दाता कौन भिखारी कौन ( कितने छोटे बड़े लोग ) डॉ लोक सेतिया
मैं नहीं कहता आप सभी कहा करते हैं क्या लाये थे साथ क्या लेकर जाओगे , क़फ़न में जेब नहीं होती सिकंदर जब गया दुनिया से दोनों हाथ खाली थे। मगर कहने और समझने में अंतर होता है जिनका दावा होता है उनको कुछ नहीं चाहिए वही जितना भी हासिल हो और पाने की हवस बढ़ती जाती है। ऊंचे महल वालों की गरीबी कभी मिटती नहीं उनकी गरीबी देख कर हमें अपनी झौंपड़ी उनसे अच्छी लगती है। कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस , गरीब होने का एहसास अब नहीं होता। डॉ बशीर बद्र जी का शेर है। ऊपरवाला कभी किसी से कुछ नहीं मांगता है पहले हमको ये समझना होगा जो दाता है उसे क्यों आप भिखारी बना रहे हो। जब कोई इंसान अपनी दौलत सामान ऊपर नहीं ले जा सकता तब कोई कैसे आपका दिया पैसा सामान चढ़ावा भगवान तक भेज सकता है ये आपके पूर्वजों को मिल सकता है। खुद अपने स्वार्थ की खातिर किसी और के नाम पर लेने वाले भगवान की बात करते हैं समझते नहीं है। एक तरफ कहते हैं उसने सब जीवों को बनाया उनके लिए सब उपलब्ध करवाया है पत्थर में भी जिनको पैदा किया उनका भोजन वहीं देता है फिर जो भगवान के पास चले गए उनको कैसे भूखा रखेगा। धर्म के नाम पर सबसे बड़ा छल यही है कि जो धरती पर भूखे नंगे हैं उनकी चिंता छोड़ अपने पूर्वजों के नाम क्या क्या बनवाते हैं दिखावे की खातिर अपनी शोहरत और दानवीर समझे जाने की चाह में जबकि वास्तविक दान उसे कहते हैं जो कोई देता है लेकिन कभी उसकी चर्चा नहीं करता है।
सच तो ये है कि भगवान धर्म सब पीछे रह गए हैं आजकल राजनेता सरकार आपको बताते हैं कि उन्होंने क्या क्या नहीं किया जनता के लिए। आज तलक कोई राजनेता कोई दल ऐसा नहीं जिसने देश को कुछ भी दिया हो सत्ता पाकर जनता के पैसे से ऐशो आराम करते हैं जो भी जनता के धन देश के खज़ाने से तथाकथित विकास या कल्याण कार्य करते हैं मकसद कुछ ख़ास वर्ग नेताओं अधिकारियों चंदा रिश्वत देने वाले धनवान लोगों की भलाई होता है। राजनीति शुध लेन देन का कारोबार है इस हाथ ले उस हाथ दे वाली बात है नकद नारायण की खरी बात कोई उधार खाता नहीं। राजा महराजा हुआ करते थे जिनका राज्य उनका बाप दादा की विरासत होता था मगर वो भी अमीरों से कर वसूलते गरीबों की सहायता करते थे खराब हालत में तब लोग अपने शासक को भगवान जैसा मानते थे। कभी किसी राजा ने अपने राज्य में रास्ते बनवाने कुंवें खुदवाने पेड़ लगवाने अथवा सामाजिक सरोकार के काम करने को किसी पर उपकार करना नहीं बताया था। अपने राज्य को खुशहाल बनाना उनका कर्तव्य है समझते थे। ये निर्लज्जता की बात है जब कोई भी राजनेता देश के खज़ाने से कोई काम करवाए और दावा करे इश्तिहार छपवाए उसने देश समाज को कुछ दिया है। शायद विरले राजनेता मिलेंगे जिन्होंने सच्ची समाजसेवा और देशभक्ति की मिसाल कायम की और देश के खज़ाने पर ऐश आराम मौज मस्ती का आनंद नहीं लिया। अन्यथा ये सभी देश पर सफेद हाथी की तरह बोझ बनकर रह गए हैं। नहीं चाहिएं देश को ऐसे लोग जो सेवा करने के नाम पर मेवा खाते हैं।
देश का हर आम नागरिक देश के लिए अपना योगदान देता है केवल आयकर देने वाले ही खज़ाना नहीं भरते बल्कि वास्तव में खज़ाना जनता के नमक से लेकर जीवन बसर करने की हर चीज़ पर कर देने से भरता है। और उस धन पर जनता का ही अधिकार है मगर सरकार नेता जतलाते हैं कि वे खैरात देते हैं। बात बिलकुल विपरीत है जनता मालिक ही नहीं दाता है और सरकार नेता अधिकारी मालिक से मांगते ही नहीं छीन लेते हैं कभी भी उन्होंने जो करना चाहिए कर्तव्य निभाकर उचित वेतन पाना नहीं स्वीकार किया है। जब बाकी सभी को जिस काम करने को नियुक्त किया जाता है उचित और सही ढंग से संतोषजनक करने पर मूल्य मिलता है इन पर लागू करते तो इन पर जुर्माना और दंड लगाया जाना चाहिए था।
