मई 19, 2019

चिंतन की चिंता का चिंतन ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

     चिंतन की चिंता का चिंतन ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

    पहले इक पुरानी बोध कथा सुनते हैं । इक साधु सफर पर था और रास्ते में इक गांव पहुंचा तो ध्यान आया इक संगी साथी साधु दोस्त रहता है यहीं । उसकी कुटिया पहुंच कर किवाड़ की सांकल को बजाया तो भीतर से आवाज़ आई कौन है । मैं हूं साधु ने जवाब दिया और समझा दोस्त है आवाज़ से पहचान लिया होगा मगर कुछ देर बाद भी दरवाज़ा खुला नहीं तो फिर से सांकल बजाई और दोबारा भीतर से वही सवाल किया गया कौन है । इस बार सोचा यार ने आवाज़ नहीं पहचानी लगता है इसलिए जवाब दिया मैं हूं अपना नाम लिया जो भी रहा होगा । किवाड़ तब भी नहीं खुला मगर साधु को समझ नहीं आया ऐसा क्या है जो मुझे आवाज़ से नहीं नाम से भी नहीं पहचाना दोस्त ने । रात भर इंतज़ार करता रहा मगर दरवाज़ा बंद रहा रात भर । भोर हुई तो भीतर से साधु बाहर निकला अपनी आदत के अनुसार और तब फिर बाहर इंतज़ार करते रहे दोस्त ने कहा भाई क्या बात हुई अपने किवाड़ खोला नहीं । साधु दोस्त ने कहा तुमने क्या कहा था मैं हूं यही कहा था ना । अब बताओ क्या तुम हो इतना जानते हो सिर्फ वही एक है भगवान ईश्वर खुदा अल्लाह फिर कोई और कैसे कहता है मैं हूं और जिसको लगता है मैं हूं भला उसको किसी और के घर दर पर आने की ज़रूरत क्या है । 

कहते हैं कोई कितने सालों से चिंतन करता है । चिंतन अपने आपको खोजना है खुद को समझना होता है और संत महात्मा रात भर जागते हैं चिंतन करते हैं । चिंतन आपको दुनिया की मोह माया से अहंकार से किसी से बैर करने से छुटकारा दिलवाता है आपको कोई अपना बेगाना नहीं लगता है कुछ पाने की चाह नहीं रहती कुछ खोने का डर नहीं रहता है । आजकल कुछ लोग चिंतन शिविर लगाते हैं उनके अनुसार सब करना होता है और इक राशि भी चुकानी होती है । ये चिंतन इक कारोबार है वास्तविक चिंतन आपको अकेले अपने आप करना होता है और अकेले होने को कोई जगह नहीं तलाश करनी होती न किसी तरह का आडंबर करना होता है । चिंतन घोषणा कर साहूलियत को देख कर नहीं किया जा सकता है जब किसी को कहीं जाकर चिंतन करना हो तब अपने सभी धंधे काम काज छोड़ जाना होता है । अपने सुना तो होगा कोई राजा राज को त्याग कर चिंतन को चला गया कभी कोई राज पाने को चिंतन करने नहीं जाता सुना होगा । चिंता से मुक्त होने को चिंतन है या मुक्ति की चाह में चिंतन करने चले हो पहले जान तो लो । चिंतन सभी बंधनों से मुक्त होकर खुद को समझने को किया जाता है ऊपर वाले को पाने को चिंतन नहीं किया जाता ये आर्ट ऑफ़ लिविंग वाले लिखते हैं किताब पढ़ लेना और साथ बताया है पढ़ने से नहीं चिंतन किया जाता है सबको छोड़ अपने साथ रहने से । भागने का नाम चिंतन नहीं है जब कोई भाग जाता है और लौटकर कहता है चिंतन करने गया था । कई साधु संत चिंतन करने की बात करते करते चिंतन सिखाने वाले आध्यात्मिक गुरु बन जाते है उसके बाद भगवान होना चाहते हैं । ऐसे चिंतन को चिंतन नहीं कहते हैं चितन अपने को बड़ा नहीं समझने देता चिंतन से जानते हैं हम बेहद छोटे हैं कोई अस्तित्व नहीं है वास्तव में जैसे समंदर में इक बूंद का भी नहीं बुलबुले का सा वजूद है । बस इतना सा है चिंतन का सफर पानी करा बुदबुदा अस मानस की जात नानक जी कहते हैं । 

 

कोई टिप्पणी नहीं: