मुश्किल कहना मन की बात ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
होते होते होते प्यार हो गया मगर महबूबा को जाने क्या सूझी जो आशिक़ ने जब भी कोशिश की दिल की बात कहने की अभी नहीं फिर कभी यहां नहीं कहीं और ऐसे नहीं कुछ और ढंग से सोशल मीडिया पर भी नहीं और अकेले अकेले भी नहीं। आखिर इक दिन पूछ लिया इरादा क्या है किसी और से तो नहीं लगा लिया दिल बता दो तू नहीं और सही। इस बात पर माशूक़ा को अपने मन की चाहत बतानी पड़ी कहा मुझसे मन की बात कहनी है तो रेडियो पर निर्धारित समय पर कहना अन्यथा ख़ामोश रहो। मालदार बाप की औलाद को लगा ये कोई बड़ी बात है वादा कर बैठा। जब रेडियो के दफ़्तर जाकर बात की तो मालूम हुआ क्या क्या करना होगा और जैसे कोई हर महीने मन की बात करता है उसका खर्चा आठ करोड़ हर एपिसोड का आता है। मुहब्बत करना बाद में उसका इज़हार करना ही इतना महंगा होगा बेचारे आशिक़ को सपने में भी अंदाज़ा नहीं था। किसी ने बताया छोड़ो सरकारी रेडियो को ऍफ़ ऍम रेडियो से गुज़ारा कर सकते हैं मगर पता चला उनका दायरा उतना बड़ा नहीं है जो आशिक़ के शहर से महबूबा के शहर तक सुनाई से सके। राजनीति ने मन की बात को भी इतना मुश्किल बना दिया है कि आम इंसान अपने मन की बात मन में ही रखने को मज़बूर है। कोई पहचान वाला मिला जिसने समझाया आप कवि होते या ग़ज़ल कविता कहते होते तो कोई अवसर मिल भी सकता था , कविता पढ़ते अपनी महबूबा को सुनवा कर बात बन जाएगी। कविता का शीर्षक रखते मन की बात। आशिक़ ने गूगल पर ढूंढा और मन की बात कविता मिल ही गई। लिखने वाले को तलाश किया फेसबुक पर मिले तो अपनी समस्या बताकर उनकी कविता अपने नाम से सुनाने की इजाज़त मिल ही गई हाथ जोड़कर। उसके बाद रेडियो पर सौ पापड़ बेले तब जाकर सिफ़ारिश और उपहार देकर कविता पढ़ने का अवसर मिल गया। मगर जैसा होता है जवानी में सभी किसी की कविता ग़ज़ल चुराकर अपनी माशूक़ा को तुम्हारे लिए खुद लिखी है कहकर सुनाते हैं। मुहब्बत और जंग में सब जायज़ समझा जाता है। रेडियो पर किसी अनजाने कवि की कविता को अपनी बताकर पढ़ कर कह दिया मेरे मन की बात जिसे भी पसंद आई हो मुझे कल इंडिया गेट पर मिल कर जवाब दे सकती है।
मन की बात ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
देख कर किसी कोबढ़ गई दिल की धड़कन
समा गया कोई
मन की गहराईओं में
किसी की मधुर कल्पनाओं में
खोए रहे रात दिन
जागते रहे किसी की यादों में
रात - रात भर करते रहे
सपनों में उनसे मुलाकातें।
चाहा कि बना लें उन्हें
साथी उम्र भर के लिए
हर बार रह गया मगर
फासला कुछ क़दमों का
हमारे बीच।
उनकी नज़रें
करती रहीं इंतज़ार
खामोश सवाल के जवाब का
पर हम साहस न कर सके
प्यार का इज़हार करने का कभी।
समझ नहीं सके वो भी
हमारी नज़रों की भाषा को
और लबों पे ला न पाए
दिल की बात कभी हम।
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