मयक़दा बन गया है बाम अपना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
मयक़दा बन गया है बाम अपना
फिर भी खाली रहा है जाम अपना।
अब नहीं आएंगे कभी भी वापस
दोस्तो आखिरी सलाम अपना।
लोग अच्छे हमें बुरा हैं कहते
चुप रहे हम यही था काम अपना।
क़त्ल कर के उन्हें मिला सुकूं क्या
मौत मुझको लगी इनाम अपना।
आप चाहें मुझे खरीद लेना
प्यार करना यही तो दाम अपना।
ज़िंदगी का सफ़ा अभी है ख़ाली
लिख दे कोई तो उस पे नाम अपना।
एक इंसानियत ही धर्म "तनहा"
हम हैं अल्हा के और राम अपना।
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