काश ऐसे में तो सच बोलते ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया
सुनते थे जब मौत सामने दिखाई देती है तो बड़े से बड़ा गुनहगार भी तौबा करता है। मगर अब देख रहे हैं कि कोरोना का भी मतलबी और स्वार्थी लोगों पर कोई असर नहीं हुआ है। कोई इसको अपना कारोबार बढ़ाने का मौका समझ रहा है तो कोई जानते हुए भी कि उसकी बात सरा सर गलत है कोरोना के ईलाज या कोई उपाय या कोई ज्योतिष की भविष्यवाणी करता है। लगता है उनको मौत से डर लगता भी होगा तब भी भगवान से तो कोई डर लगता नहीं है तभी चाहते हैं जब तक कोरोना उन तक नहीं पहुंचता जो भी हासिल किया जा सकता है कोरोना का भी कारोबार कर किया जा सकता है।
उधर सत्ता का खेल खेलने वाले जैसे कोरोना से कोई गुप शुप समझौता हो गया है ऐसा दिलखा रहे हैं कि मौत आनी जानी चीज़ है मोक्ष की चाह समझ कुर्सी पाने का जतन करते रहना चाहिए। भगवान के किवाड़ भी खुल गये हैं सरकार की मर्ज़ी है अब किसी भगवान की कोई मर्ज़ी नहीं चलती मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरजाघर सभी को आने वालों के कोरोना से बचाव के ढंग अपनाने ज़रूरी हैं। अर्थात भगवान के घर भी भगवान भरोसे कुछ नहीं है। चढ़ावा चढ़ाना है इस पर कोई रोक नहीं बाकी सब नियम अनुसार होना नहीं होना तय है। तो ये भी गलत साबित हुआ कि कोरोना ने लोगों को बदल दिया है अच्छाई सच्चाई की राह चलने को विवश कर दिया है। हम लोग इतने बिगड़ चुके हैं कि अब बदल नहीं सकते सुधर नहीं सकते अब तो भगवान भी जान गया होगा ये इंसान अब मेरे बस में नहीं रहे हैं। भगवान नहीं जानता अब उसका भविष्य क्या है शायद सभी का भाग्य लिखते लिखते खुद अपना भाग्य लिखना रह ही गया है। ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले , आस निराश के दो रंगों में दुनिया तूने सजाई , नैया संग तूफ़ान बनाया मिलन के साथ जुदाई। जा देख लिया हरजाई ,लुट गई मेरी आस की नगरी अब तो नीर बहा ले। आग बनी सावन की बरखा फूल बने अंगारे , नागिन बन गई रात सुहानी पत्थर बन गए तारे। सब टूट गए है सहारे , ओ दुनिया के रखवाले। कोरोना क्या आया अब ये फ़िल्मी गीत भजन लगता है झूठी तसल्ली दिलाने को लिखे गाये गए थे। ये सच में किसी के काम आये भी या नहीं कोई नहीं जानता है।
हम देखते हैं समझते नहीं हैं कितनी बड़ी हैरानी की बात है जो कोई भजन कीर्तन सुनाने का काम करते हैं खुद उनको नहीं ध्यान होता कि जो सुना रहे खुद उसका उल्टा कर भी रहे हो। सुनने वाले भी ध्यान कहीं और होता है क्या समझते इस का हासिल क्या है। सच को सच कहना ओखली में सर देना है कितनी बार कोई तोता रटंत करते रहेंगे जब अर्थ नहीं समझते विचार नहीं करते। धर्म भगवान भजन कीर्तन सब को बस दिखावे को आडंबर बना दिया है। इंसान इंसानियत और सभी को आदर देना नहीं सीखा ये कैसा उपदेश है कैसा गुरु बना लिया है। झूठ क्या है सच कहां है अब इसकी चिंता कौन करता है ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं कब तक भगवान को दुनिया को खुद को छलते रहेंगे। कल किसी ने लिखा था , अपनों को लूटो और जम कर जितना चाहो लूट लो मगर इतना ध्यान रखना कि उस हद तक मत जाना कि कभी आप गिर पड़ो तो अपनों को उठाने को हाथ बढ़ाने में भी संकोच हो या सबको लगे ये भी आपकी कोई चाल है साज़िश है। ज़िंदगी भर जिनको भला बुरा कहते रहे उनके बाद उनकी याद में आंसू बहाना उनका अपमान होगा। अभी भी जो अपने हैं उनको प्यार आदर से अपनाओ यही वास्तविक मानव धर्म है। अगर मुमकिन हो तो किसी से कुछ ले जाने से बेहतर है किसी को कुछ देकर जाना दुनिया से और कुछ भी नहीं दे सकते फिर भी प्यार और आदर देने में तो आपको कोई नुकसान नहीं होता है। संत कबीर जी कह गए हैं :-
चार वेद षट शास्त्र में,,
बात मिली है दोय,,
दुःख दीने दुःख होत है,,
सुख दीने सुख होय,,
कबीर मन तो एक है,,
भावै तहां लगाय,,
भावै हरी की भक्ति कर,,
भावै विषय कमाय।
