दिल की धड़कन नज़र के नूर रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
दिल की धड़कन नज़र के नूर रहे 
पास रह कर भी कितना दूर रहे । 
एक होंठों तलक पहुंचा न कभी  
जाम हाथों में सब भरपूर रहे ।
कौन समझा कभी भी बात यही 
हुस्न वाले सदा मगरूर रहे । 
वो कभी जाम को छूते ही नहीं 
पर हमेशा नशे में चूर रहे । 
जब मिलाई नज़र मुंह फेर लिया 
ये अजब इश्क़ में दस्तूर रहे । 
बेबसी क्या है मुश्किल कुछ कहना 
सब ही अपनी जगह मज़बूर रहे ।
चारागर भी बना दुश्मन अपना 
ज़ख़्म बनते सभी नासूर रहे ।  
बेगुनाही हमारा जुर्म बनी 
फ़ैसले हमको सब मंज़ूर रहे । 
कौन अब नाम रखता याद यहां 
हम भी ' तनहा ' कभी मशहूर रहे ।  

1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया ग़ज़ल सर👌
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