अनकही छोड़ जाएंगे हम कहानी अपनी ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
अनकही छोड़ जाएंगे हम कहानी अपनी
ढूंढने पर नहीं मिलेगी निशानी अपनी।
प्यार हमने किया उसे दिल ही दिल में लेकिन
पर कभी कह सके नहीं हम ज़ुबानी अपनी।
हमको तालाब मत समझना हैं बहते दरिया
रोकने से नहीं रुकेगी रवानी अपनी।
झूठ कहते नहीं खरा सच हमेशा कहते
हम बदलते नहीं वो आदत पुरानी अपनी।
एक दिन उनसे जब मुलाक़ात होगी "तनहा"
पूछना मत कि आएगी याद नानी अपनी।
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