जुलाई 01, 2024

POST : 1853 लिखने को अल्फ़ाज़ जज़्बात अंदाज़ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

  लिखने को अल्फ़ाज़ जज़्बात अंदाज़ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

लिखना आसान नहीं , समझना मुश्किल है , लिखना क्या है । कभी उम्र भर लिखने से भी जो अंदर है बात अधूरी रह जाती है तो कभी चंद मिसरे चार लाइने इतना कुछ समेटे हुए होते हैं कि अर्थ समझने में ज़माना लगता है । आपको दिल किसी से लगाना लगता है झूठा अफ़साना लगता है लिखने वाले को जीने मरने का बस वही इक बहाना लगता है । सार्थक लेखन की दुश्वारियां हैं दुनिया फूलों के गुलशन चाहती है प्यार मुहब्बत की कहानियां पढ़ती है , किताबें जिस राह से गुज़रती हैं पगडंडी के दोनों तरफ कंटीली झाड़ियां हैं । घायल जिस्म की लिखनी कोई कहानी है प्यास बहुत है समंदर भी है , पीना नहीं खारा पानी है । पाठक कब किताब पढ़ते हैं कीमत कितनी है बस वही हिसाब रखते हैं सवालों की झड़ी लगाते हैं लिखना कितना ज़रूरी था वही सवाल करते हैं , सवालों का जवाब रखते हैं । हम जो लिखना हो साफ शब्दों में लिख देते हैं , कुछ बहुत ही लाजवाब लिखते हैं पर्दे में रखते हैं हुस्न की बातें चेहरे पर नकाब रखते हैं , आजकल हसीन लोग कितने रंग के ख़िज़ाब रखते हैं । इश्क़ की किताब पढ़ने वाले छुप छुप कर दुनिया से रहने वाले रुख पर अपने हिजाब रखते हैं । सच लिखना झूठ लिखना सर पर किसी के ताज लिखना किसी के पांव की धूल लिखना लोग जो चाहते वही बात लिखना मतलब है कि , सब फ़िज़ूल लिखना , किसी मज़बूरी को गुनाह लिखना और किसी जुर्म को यही है उसूल लिखना , क़ातिल को मसीहा कहना क़त्ल जिस का हुआ उसकी भूल लिखना । लिखना कुछ भी लिख देना आसान है जो नहीं लिखा गया समझना ज़रूरी है उसे मिटा नहीं सकते छिपाना आसान नहीं है । अल्फ़ाज़ खामोश हैं जज़्बात बेज़ुबान नहीं है , किस के मुंह में ज़ुबान नहीं है जिस दुनिया में कहीं भी कोई भी आसमान नहीं है उस का रहता बाक़ी निशान नहीं है । अपने दिल का पूरा हुआ अभी तलक इक अरमान नहीं है दुनिया ने लगाया नहीं जो हम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है । 
 
लिखना शुरू होता है जब भीतर कोई भाव उपजते हैं , किसी से चाहत किसी को हासिल करने की हसरत से ईबादत तक दिल कब क्या महसूस करता है , कहना भी हो तो कोई समझने वाला नहीं होता ऐसे में कागज़ पर अपने जज़्बात अल्फ़ाज़ों में पिरोते हैं । ऐसी सुबह जिसकी कभी शाम नहीं होती मुहब्बत कभी बदनाम नहीं होती आरज़ू दिल की रहती है हमेशा पूरी नहीं हो तब भी नाकाम नहीं होती । कोई प्यार दोस्ती रिश्ते पर कोई कुदरत पर कोई पेड़ पौधे पक्षी और उड़ान पर कोई ज़मीन कोई आसमान पर लिखते हैं वतन की आन बान शान पर आदमी के आगाज़ पर ज़िंदगी के अंजाम पर गीत लिखते हैं अपनी तान पर । हर कोई अपने अपने रंग से इक तस्वीर बनाता है कोई धागा जोड़ता है कोई जंज़ीर बनाता है , हर मजनू की लैला होती है , हर कोई रांझा बनकर अपनी हीर की तकदीर बनाता है । कोई कविता कोई ग़ज़ल कोई नज़्म कोई कथा कहानी सभी करते हैं हमेशा ही कोई न कोई ऐसी नादानी कभी किसी ने लिखने वाले की कीमत नहीं पहचानी पढ़ने वाले कहता है लिखने वाला तुम्हारी बड़ी मेहरबानी । 
 
लिखना लिख कर फिर पढ़ना और पढ़ कर समझना समझ कर लिखे हुए को मिटाकर दोबारा लिखना ऐसा साहित्य की यात्रा का सफ़र जारी रहता है । यहां ईनामात सौगात पुरुस्कार कोई तराज़ू कोई पैमाना नहीं महत्व रखता है साहित्य की सफ़लता तभी मानी जाती है जब समाज को झकझोरती है बदलाव लाने का कीर्तिमान स्थापित करती है । अन्यथा जीवन भर कागज़ काले करते रहने का औचित्य कुछ भी नहीं होता है भला किसी की ख़ुशी किसी का दर्द कौन समझता है पपीहा जागता है रात भर पीहू पीहू की मधुर वाणी सुनाई देती है अपने पिया को ढूंढता है पी कहां पी कहां , बस यही संदेश है सच्चे लिखने वाले का भी जिसे तलाश रहती है किसी खूबसूरत दुनिया की जो उसके ख्यालों ख्वाबों में है कहीं सपने को वास्तविकता बनाने को चाहत में कलमकार जीवन भर खोया रहता है । 

लिखना आदत होती है किसी दिन बन जाती मज़बूरी है शायर कहता है :-
 

कहानी हो ग़ज़ल हो बात रह जाती अधूरी है ( ग़ज़ल ) 

       डॉ लोक सेतिया "तनहा"

कहानी हो ग़ज़ल हो बात रह जाती अधूरी है
करें क्या ज़िंदगी की बात कहना भी ज़रूरी है ।

मिले हैं आज हम ऐसे नहीं बिछुड़े कभी जैसे
सुहानी शब मुहब्बत की हुई बरसात पूरी है ।

मिले फुर्सत चले जाना , कभी उनको बुला लेना
नहीं घर दोस्तों के दूर , कुछ क़दमों की दूरी है ।

बुरी आदत रही अपनी सभी कुछ सच बता देना
तुम्हें भाती हमेशा से किसी की जी-हज़ूरी है ।

रहा भूखा नहीं जब तक कभी ईमान को बेचा
लगा बिकने उसी के पास हलवा और पूरी है ।

जिन्हें पाला कभी माँ ने , लगाते रोज़ हैं ठोकर
इन्हीं बच्चों को बचपन में खिलाई रोज़ चूरी है ।

नहीं काली कमाई कर सके ' तनहा ' कभी लेकिन
कमाते प्यार की दौलत , न काली है न भूरी है ।
 
 जीवन की सबसे बड़ी कमाई है ज्ञान का पन्ना, किताबें दिखाती हैं सही राह |  Jansatta
 

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