मई 08, 2019

POST : 1076 आधुनिक काल की अनीति कथाएं ( मंथन ) डॉ लोक सेतिया

   आधुनिक काल की अनीति कथाएं ( मंथन ) डॉ लोक सेतिया 

                   (  पहली लोक कथा - तू पी तू पी - आधुनिक संस्करण  )

राजस्थानी लोक कथा है कभी इक हिरणों का जोड़ा मर जाता है खुद पानी नहीं पीता ताकि दूसरे की प्यास बुझ सके। बचपन की सखियां बूढ़ी होकर देखती हैं उसी तरह का दृश्य मगर हुआ ये होता है कि हिरणों का जोड़ा मर तो गया है मगर लड़ते हुए ताकि पानी खुद पीकर ज़िंदा रहे। आधुनिक काल में कभी संबंध बनाये थे और साथ सब करते रहे मगर सालों बाद लगने लगा कि तब मेरे साथ छेड़छाड़ की गई थी और मीटू की कितनी कहानियां सुनाई देने लगी हैं। आजकल प्यार मुहब्बत दिल की भावना से नहीं बहुत कुछ और देख कर किया जाता है होता नहीं है। सुंदरता धन दौलत नौकरी ऐशो आराम को देख कर आशिक़ी नहीं कारोबार किया जाता है। 

               ( दूसरी नीति कथा - धरती का रस - आधुनिक संस्करण )

  पुरानी कथा में राजा रास्ता भटक जाता है सैनिकों से बिछुड़ जाता है। गर्मी धूप लू में प्यासा इक खेत में बनी झौंपड़ी में बुढ़िया पास जाकर पानी पिलाने को कहता है। बुढ़िया को दया आती है और पानी की जगह गन्ने का रस निकाल कर पिला देती है। राजा को पता चलता है किसान की मां खुशहाल है उस पर थोड़ा कर और लगाया जाये तो खज़ाना भर सकता है। कुछ देर बाद फिर से राजा गन्ने का रस पीना चाहता है मगर तब एक गन्ने की जगह चार गन्ने से गिलास भरता है तो राजा अचरज में पढ़कर सवाल करता है इतनी देर में ऐसा क्या हुआ है। बुढ़िया बतलाती है ये तो होता है जब शासक को लालच आता है तो धरती का रस सूखने लगता है। अधिनिक काल का शासक वही करता है अपने आप पर धन बर्बाद करने को जनता पर करों का बोझ बढ़ाता जाता है। लोग बेबस भूखे हैं उसको कोई बदहाली नज़र नहीं आती है। विनाश को विकास कहते हैं और जीना दुश्वार हो गया है। 

           ( तीसरी नीति कथा - इंसाफ का तराज़ू - आधुनिक संस्करण )

 दो लोग साथ साथ एक समय होते हैं। एक के मन में दूसरे के लिए रंजिश रहती है उसको नीचा दिखाना चाहता है। ऐसे में उस पर किसी अपराध का झूठा आरोप लगाया जाता है , वो जानता है कि उसने कोई अपराध किया ही नहीं उसके साथ था जब की घटना है। मगर बदले की भावना से सबके साथ आरोप लगाने में शामिल हो जाता है। मुंसिफ की अदालत में गवाही देता है उसको अपराधी साबित करने की। न्यायधीश को लगता है कि जो अपराध हुआ अकेले कोई नहीं कर सकता और कोई साथी शामिल ज़रूर होगा। कोतवाल को जांच करने को निर्देश देते हैं कि ख़ुफ़िया तौर पर निष्पक्ष जांच कर पता लगाओ तब कोई इसके साथ था। और कोतवाल जानकारी हासिल करता तो उन दोनों के एक साथ होने का पता चलता है। न्याय करने वाला न्याय करता है कि जब ये उस समय उस जगह था ही नहीं तो अपराध कर ही नहीं सकता बेगुनाह है। मगर जो बदले की भावना से रंजिश की खातिर आरोप लगाता है और जानता था कि उसने गुनाह किया ही नहीं उसको झूठी गवाही और निर्दोष को सज़ा दिलवाने की कोशिश करने पर सज़ा मिलती है। 
 
     आधुनिक काल में यही राजनीती में बार बार होता है किसी पर आरोप लगाने का सबूत होने की बात करते हैं मगर सत्ता मिलने पर निकलता कुछ भी नहीं और झूठे आरोप लगाने वाले को कोई सज़ा नहीं मिलती है। इंसाफ का तराज़ू कभी देखना अदालत में हिलता नहीं है भले किसी पलड़े में कितना झूठ और दूसरे में कितना सच रख दिया जाये। गवाही सबूत और मुंसिफ सब की आंखों पर स्वार्थ की पट्टी बंधी हुई है। आये दिन इंसाफ का कत्ल किया जाता है बेगुनाह को सूली चढ़ाते हैं और गुनहगार छूट जाते हैं। न्यायधीश जानते हैं अन्याय को न्याय का नाम दिया जा रहा है। 

निष्कर्ष :-

हमारी पुरानी लोक कथाओं और नीति कथाओं में जीवन की समस्याओं का समाधान भी है और मार्गदर्शन भी। लेकिन हमने समझना तो क्या पढ़ना भी छोड़ दिया है और किसी कोल्हू के बैल की तरह उसी दायरे में घूमते रहते हैं। इक अंधे कुंआ के कैदी की तरह भीतर शोर करते हैं आज़ादी चाहिए रौशनी चाहिए। कैफ़ी आज़मी की नज़्म की तरह। बाहर निकलते ही फिर कुंआं में छलांग लगा देते हैं।



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