ख़ुशी चाहते हैं मिलते हैं दर्द ( फ़लसफ़ा ) डॉ लोक सेतिया
हम जो चाहते हैं औरों को मंज़ूर नहीं होता जो दुनिया चाहती है हमसे नहीं होता बस यही झगड़ा है। कभी किसी से बात करो यही राज़ खुलता है बचपन से बड़े होने तक जिस किसी का बस चलता है अपनी ख़ुशी अपनी ज़रूरत की खातिर दूसरे को परेशानी देता है। कोई पिता बच्चों पर कोई पति पत्नी पर कोई भी बड़ा छोटा होने से नहीं बल्कि स्वभाव और आदत से अपने आप को ऊंचा अन्य को नीचा मानकर अपनी बात मनवाता है। सवाल ताकत या अधिकार का नहीं मानसिकता का है। बच्चे भी माता पिता को नासमझ और नाकाबिल समझते हैं ये भी होता है और पत्नी भी पति को नाकारा समझती है अगर उसकी उम्मीदें पूरी नहीं हो सकती हैं। कुदरत ने किसी को राजा या भिखारी बनाकर पैदा नहीं किया है हवा पानी अंधी बरसात धूप छांव किसी को बड़ा छोटा मान कर भेदभाव नहीं करते हैं। सबसे कठिन बात है आदमी का इंसां बनना , चचा ग़ालिब के शब्दों में , बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना , आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना। बंदे की फितरत बड़ी अजीब है जो होता नहीं होने को जो करना नहीं करता है। भला बताओ तो किसलिए आदमी आदमी से डरता है थोड़ा जीने की खातिर कितना रोज़ मरता है।
सरकार शासक अमीर गरीब कोई दाता कोई भिखारी ये कुदरती व्यवस्था हर्गिज़ नहीं है। जो लोग इंसान और इंसानियत को नहीं समझते वही राजनीति धर्म या अपने हाथ आये अवसर का उपयोग कर धनवान या ख़ास अथवा मालिक या शासक बनकर खुद की ख़ुशी हासिल करने को औरों से उनकी ख़ुशी छीनते हैं। विडंबना ये है कि औरों से छीनकर सब पाने के बाद भी उनको ख़ुशी क्या संतोष मिलता नहीं है। सत्ता ताकत धन दौलत जितनी मिले हसरत बढ़ती जाती है इक पागलपन की दौड़ है जो जीते जी ख़त्म नहीं होती है। आदमी ने कुदरत के कायदे कानून को दरकिनार कर अपने नियम कायदे कानून बनाकर कुदरती व्यवस्था को तहस नहस किया है। किसी राजा किसी भी शासक ने आम लोगों के खातिर कोई व्यवस्था नहीं बनाई सभी को अपने शासन करने की चाहत थी और अपने वर्चस्व को बनाये रखने को अन्य सभी के कुदरती अधिकारों का हनन किया जाता रहा है। आपको जो भी धर्म अच्छा लगता है कभी सोचना क्या उस धर्म से आपको आदमी से अच्छे इंसान बनने की सीख मिलती है। कुदरत राजा और आम जन दो तरह के लोग या समाज नहीं निर्माण करती है। ईश्वर जो भी है जब उसने दुनिया बनाई है तो खुद अपने रहने को कोई भवन मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे बना सकता था अगर उसको अपने गुणगान की सुंदर पहनावे और कीमती सोने चांदी हीरे जवाहरात की चाहत होती। मगर भला भगवान को कोई भी ज़रूरत अथवा चाहत कैसे हो सकती है। मतलब साफ है ये सब कुछ लोगों ने अपनी सत्ता अपनी ज़रूरत और अपनी महत्वांकांक्षा की खातिर बनाया है।
हमने जिस धर्म से भी सबक सीखा है कि ईश्वर की उपासना उसको चढ़ावा चढ़ाना उसके लिए धर्मस्थल बनाना भगवान को खुश करता है या ऐसा नहीं करने पर ईश्वर आपको दंडित करता है और हम किसी जगह जाते हैं कुछ मांगने अथवा किसी डर से वास्तव में चालाक और स्वार्थी लोगों की साज़िश ही है। शायद ऐसे लोग भगवान को लेकर सबसे अधिक अनजान खुद हैं मगर उनका काम इस के बगैर चलता नहीं और ऐसे लोगों ने कितने कितने नाम शक़्ल या तमाम ढंग से खुदा अल्लाह क्या क्या बना रखा है। हमने वास्तविक साधु संतों महात्माओं की चिंतन मनन और उनके अनुभव की बातों को कथा कहानी समझ तोते की तरह रटने की बात ही की है उनपर विमर्श किया नहीं और उनकी गहराई को समझा नहीं जो खुद आचरण और अभ्यास से उनके बताये सही मार्ग और दर्शन का पालन कर करना चाहिए था। कहीं किसी ने भी धार्मिक आडंबर पर धन समय साधन बर्बाद करने की शिक्षा नहीं दी है। लोभ मोह अहंकार झूठ अन्याय को त्यागकर मानव कल्याण और आपसी भाईचारे की शिक्षा को कब हमने समझना चाहा है।
कल इक जो बीत गया और इक कल जो आने वाला है उनके बीच आज है जिसे हमने जीना है और ऐसे जीना चाहिए जो सार्थक हो भविष्य को और खूबसूरत बनाने का आधार हो। अधिकांश लोग पिछले नाम वालों से खुद अपनी तुलना करते हैं और उनसे बढ़कर दौलत ताकत नाम पहचान या शोहरत हासिल करने में अपने अस्तित्व को भूल जाते हैं कुदरत ईश्वर किसी को किसी से अच्छा या खराब नहीं बनाता है। सब अलग अलग हैं और जो जैसा है अच्छा है हमने परमात्मा से अलग खुद अपने मापदंड बनाने का कार्य किया है अर्थात विधाता को चुनौती देकर ललकारने की भूल की है। इतिहास को याद रखना उस से सबक लेना उचित है लेकिन जिनको अपना नाम इतिहास में दर्ज करवाने की ललक होती है वो लोग भीतर से खोखले होते हैं। लोग आपको आपके मरने के बाद याद रखते हैं कि नहीं इसकी चिंता करना बेकार है आपको देश समाज को विश्व को अपना योगदान देना चाहिए मगर ऐसे चाहत रखने वाले समाज को कुछ देते नहीं हैं उनकी पाने की हसरत मरने तक अधूरी रहती है।
खुश रहना है ख़ुशी चाहते हैं तो खुशियां बांटना सीखिए देने से ख़ुशी हासिल होती है लेकर नहीं। सुख दुःख जीवन में मिलते हैं ज़िंदगी हमेशा इक जैसी नहीं हो सकती है। ये दुनिया रंग-बिरंगी है और सभी रंग ज़रूरी हैं हर रंग का अपना महत्व है। जिन लोगों ने भी दुनिया को अपनी पसंद के किसी रंग में रंगना चाहा है उन्होंने दुनिया देश समाज का विनाश किया है। ये आज की कड़वी सच्चाई है जो हर कोई राजनीति धर्म सामाजिक संरचना कारोबार अदि जिस भी तरीके से सबको अपनी मर्ज़ी से बदलना चाहता है। उनकी समस्या यही है उनको अपनी शक़्ल अपना रंग ढंग अपनी विचारधारा को छोड़कर कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। अर्थात उनको कुदरत विधाता और ईश्वरीय सत्ता स्वीकार नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें