मार्च 18, 2023

गूगल सर्च महान , खुद से अनजान ( हक़ीक़त का अफ़साना ) डॉ लोक सेतिया

   गूगल सर्च महान , खुद से अनजान ( हक़ीक़त का अफ़साना ) 

                                    डॉ लोक सेतिया 

गूगल सर्च पर खुद को ढूंढना हैरान हो जाओगे जानकर कि आप जो तलाश कर रहे हैं वो बहुत कुछ और है बस जो आप हैं वही नहीं है । पिता की नज़र से बेटा बेटे की निगाह से बाप पत्नी के आधार पर पति दोस्तों की समझ से आपका कोई ऐतबार नहीं ज़रूरत को देख अच्छा बुरे लगते हैं । सरकार के हर विभाग ने आपका नाम लिखा हुआ है अपने हिसाब से करदाता हैं या कर्ज़दार हैं उपभोक्ता हैं या उनके लिए कुछ भी नहीं ज़िंदा हों कि मुर्दा उनको खबर नहीं बस बेकार लोगों में शुमार हैं । चिंता बढ़ जाएगी अगर और आगे बढ़ कर जानकारी चाहोगे कि अगर जो आप बता रहे हैं वो सही है तो जो मुझे पता है मैं वास्तव में कौन क्या हूं उस का क्या करूं । गूगल आपको निर्देश देगा वो सब अपनी हिस्ट्री मेमरी से मिटा दो हमेशा को । गूगल भी सब जानता है खुद क्या है क्या से क्या क्यों हो गया और कल क्या होगा उसे भी नहीं पता अपने बुने जाल में खुद हर कोई उलझा है गूगल भी इस से बच नहीं सकता है । हर शख़्स की समस्या यही है दुनिया भर को जानता समझता है खुद से अजनबी है क्या है इस से अनजान है । आपकी नज़र से लोग अच्छे ख़राब हैं बस खुद नज़र से आप कमाल हैं लाजवाब हैं सब का हिसाब रखते हैं कुछ बेहिसाब हैं । ये नशा है मदहोशी है आपको कुछ नहीं सूझता है जबकि आप पीते ही नहीं शराबी नहीं हैं लेकिन अपनी ही मस्ती में चूर हैं जो चढ़ कर कभी नहीं उतरती वही शराब हैं । आप कितने अच्छे हैं मुझसे सच्ची मुहब्बत करते हैं जाओ कितने झूठे हैं मुझे बनाते हैं बड़े ही खराब हैं । बेग़म जी समझती हैं आप कहां के नवाब हैं शादी से पहले देखा वही खूबसूरत ख़्वाब हैं हक़ीक़त नहीं अफ़साना हैं जिस को पढ़ा नहीं जा सकता वो दिल की किताब हैं ।   
 
सोशल मीडिया की लत ऐसी लगी कि मीरा की तरह सभी पर दीवानगी चढ़ गई है , तन मन की सुध-बुध नहीं रही और बेबस और लचर हो गए हैं कैलाश खेर का गाया सूफ़ी संगीत जैसी हालत है मीरा मतवारी थी दिल हारी थी पिया पर बलिहारी थी यहां कोई भी नहीं सब मशीनी है गूगल भी इक सर्च इंजन है मशीन है । जब आदमी मशीन को अपने इशारों पे चलाता था मशीन ज़रूरत पर काम आती थी आजकल मशीन इंसान को अपने निर्देश पर चलाने लगी है और आदमी कठपुतली बन कर चल रहा है । खुद अपना वजूद खोकर सभी जाने किस की तलाश को भटकते फिरते हैं । आदमी कहता है आदमी का कोई भरोसा नहीं मशीन पर यकीन रखते हैं और मशीन या कोई सॉफ्टवेयर या ऐप्प किसी न किसी आदमी ने बनाई है जैसे उसने प्रोगरामिंग की है खराबी या वायरस आने तक उसी ढंग से चलती है और गड़बड़ होने पर क्या करेगी किसी का बस नहीं चलता । देश की सरकार तक मशीनी ढंग से काम करती है और मशीन को क्या खबर उस ने सही किया या गलत किया । हथियार तीर तलवार बंदूक चाकू छुरी जिस हाथ में उसकी मर्ज़ी से चलते हैं । 

 कोई शायर कहता है " मुहब्बत ही न जो समझे वो ज़ालिम प्यार क्या जाने , निकलती दिल के तारों से जो है झनकार क्या जाने । करो फरियाद सर टकराओ अपनी जान दे डालो ,  तड़पते दिल की हालत हुस्न की दीवार क्या जाने । उसे तो क़त्ल करना और तड़पाना ही आता है , गला किस का कटा क्योंकर कटा तलवार क्या जाने " ।  

सरकार से हर शाहकार तक खुद क्या है अपने खुद की बढ़ाई करते हैं दिया क्या क्या गिनवाते हैं कभी ये नहीं बतलाते लिया क्या क्या है छीना कितना चैन नींद आज़ादी जीने का हक़ सभी , उनके पर अपने ज़ुल्मों का कोई हिसाब नहीं रहता है । यही सरकारी मशीनी तौर तरीका गूगल से सोशल मीडिया और ऐप्स का है ऑनलाइन लेन देन करते करते कब कौन जालसाज़ी का शिकार हो कंगाल हो किसी ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया अगर जुर्म की सज़ा मिलती तो सब दिवालिया हो जाते जो भी मालामाल हैं ।   

सईद राही जी की ग़ज़ल है :-

तुम नहीं , गम नहीं , शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं

गाहे - गाहे इसे पढ़ा कीजिये ,
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
ऐसी तन्हाई...

जाने किस - किस की मौत आई है
आज रुख पे कोई नकाब नहीं
ऐसी तन्हाई...

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं
ऐसी तन्हाई... 


 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत बढ़िया लेख....आदमी ने कहा यकीन नही...मशीन ने कहा तो भरोसा है👌👍