उधर सत्ता का खेल खेलने वाले जैसे कोरोना से कोई गुप शुप समझौता हो गया है ऐसा दिलखा रहे हैं कि मौत आनी जानी चीज़ है मोक्ष की चाह समझ कुर्सी पाने का जतन करते रहना चाहिए। भगवान के किवाड़ भी खुल गये हैं सरकार की मर्ज़ी है अब किसी भगवान की कोई मर्ज़ी नहीं चलती मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरजाघर सभी को आने वालों के कोरोना से बचाव के ढंग अपनाने ज़रूरी हैं। अर्थात भगवान के घर भी भगवान भरोसे कुछ नहीं है। चढ़ावा चढ़ाना है इस पर कोई रोक नहीं बाकी सब नियम अनुसार होना नहीं होना तय है। तो ये भी गलत साबित हुआ कि कोरोना ने लोगों को बदल दिया है अच्छाई सच्चाई की राह चलने को विवश कर दिया है। हम लोग इतने बिगड़ चुके हैं कि अब बदल नहीं सकते सुधर नहीं सकते अब तो भगवान भी जान गया होगा ये इंसान अब मेरे बस में नहीं रहे हैं। भगवान नहीं जानता अब उसका भविष्य क्या है शायद सभी का भाग्य लिखते लिखते खुद अपना भाग्य लिखना रह ही गया है। ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले , आस निराश के दो रंगों में दुनिया तूने सजाई , नैया संग तूफ़ान बनाया मिलन के साथ जुदाई। जा देख लिया हरजाई ,लुट गई मेरी आस की नगरी अब तो नीर बहा ले। आग बनी सावन की बरखा फूल बने अंगारे , नागिन बन गई रात सुहानी पत्थर बन गए तारे। सब टूट गए है सहारे , ओ दुनिया के रखवाले। कोरोना क्या आया अब ये फ़िल्मी गीत भजन लगता है झूठी तसल्ली दिलाने को लिखे गाये गए थे। ये सच में किसी के काम आये भी या नहीं कोई नहीं जानता है।
जीवन भर प्यार का अमृत कलश हमारे करीब रहा और हमने इक बूंद भी पीना चाहा न कभी। हम भागते रहे दौलत और चमक-दमक के विष के पीछे और हमारे अहंकार और शोहरत के मद ने भर दिया हमारे अंदर नफरतों का अथाह सागर । नफरतों को पाला हमने बड़े जतन से और समझते रहे कि पा लिया है हमने जीने का सामान । और इक दिन हमारे भीतर की नफ़रत के ज़हर ने खोखला कर दिया हमारे तन मन को
और हम रह गए एक बेजान इंसान बन कर जिस में कुछ भी नहीं था अपने लिए । अंत में जब सारी पूंजी अपनेपन और प्यार की खो गई तब जाना कि जो था पास हमने उसकी कीमत नहीं समझती थी वही तो था अमृत कलश जिस की इक इक बूंद में था वास्तविक जीवन । यही है रहस्य कस्तूरी मृग की तरह से हमने अपने भीतर के अमृत कलश को छोड़कर दुनिया भर में ढूंढते रहे अपनी पहचान । जो था वो बेकार समझते रहे जीवन भर स्वर्ण मृग की तलाश में छानते रहे इस दुनिया का रेगिस्तान । प्यास बुझी नहीं समंदर पी लिया हमने फिर भी नफ़रत का और मुहब्बत का जाम तोड़ डाला हमेशा ही अपने हाथों से ।
हम देखते हैं समझते नहीं हैं कितनी बड़ी हैरानी की बात है जो कोई भजन कीर्तन सुनाने का काम करते हैं खुद उनको नहीं ध्यान होता कि जो सुना रहे खुद उसका उल्टा कर भी रहे हो। सुनने वाले भी ध्यान कहीं और होता है क्या समझते इस का हासिल क्या है। सच को सच कहना ओखली में सर देना है कितनी बार कोई तोता रटंत करते रहेंगे जब अर्थ नहीं समझते विचार नहीं करते। धर्म भगवान भजन कीर्तन सब को बस दिखावे को आडंबर बना दिया है। इंसान इंसानियत और सभी को आदर देना नहीं सीखा ये कैसा उपदेश है कैसा गुरु बना लिया है। झूठ क्या है सच कहां है अब इसकी चिंता कौन करता है ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं कब तक भगवान को दुनिया को खुद को छलते रहेंगे। कल किसी ने लिखा था , अपनों को लूटो और जम कर जितना चाहो लूट लो मगर इतना ध्यान रखना कि उस हद तक मत जाना कि कभी आप गिर पड़ो तो अपनों को उठाने को हाथ बढ़ाने में भी संकोच हो या सबको लगे ये भी आपकी कोई चाल है साज़िश है। ज़िंदगी भर जिनको भला बुरा कहते रहे उनके बाद उनकी याद में आंसू बहाना उनका अपमान होगा। अभी भी जो अपने हैं उनको प्यार आदर से अपनाओ यही वास्तविक मानव धर्म है। अगर मुमकिन हो तो किसी से कुछ ले जाने से बेहतर है किसी को कुछ देकर जाना दुनिया से और कुछ भी नहीं दे सकते फिर भी प्यार और आदर देने में तो आपको कोई नुकसान नहीं होता है। संत कबीर जी कह गए हैं :-
चार वेद षट शास्त्र में,,
बात मिली है दोय,,
दुःख दीने दुःख होत है,,
सुख दीने सुख होय,,
कबीर मन तो एक है,,
भावै तहां लगाय,,
भावै हरी की भक्ति कर,,
भावै विषय कमाय।
1 टिप्पणी:
सही कहा sir... कोरोना कारोबार हो गया है...भगवान से बिल्कुल नही डरते..बढिया लेख
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