कुदरत का नियम है कुछ भी कोई देता है उसको किसी रूप में वापस मिलता है। समंदर से पानी बदल बनकर फिर बारिश में धरती को मिलता है। आपने कभी पहाड़ से गिरते झरने बहती नदिया के पानी को वापस जाते देखा है ऊंचा होना बड़ा होना इसको कहते हैं जबकि राजनीति की गंगा उलटी बहती है निचले स्तर से धन दौलत ताकत साधन लेकर शासक बनकर अपने पर खर्च करते हैं। सत्ताधारी लोग अधिकारी दाता नहीं हैं सेवक बनकर रहते तो अच्छा था मगर उन्होंने भिखारी की मर्यादा को भी नहीं समझा और चोर लुटेरे बन गए हैं। किसी ने मुझे इक वीडियो भेजा है जो इंग्लिश में इक भिखारी की कहानी है देख कर सोचा काश हमारे देश के राजनेता अधिकारी कारोबार करने वाले उसी से सबक लेते और शायद उस भिखारी की तरह जो जाता है वो वापस लौट आता है इसका अर्थ समझता है। कहानी ऐसे है इक भिखारी बेघर है राह पर बैठ गुज़रने वाले लोगों से सहायता मंगता है इक रात इक महिला उसको बीस डॉलर देती है उसके भिक्षा वाले बरतन में डालती है तो भिखारी पूछता है आपने इतने अधिक पैसे क्यों डाले मुझे थोड़े ही ज़रूरत थी। महिला बताती है वो मानती है जो आपके पास से जाता है वापस लौट कर आता है आपके पास। अपने बरतन से निकालने पर भिखारी को पता चलता है कि महिला के हाथ से इक रिंग भी उसमें गिर गई थी। वो भागता है उसके पीछे मगर नहीं मिलती मगर उसने अपना नाम बताया था भिखारी को पूछने पर। भिखारी ज़ेवरात बेचने वाले की दुकान पर जाकर रिंग दिखाता है जो उसको बड़ी अच्छी और मूलयवान बताकर ढेर सारे पैसे देने को तैयार है। मगर उसको महिला की कही बात याद आती है जो जाता है लौट भी आता है।
और खोजते खोजते इक दिन भिखारी उस महिला तक पहुंच जाता है और उसको गलती से गिर गई हाथ की उंगली की रिंग वापस देता है। महिला कहती है आप नहीं जानते इस की मेरे लिए कितनी अहमियत है। अब भिखारी महिला की बात दोहराता है जो जाता है वापस लौट आता है। यहां तक बात उतनी विस्मयकारी नहीं लगती है इस से आगे जो होता है वो शायद पहले किसी घटना या कथा कहानी में नहीं देखा सुना। महिला के दफ़्तर की सहयोगी कहती है क्यों नहीं इस कहानी को छापकर पाठकों तक पहुंचाया जाये। और ऐसा करने के बाद वो कहानी इतनी अधिक बिकती पसंद की जाती है कि उस से हज़ारों डॉलर की आमदनी होती है। तब महिला इक बैग में भरकर वो सारा पैसा भिखारी को देने आती है भिखारी हैरान होता है और महिला वही शब्द फिर दोहराती है जो जाता है वापस लौट आता है। अब भिखारी अपना घर खरीद सकता है और भिखारी नहीं रहता है।
अपने बोध कथाओं लोक कथाओं की शिक्षा को पढ़ा समझा होगा ये कुछ उसी तरह की बात है। लेखक का अभिवादन उनकी बात शामिल की उनका नाम नहीं मालूम है।
मुझे लगता है जैसे हमारे देश में जनता ने भूल से अपनी बहुमूल्य चीज़ मतदान के रूप में भीख मांगने आये लोगों के कटोरे में डाल दी जिसकी कीमत समझना तो दूर की बात उसको बेचकर अपना घर भरने लगे ये तमाम लोग। संस्थाओं संगठनों का गठजोड़ चोर चोर मौसेरे भाई बनकर मुट्ठी भर लोग भिखारी से भगवान बनकर बैठे हैं पर असली भगवान नहीं नकली हैं जो लेना जानते हैं लौटाना नहीं चाहते।
3 टिप्पणियां:
सटीक
बढ़िया लेख...असली दाता जनता ही है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-12-2020) को "हाड़ कँपाता शीत" (चर्चा अंक-3917) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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