मुक़द्दर का सिकंदर लोग ( तीखी-मीठी ) डॉ लोक सेतिया
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बात सही गलत अच्छे बुरे की नहीं है दरअसल बात किस्मत की है । ये विधाता की मर्ज़ी है किसी शख़्स को ईमानदारी से सही मार्ग पर चलने पर भी झोली खाली पेट खाली और दर दर की ठोकरें मिलती हैं और जो खुशनसीब होते हैं उनको छप्पर फाड़ कर मिलता रहता है । क्यों किसी को चोर रिश्वतखोर डाकू लुटेरा या अपराधी कहा जाए धर्म उपदेशक बताते हैं सब अपना अपना कर्म करते हैं और अपने कर्मों की कमाई खाते हैं । हम मंदबुद्धि अज्ञानी लोग दुविधा में रहते हैं तभी माया नहीं मिलती और राम भी मिलते नहीं । माया महाठगनी हम जानी सभी को ठगती है तभी बड़े बड़े मंदिरों में पैसे की माया देवी देवताओं को पहले उनको दर्शन देने की बात होने देती है जो बाकायदा रसीद कटवाते हैं । जाकर देखा है भगवान झूठ न बुलवाये अगर आपको विश्वास नहीं तो खुद जाओ देखो ये तरीका उचित अनुचित से परे है ख़ास आम की दो कतार दो कायदे कानून हैं तो हैं । जिस को नहीं स्वीकार घर बैठा रहे देवी देवता भगवान सब जगह हैं दर्शन साक्षात नहीं भावना से होते हैं ।
चलो आधुनिक युग की आपकी दुनिया में विचरण करते हैं , घबराओ नहीं किसी को इक कदम भी चलना नहीं बस सोशल मीडिया पर ध्यानपूर्वक समझना है । सब देखते नहीं पढ़ते नहीं सुनते नहीं चाहे कितनी महत्वपूर्ण बात हो कितना शोर हो हर कोई बापू का बंदर बना मुंह आंख कान बंद किये हुए है और खुद सभी अपनी बात लिखते हैं बोलते हैं और दुनिया को सुनाने की तमाम कोशिशें करते हैं । फेसबुक व्हाट्सएप्प पर तस्वीर को देख अपनी राय बनाते हैं और अपनी बात कहने को तस्वीरें ढूंढते हैं विचार नहीं विवेक की बात को छोड़ देते हैं । फ़िल्मी गीत याद आते हैं , नसीब में जिस के जो लिखा था वो तेरी महफ़िल में काम आया । किसी के हिस्से में प्यास आई किसी के हिस्से में जाम आया । लोकतंत्र का अजब खेल तमाशा है मुक़द्दर से नसीब होता सत्ता का बताशा है जनता की नहीं आती बारी है आखिर व्यवस्था जन-कल्याणकारी मगर सरकारी है । शराफ़त कुछ नहीं इक लाईलाज बीमारी है उपचार नहीं मिलता कोशिश जारी है । चुनावी गणित में सभी दल विजयी हैं सिर्फ और सिर्फ देश की जनता हर बार हारती रही है सब कुछ हारी है फिर भी राजनेताओं पर होती बलिहारी है । सत्ता की तलवार दोधारी है बचना बड़ी महंगी सत्ता की यारी है कौन जाने किस दिन किस की मौत की बारी है फ़रमान जारी है दुश्वारी है ।
सब से पहले आपकी बारी ( ग़ज़ल )
सब से पहले आप की बारीहम न लिखेंगे राग दरबारी ।
और ही कुछ है आपका रुतबा
अपनी तो है बेकसों से यारी ।
लोगों के इल्ज़ाम हैं झूठे
आंकड़े कहते हैं सरकारी ।
फूल सजे हैं गुलदस्तों में
किन्तु उदास चमन की क्यारी ।
होते सच , काश आपके दावे
देखतीं सच खुद नज़रें हमारी ।
उनको मुबारिक ख्वाबे जन्नत
भाड़ में जाये जनता सारी ।
सब को है लाज़िम हक़ जीने का
सुख सुविधा के सब अधिकारी ।
माना आज न सुनता कोई
गूंजेगी कल आवाज़ हमारी ।
1 टिप्पणी:
...Vidhata ki marzi h sahi kha...Imandar log khali pet or khali jholi liye hote hn...Hm n likhenge raag darbari👌👌
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