पास रह के वो कितनी दूर रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
( पुरानी डायरी से 2009 वर्ष की लिखी रचना )
दिल की धड़कन नज़र के नूर रहे
पास रह के वो कितनी दूर रहे ।
प्यार करते मुझे सब लोग पता
हुस्न वाले बड़े मगरूर रहे ।
बस यही बेख़्याली छाई रही
चढ़ गया इक नशा सा था सुरूर रहे ।
रास बेशक मुहब्बत आ न सकी
उसके किस्से कई मशहूर रहे ।
दर्द-मंद इक तुम्हीं ' तनहा ' तो नहीं
मीर ग़ालिब कभी थे सूर रहे ।
1 टिप्पणी:
बढ़िया ग़ज़ल👌
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