मई 21, 2019

POST : 1090 अस्मत लुटवा बैठी अबला ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

      अस्मत लुटवा बैठी अबला ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

    जिस दुल्हन की डोली उठने से पहले ऐसा हादिसा हो जाये बेचारी रो भी नहीं सकती। खबर भी नहीं बाहर आती पर चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई समझा देती हैं। लागा ईवीएम गायब होने का दाग़ छुपाऊं कैसे निष्पक्ष चुनाव करवाऊं कैसे। धुआं उठता है तो आग लगने का सबूत समझते हैं बिना आग धुंआ नहीं उठता कभी। पर हम लोग भी कमाल हैं मुझे क्या सबको लगता है कौन किसी के फटे में टांग अड़ाए। चलो दिल लगाने को फ़िल्मी बातें करते हैं। साधना फिल्म का गीत औरत ने जन्म दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया कोई नहीं गाता सुनता जब मामला मीटू तक चला आया है। चुनाव आयोग इस खबर की पुष्टि कैसे करता कि बहु बेग़म फिल्म की तरह ईवीएम निकाह की रात अर्थात चुनाव से पहले गायब हो गई। नवाब साहब की हवेली डोली पहुंची तब ननद ने देखा डोली खाली है और सब नौकरानियों को उस कमरे से निकाल दिया ये कहकर कि भाभी जान गर्मी से बेहोश हो गई हैं। नवाब साहब की इज़्ज़त की लाज रखनी थी किसी कोठे से नाचने वाली को ले आये पैसा पास हो तो सब मुमकिन है। उनका भी कहना है उनके लिए सब मुमकिन है जनता खिलाफ भी हो जीतना मुमकिन है। ये कमाल फिल्मी होता रहा है कि घर से शादी की रात भागी नायिका किसी कोठे पर पहुंचती है और जिस घर दुल्हन बनकर पहुंचना था कोठे वाली बनकर पहुंचती है। पहुंची उसी जगह मगर गलत ढंग से उस रास्ते से जो बदनाम गलियों से जाता है। 

     मीनाकुमारी तब भी पाकीज़ा रहती है आशिक़ की बेटी की मां बनने वाली होती है और खुद ही कब्रिस्तान चली जाती है ज़िंदा लाश की तरह। दस्तक फिल्म की नायिका बेहद शरीफ है मगर रहने को घर मिलता है बदनाम गली में और हर कोई चला आता है खरीदार बनकर।  हम हैं मताये कूचा ओ बाज़ार की तरह उठती है हर निगाह खरीदार की तरह। मजरूह लिख रहे हैं वो अहले वफ़ा का नाम , हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह। ये बातें फ़िल्मी हैं और पुराने ज़माने की हैं जब अस्मत लुटने पर लूटने वाले का नहीं जिसकी अस्मत लुटी उसी का दोष समझते थे चुप चाप हादिसे को भुला देते थे अगर हर कोई सामने आकर अपराध दर्ज करवाता तो जाने कितने शरीफ लोग बेआबरू हो कर निकलते घर से। बेदाग़ कोई नज़र नहीं आता मुमकिन है।  हम तो अपने गुनाहों को ढकने को कविता लिखते हैं गीत लिखते हैं औरत तेरी यही कहानी अंचल में है दूध आंखों में पानी। 

       चुनाव ही गया नतीजा जो भी हो चुनाव आयोग के घर से जो आवाज़ेंसुनाई दे रही हैं उनसे लोग हैरान हैं समझदार कहते हैं उनका आपसी झगड़ा है आपको कोई हस्ताक्षेप नहीं करना चाहिए। देश की व्यवस्था लोकतंत्र की अस्मत संविधान की मर्यादा की लाज को यूं चुप रहकर लुटता नहीं देखा जा सकता है। माना आजकल कुंवारी लड़की कुंवारी हो इसकी चिंता कोई नहीं करता है जब खुद लड़के ही एक नहीं जितनी पट सकती हैं गर्ल फ्रेंड बनाते हैं मगर बूथ कैप्चर करना और ईवीएम गायब होना बराबर नहीं हैं। क्या कहते हैं उनके पास कोई पर्स ही नहीं है झोला भी खाली है कोई आगे न पीछे क्या करना है लूट कर। कोई सबको ऐसी नौकरी दे दे तो हर कोई चौकीदारी को तैयार है। विदेश जाना है शानो शौकत से बादशाह की रहना है हर सुख सुविधा हाज़िर है कोई जहाज़ तैयार है हेलीकॉप्टर भी कारों का काफिला साथ सुरक्षा भी खाने पहनने को रईसी से बढ़कर उपलब्ध है जेब में पर्स करना क्या है। अब युग ऑनलाइन का है किस बैंक में किस का कितना धन है सब गुलाबी है। 

      अब इस पर जितना कम लिखा जाये अच्छा है। आगे से उठाओ तो भी पीछे से हटाओ तो भी नंगा खुद को करना है ढका रहने दो पर्दा है पर्दा है। पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा। बस आखिर में इक पुरानी कहावत याद आती है जो ये है। राजनीति और वैश्यावृति दुनिया के दो सबसे पुराने पेशे हैं और दोनों में बहुत समानताएं हैं। कोई जिस्म बेचता है कोई ईमान बेचता है कोई है जो हर सामान बेचता है , खरीद लो सारा जहान बेचता है। इंसान भी खरीदता बेचता रहता है बिकने लगा है तो अपना भगवान बेचता है। तू क्या ए दिले नादान बेचता है बिकता नहीं दर्द का वो सामान बेचता है।

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