दुश्मन से दोस्ती दोस्तों से दुश्मनी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
ये आपकी मर्ज़ी है इसको सियासत से जोड़ सकते हैं या मुहब्बत से और कोई चाहे तो तिजारत से भी। सबसे पहले इक पुराना सबक इक कहावत को भूलना नहीं चाहिए , मूर्ख दोस्त से समझदार दुश्मन अच्छा होता है। सरकार बड़ी अजीब चीज़ है दिखाई नहीं देती जब ढूंढते हैं मगर जब उसको ज़रूरत होती है सामने खड़ी होती है चीन की ऊंची दीवार की तरह। सरकार देश नहीं होती है मगर सरकार समझती है वही देश है जबकि सरकार बदलती रहती है देश वही रहता है। सबसे पहले हमको सरकार की नहीं देश की चिंता होनी चाहिए क्योंकि सरकारें कभी देश की चिंता नहीं करती हैं उनकी चिंता सत्ता और सरकार होने रहने की रहती है। सत्ता पक्ष विपक्ष चोर चोर मौसेरे भाई हैं इनकी लड़ाई इनकी जंग काठ की तलवारों से चुनावी मैदान में गंदी ज़ुबान से जनता को दिखलाने को होती हैं अन्यथा उनको आपस में कोई दुश्मनी कभी नहीं होती है। उनकी ब्यानबाज़ी जनता को बहलाने उल्लू बनाने के काम आती है और इनका पाला बदलना दिल से दिल मिलना शुद्ध तिजारत होती है सांसद विधायक बिकते हैं खरीदे जाते हैं। फर्रूखाबादी खेल है चलता रहता है चलता रहेगा जब तक वैश्या अपना जिस्म बाज़ार में बेचेगी नेता अपनी आत्मा जो ज़िंदा नहीं मर चुकी होती है उस अपनी लाश का सौदा करते रहेंगे। मुहब्बत और जंग में फिर भी शायद कोई सीमा होती है लेकिन ये जो अनीति है राजनीति या विदेश नीति किसी भी देश की सरकार की किसी और देश की सरकार से दोस्ती और दुश्मनी की रणनीति उस में कोई सीमा नहीं होती कोई नियम नहीं कोई मर्यादा नहीं और उसूल तो होते ही नहीं है ये अवसर की राजनीति होती है जो दो तरह की होती है इक सामने इक पर्दे के पीछे।
अब दोस्त की दुश्नमी की बात की कथा कहानी सुनाते हैं। ये वही है जिसने कई साल पहले हम भाई भाई हैं कहते हुए भाई की पीठ में खंज़र घौंप दिया था। हमने खंज़र घौंपने वाले को क्षमा कर दिया उसको गले लगाया उसके साथ झूले झूले और जिसकी पीठ में खंज़र घौंपा गया था अभी तक भी उसको दोषी ठहराते रहे हैं। हमने खुद को समझदार माना और विश्वास किया अपनी समझ पर कि वही जिसने पहले कभी किसी से वफ़ा नहीं की हमसे वफ़ाएं निभाएगी। गाइड फ़िल्म का गीत गुनगुना रहे हैं आजकल चाहा क्या क्या मिला बेवफ़ा तेरे प्यार में। दिल है कि मानता नहीं अभी भी साहब को उसको बेवफ़ा कहना मंज़ूर नहीं है कहते हैं न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं मगर क्या करें अपनी रहें जुदा हैं। साहब उसको दोष नहीं देते कहते हैं नहीं उसने अपनी सीमा नहीं लांघी हमने भी उसको बुरा भला नहीं कहा फिर झगड़ा काहे का है। कितनी जान कुर्बान करेंगे ऐसी आशिक़ी में सांढों की लड़ाई में फसल बर्बाद धूल उड़ाई और खड़े हैं सीना ताने। नवाब लोग मुर्गे लड़वाते थे मज़े लिया करते थे आजकल शासक खेल तमाशे करते हैं कभी किसी को ताजमहल किसी को धार्मिक आरती किसी को शानदार बाग़ की सैर जाने क्या क्या उस तरफ इस तरफ करते रहते हैं। खेल खेल में बच्चों की तरह लड़ना झगड़ना रूठना मनाना चलता है ये सीमा पर तकरार ये रार ये वार पर वार सब उनका मनोरंजन ही है आपको ताली बजानी है उनको सरकार चलानी है वार्ता से बात बनानी है।
ये आतंकवाद ये कभी सीमा पर संधि कभी संधि का उलंघन उनके अपने शतरंज के मोहरे हैं चाल है शह मात नहीं होने देते बाज़ी कभी इक तरफ नहीं होने देते। आपको इनको छोड़ अमिताभ बच्चन जी की तरह करोड़पति का खेल खिलवाना चाहिए जो खेलते हैं शायद कभी थोड़ा जीते सकते हैं खिलवाने वाले जीत कर करोड़ नहीं बिशुमार दौलत बनाते रहते हैं। आपको ऐप पर खेल में नाम दर्ज करवाना है यहां उनकी ऐप्पस पर पाबंदी की बात याद आई है। ये इक पर्दा है घूंघट कर लिया उस को देखना नहीं उसको अपना चेहरा नहीं दिखाना है उसको तड़पाना है। यही हमारी जीत है वो आकर गलती मानेगा तो घूंघट उठा देंगे फिर से उनसे मुहब्बत का तिजारत वाला लेन देन का रिश्ता चलने लगेगा। आपको नहीं समझ आता उनका झगड़ा किस बात का है उनकी दोस्ती कैसी है दुश्मनी क्यों है। उन सभी को सभी देश की सरकारों को , देश नहीं क्योंकि देश सरकार नहीं हैं ये पहले बताया है , जिन समस्याओं से लड़ना है कोरोना को हराना है गरीबी भूख और शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं बुनियादी ज़रूरतों जनता की को उपलब्ध करवाना है मगर करते नहीं हैं उन से आपका ध्यान हटवाना है। राजनीति बड़ी बेरहम होती है जब कोई राजा मरता था उसके साथ ही कोई उसके तख़्त पर ताजपोशी करवाता था , यहां मातम और जश्न समोरह इक साथ होते रहे हैं। नेता बदलते हैं तो पिछले सत्ताधारी से कोई सीख नहीं लेते क्योंकि जीतने वाला समझता है अपनी समझ चालाकी और चालों से उसने पिछले को हराया है तो उस से अकलमंद हूं जबकि हारने वाले का अनुभव वास्तव में काम का होता है। मुझे राहत इंदौरी जी की ये ग़ज़ल बेहद पसंद है शुरू से ही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें