं । अख़बार में पढ़ने को मिलता है जनता की समस्याओं का निवारण करने को आयोजित सभाओं में किसी की परेशानी समझने की जगह शिकायत करने पर ही नाराज़गी जताई जाती है और जैसे फटकार लगाई जाती है । जनता सरकार बनाती है और जनता या कोई भी वर्ग शासक से कोई ख़ैरात नहीं चाहते हैं उनकी बात सुनना उनको इंसाफ़ दिलवाना जिनका कर्तव्य है उनकी भाषा अहंकारी होना बेहद आपत्तिजनक है । बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं घर की बर्बादी के आसार नज़र आते हैं । आपको इतिहास बदलना है तो कुछ सार्थक कर दिखाना होगा सिर्फ बड़बोलापन किसी को इतिहास में जगह नहीं दिलवा सकता है ।

जुर्म किया जो उन पर ऐतबार किया उम्र भर बस यही इंतिज़ार किया , अभी तलक जनता को इतनी बात नहीं समझ आई कि चोर चोर होते हैं भाई भाई । सुनानी बांसुरी थी बजाने लगे वो शहनाई लगा जैसे विदाई की घड़ी करीब आई मिला दूल्हा नहीं दुल्हन नहीं यहां है सिर्फ तन्हाई । सलीके से बात नहीं करते समझेंगे क्या किसी की परेशानी जिनको हालत से होती है परेशानी वार्तालाप करना ही बेमानी वहां जाना है नादानी जहां क़द्र नहीं अपनी पहचानी । भले वो कितने बड़े सिंहासन पर बैठे हों अगर सभी का आदर नहीं करते बल्कि कोशिश करते हैं नीचा दिखाने खामोश करवाने की तो ध्यान देना  तुलसीदास जी कहते हैं :-
 
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं स्नेह
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह ।

सरकार है बेकार है लाचार है ( ग़ज़ल ) 

डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सरकार है  , बेकार है , लाचार है
सुनती नहीं जनता की हाहाकार है ।

फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को
कहने को पर उनका खुला दरबार है ।

रहजन बना बैठा है रहबर आजकल
सब की दवा करता जो खुद बीमार है ।

जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को
अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है ।

इंसानियत की बात करना छोड़ दो
महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है ।

हैवानियत को ख़त्म करना आज है
इस बात से क्या आपको इनकार है ।

ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां
देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है ।

है पास फिर भी दूर रहता है सदा
मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है ।

अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे
"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है ।  
 
 जो मिल गया वो अपना है और जो टूट गया वह सपना है।~ Heart Touching  Motivational Video ~"ज्ञानहोनाचाहिए"

जुलाई 01, 2024

लिखने को अल्फ़ाज़ जज़्बात अंदाज़ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

  लिखने को अल्फ़ाज़ जज़्बात अंदाज़ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

लिखना आसान नहीं , समझना मुश्किल है , लिखना क्या है । कभी उम्र भर लिखने से भी जो अंदर है बात अधूरी रह जाती है तो कभी चंद मिसरे चार लाइने इतना कुछ समेटे हुए होते हैं कि अर्थ समझने में ज़माना लगता है । आपको दिल किसी से लगाना लगता है झूठा अफ़साना लगता है लिखने वाले को जीने मरने का बस वही इक बहाना लगता है । सार्थक लेखन की दुश्वारियां हैं दुनिया फूलों के गुलशन चाहती है प्यार मुहब्बत की कहानियां पढ़ती है , किताबें जिस राह से गुज़रती हैं पगडंडी के दोनों तरफ कंटीली झाड़ियां हैं । घायल जिस्म की लिखनी कोई कहानी है प्यास बहुत है समंदर भी है , पीना नहीं खारा पानी है । पाठक कब किताब पढ़ते हैं कीमत कितनी है बस वही हिसाब रखते हैं सवालों की झड़ी लगाते हैं लिखना कितना ज़रूरी था वही सवाल करते हैं , सवालों का जवाब रखते हैं । हम जो लिखना हो साफ शब्दों में लिख देते हैं , कुछ बहुत ही लाजवाब लिखते हैं पर्दे में रखते हैं हुस्न की बातें चेहरे पर नकाब रखते हैं , आजकल हसीन लोग कितने रंग के ख़िज़ाब रखते हैं । इश्क़ की किताब पढ़ने वाले छुप छुप कर दुनिया से रहने वाले रुख पर अपने हिजाब रखते हैं । सच लिखना झूठ लिखना सर पर किसी के ताज लिखना किसी के पांव की धूल लिखना लोग जो चाहते वही बात लिखना मतलब है कि , सब फ़िज़ूल लिखना , किसी मज़बूरी को गुनाह लिखना और किसी जुर्म को यही है उसूल लिखना , क़ातिल को मसीहा कहना क़त्ल जिस का हुआ उसकी भूल लिखना । लिखना कुछ भी लिख देना आसान है जो नहीं लिखा गया समझना ज़रूरी है उसे मिटा नहीं सकते छिपाना आसान नहीं है । अल्फ़ाज़ खामोश हैं जज़्बात बेज़ुबान नहीं है , किस के मुंह में ज़ुबान नहीं है जिस दुनिया में कहीं भी कोई भी आसमान नहीं है उस का रहता बाक़ी निशान नहीं है । अपने दिल का पूरा हुआ अभी तलक इक अरमान नहीं है दुनिया ने लगाया नहीं जो हम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है । 
 
