मई 27, 2019

जाने कहां गये वो लोग ( भारत एक खोज ) डॉ लोक सेतिया

  जाने कहां गये वो लोग ( भारत एक खोज ) डॉ लोक सेतिया 

    नेहरू गांधी पटेल भगतसिंह सभी साथ बैठे हैं। आज भी उनको अपनी नहीं देश की चिंता है। भला ये कौन हैं जो सवाल करते हैं नेहरू को क्यों बनाया और किसी को क्यों नहीं बनाया। गांधी जी कुछ कहते उस से पहले गोडसे बोल उठा जो कब से बाहर खड़ा हुआ है अपनी भूल पर पछतावा करते हुए। कहा उनको नहीं समझ अगर जिनको वो समझते हैं उसको बनाया जाता तो उनकी संस्था का नाम निशान नज़र नहीं आता। अब धारा 370 की बात भी नहीं करते उनको पता है नेहरू नहीं कोशिश करते तो कश्मीर भारत का हिस्सा बनता ही नहीं। धर्म के नाम पर भेदभाव की बात नहीं करते थे नेहरू जी और उनकी जगह और कोई बनाते तो धार्मिक उन्माद की सोच कभी इस कदर हावी नहीं होती। सबको साथ लेकर चलने का काम नेहरू से बेहतर कोई नहीं कर सकता था। गांधी जी बोले उन को देश से क्या लेना देना जो नहीं जानते देश की आज़ादी में हम सभी ने किस तरह से एकता का परिचय दिया। जिनको नेहरू के प्रधानमंत्री बनने पर ऐतराज़ है खुद उनका क्या योगदान है आज़ादी के अंदोलन में , कभी उनसे पूछा गया बताओ नेहरू जी कितने साल जेल में रहे शर्म आएगी उतने साल सत्ता पर नहीं रहे और किसी भी नेता को अपने से कम या छोटा नहीं समझा। विपक्ष को भी बढ़ावा देते रहे उनकी तारीफ करते रहे , लोहिया जयप्रकाश या अटल सबको बहुत आदर देते थे खुले मन से उनकी अच्छी बातों की तारीफ किया करते थे। पटेल कहने लगे मंदिर क्या इस तरह से बनता है समर्थकों  को नियम कानून की अवेहलना कर अपराध की तरह से तोड़ कर मुझ जैसा शासक होता तो ऐसे लोग कहां होने चाहिएं थे सब जानते हैं। मर्यादा को ताक पर रखकर धर्म मंदिर को सत्ता की राजनीति की सीढ़ी बनाने की इजाज़त उनको कभी नहीं मिलती। नेहरू जी अमीर पिता की संतान थे विदेश से पढ़ाई कर आये थे धन दौलत की कमी नहीं हो सकती थी। विलासिता भरा जीवन छोड़ आज़ादी की खातिर जेल जाना उनकी देश की भक्ति और निस्वार्थ सोच थी कोई सत्ता की भूख नहीं था। इक कांटों का ताज था वो पद उन हालात में ये आज के सत्ताधारी नहीं समझ पाएंगे जो कहने को नेहरू जी के शब्द दोहराते हैं सेवक मानता हूं उन्हीं के शब्द हैं मगर रहते हैं शहंशाह की तरह देश के खज़ाने को खुद पर खर्च करते इक सफ़ेद हाथी की तरह। नेहरू जी बोले मुझे अच्छा लगता है कोई भी दल सत्ता पा सकता है मगर खराब लगता है जब 44 फीसदी सांसद आपराधिक छवि के दाग़दार ही नहीं धनबल से चुनकर आये हैं। देश के संविधान और चुनाव आयोग की कोई चिंता किसी को नहीं और 88 फीसदी करोड़पति सांसद हैं लोकसभा में। देश से प्यार करने वाले नेता ऊपर किसी और जहां में बैठे आज भी किसी को बुरा भला नहीं कह रहे कोई नफरत की भावना किसी में नहीं है मगर हैरान हैं और चिंतित भी कि अभी तक लोग अच्छे लोगों को पहचान कर चुनना नहीं सीख पाए हैं और मतलबी लोगों की झूठी बातों में आकर खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने का काम करते हैं। सबसे अधिक निराशा सत्तधारी नेताओं और पढ़े लिखे अधिकारी सरकारी कर्मचारी डॉक्टर इंजीनयर शिक्षक वर्ग से है जो जिस शाख पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं। 
 

 

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