मार्च 10, 2023

सत्ता का राक्षस ख़्वाब में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

         सत्ता का राक्षस ख़्वाब में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

इक चारों तरफ फैली बड़ी ऊंची लंबी चौड़ी दैत्याकार छवि मुझे अक्सर रातों को जगाती है । चैन से सोया नहीं जब से सोचने समझने लगा हूं अपने समाज की वास्तविक तस्वीर को लेकर । शब्दों से चित्र बनाना चाहता हूं तो हर शब्द आकार खोने लगता है जैसे किसी फिल्म में आधुनिक तकनीक से दिखलाया गया था । तारे ज़मीं पर फिल्म जैसे , बनाई तस्वीर शब्दों की लिखावट डगमगाती दिखती है धुंधली नज़र है या तस्वीर के रंग फीके पड़ गए हैं समझ नहीं आता मुझे । मनोचिकित्सक उपचार बताता है मस्तिष्क को आराम की ज़रूरत है समाज की देश की चिंता करने को सरकार बहुत है आपको खुद जीने की चिंता करनी है मौत के आ जाने तक । इक दार्शनिक वहीं बैठे थे सुनकर कहने लगे आपको ख़्वाब में जो दिखाई देता है कोई व्यक्ति नहीं है सरकार का साकार रूप है । सरकार से डरना ज़रूरी है जनता की यही सबसे बड़ी मज़बूरी है मगर डरावने सपने दिल की धड़कन को बढ़ा देते हैं कभी लगता है सोते सोते शायद धड़कनें बंद ही हो जाएं ।  
 
 पंडित जी सपनो का अच्छा बुरा फल बतलाते हैं ज्योतिष से समस्या का कोई हल बताते हैं । इक गुरु जी मिले जिनसे मेरी कोई जान पहचान नहीं इक दोस्त उनके अनुयाई हैं साथ लेकर गए मुझे तो सब जानते समझते हैं ऐसा दावा करने वाले बोले आज नहीं सोच विचार कर कल बताते हैं । आज दोबारा जाकर वही सवाल उनका भी वही जवाब कल बताते हैं । कल कब आएगा उनको नहीं पता मुझको भी नहीं खबर कल तक कौन जीता है पल में प्रलय आएगी सुना है कल कभी नहीं आता है हमेशा आज होता है गुज़रा हुआ कल और आने वाला कल कोई अस्तित्व नहीं होता दोनों का । फिर उसी पुरानी किताब निकाली तो इक कथा पढ़ने को मिली सरकार क्या होती कैसी होती है । कुछ मिलती जुलती कहानी इक बड़े लेखक का उपन्यास भी है अरुण प्रकाश जी की कोंपल कथा , वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है , मगर ये किताब किसी और की है । 
 
सरकार इक कल्पना है और कल्पना सुंदर भी हो सकती है और बेहद बदसूरत भी लेकिन सरकार कभी जनता की नहीं होती है सरकार जनता के लिए कभी कुछ नहीं करती जनता को सरकार की खातिर जीना मरना होता है । जनता वरमाला पहनाती है ये भी उसकी ख़ुशी मर्ज़ी से नहीं बल्कि विवशता होती है उसको खुद आज़ाद रहने की अनुमति नहीं है सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था यही है आपको गुलामी स्वीकार करनी होगी दूजा कोई विकल्प नहीं है । पत्नी बनकर दासी होना दासता को अपना भाग्य समझना और जनता का राजनेताओं को वोट देकर शासक बनाना उनकी जीहज़ूरी करना एक जैसे हालात हैं । नियम कायदे कानून सरकारी मशीन के हाथ हैं और कार्यपालिका न्यायपालिका सभी सुरक्षा को तैनात लोग संस्थान आदि किसी तलवार बंदूक एटम बंब की तरह हैं । अधिकारी कर्मचारी इंसान नहीं संवेदना रहित हथियार हैं जिनको जो भी शासक जो भी सरकार जो भी विभाग उपयोग कर अपनी हर मनोकामना को पूर्ण करवा सकता है । नियम कायदे कानून जनता पर सख्ती से लागू होते हैं लेकिन सरकार अधिकारी ख़ास लोगों पर लचीले और नर्मदिली से हाज़िर होते हैं । नतीजा समझ आया है कि मौत की गहरी नींद आने तक मुझ जैसी जनता को सत्ता का राक्षस ख़्वाब में आकर डराता रहेगा । 
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

पढ़ कर याद आ गया ये बढ़िया आलेख👌👍
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होता है इस तरह भी तो कितनों का फ़ैसला,
कव्वे बख़ूबी करते हैं हंसों का फ़ैसला।

अंधेरगर्दी मच रही हर सम्त देखिए
पगडंडियों पे हो रहा रस्तों का फ़ैसला।

इक तानाशाह सत्ता को ठोका नहीं सलाम
मंज़ूर हाथों ने किया कीलों का फ़ैसला।

कमज़ोर की कहीं नहीं सुनवाई आज भी,
चिड़ियों पे थोपा जाता है गिद्धों का फ़ैसला,