लिखना शुरू होता है जब भीतर कोई भाव उपजते हैं , किसी से चाहत किसी को हासिल करने की हसरत से ईबादत तक दिल कब क्या महसूस करता है , कहना भी हो तो कोई समझने वाला नहीं होता ऐसे में कागज़ पर अपने जज़्बात अल्फ़ाज़ों में पिरोते हैं । ऐसी सुबह जिसकी कभी शाम नहीं होती मुहब्बत कभी बदनाम नहीं होती आरज़ू दिल की रहती है हमेशा पूरी नहीं हो तब भी नाकाम नहीं होती । कोई प्यार दोस्ती रिश्ते पर कोई कुदरत पर कोई पेड़ पौधे पक्षी और उड़ान पर कोई ज़मीन कोई आसमान पर लिखते हैं वतन की आन बान शान पर आदमी के आगाज़ पर ज़िंदगी के अंजाम पर गीत लिखते हैं अपनी तान पर । हर कोई अपने अपने रंग से इक तस्वीर बनाता है कोई धागा जोड़ता है कोई जंज़ीर बनाता है , हर मजनू की लैला होती है , हर कोई रांझा बनकर अपनी हीर की तकदीर बनाता है । कोई कविता कोई ग़ज़ल कोई नज़्म कोई कथा कहानी सभी करते हैं हमेशा ही कोई न कोई ऐसी नादानी कभी किसी ने लिखने वाले की कीमत नहीं पहचानी पढ़ने वाले कहता है लिखने वाला तुम्हारी बड़ी मेहरबानी । 
 
लिखना लिख कर फिर पढ़ना और पढ़ कर समझना समझ कर लिखे हुए को मिटाकर दोबारा लिखना ऐसा साहित्य की यात्रा का सफ़र जारी रहता है । यहां ईनामात सौगात पुरुस्कार कोई तराज़ू कोई पैमाना नहीं महत्व रखता है साहित्य की सफ़लता तभी मानी जाती है जब समाज को झकझोरती है बदलाव लाने का कीर्तिमान स्थापित करती है । अन्यथा जीवन भर कागज़ काले करते रहने का औचित्य कुछ भी नहीं होता है भला किसी की ख़ुशी किसी का दर्द कौन समझता है पपीहा जागता है रात भर पीहू पीहू की मधुर वाणी सुनाई देती है अपने पिया को ढूंढता है पी कहां पी कहां , बस यही संदेश है सच्चे लिखने वाले का भी जिसे तलाश रहती है किसी खूबसूरत दुनिया की जो उसके ख्यालों ख्वाबों में है कहीं सपने को वास्तविकता बनाने को चाहत में कलमकार जीवन भर खोया रहता है । 

लिखना आदत होती है किसी दिन बन जाती मज़बूरी है शायर कहता है :-
 

कहानी हो ग़ज़ल हो बात रह जाती अधूरी है ( ग़ज़ल ) 

       डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहानी हो ग़ज़ल हो बात रह जाती अधूरी है
करें क्या ज़िंदगी की बात कहना भी ज़रूरी है ।

मिले हैं आज हम ऐसे नहीं बिछुड़े कभी जैसे
सुहानी शब मुहब्बत की हुई बरसात पूरी है ।

मिले फुर्सत चले जाना , कभी उनको बुला लेना
नहीं घर दोस्तों के दूर , कुछ क़दमों की दूरी है ।

बुरी आदत रही अपनी सभी कुछ सच बता देना
तुम्हें भाती हमेशा से किसी की जी-हज़ूरी है ।

रहा भूखा नहीं जब तक कभी ईमान को बेचा
लगा बिकने उसी के पास हलवा और पूरी है ।

जिन्हें पाला कभी माँ ने , लगाते रोज़ हैं ठोकर
इन्हीं बच्चों को बचपन में खिलाई रोज़ चूरी है ।

नहीं काली कमाई कर सके ' तनहा ' कभी लेकिन
कमाते प्यार की दौलत , न काली है न भूरी है ।
 
 जीवन की सबसे बड़ी कमाई है ज्ञान का पन्ना, किताबें दिखाती हैं सही राह |  Jansatta