मौत के सर यही इल्ज़ाम है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
मौत के सर यही इल्ज़ाम है
खूबसूरत भी है बदनाम है।
इक कहानी हक़ीक़त थी कभी
रह गया बिन पढ़ा पैग़ाम है।
मयकदा मय नहीं साक़ी नहीं
और टूटा हुआ हर जाम है।
राह देखी सुबह से शाम की
बस यही हर किसी का काम है।
बुझ गई आग बाक़ी है धुआं
देख लो सब तमाशा आम है।
मिट गया सब लिखा तकदीर का
सिर्फ़ बाकी रहा इक नाम है ।
कौन फ़रियाद "तनहा" की सुने
ढल रही ज़िंदगी की शाम है।
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