अप्रैल 29, 2019

हिसाब क्यों नहीं देते ( खरी खरी ) डॉ लोक सेतिया

       हिसाब क्यों नहीं देते ( खरी खरी ) डॉ लोक सेतिया 

   आपकी बात मान ली सब चोर हैं। आपने तो सबका हिसाब मांगा और जो करना था किया होगा।  आपकी बारी है अपने अपने पास दो करोड़ की नकद और अन्य सभी तरह की कुल पूंजी बताई चुनाव आयोग को। आपका वेतन इतने साल तक विधायक सांसद और प्रधानमंत्री पद पर रहते मिला होगा जो शायद इतना ही होगा आपके राजनीतिक सफर में। कोई हिसाब की भूल चूक मुमकिन नहीं आपके पास आधुनिक ऐप्स और सुविधा है ही और लेखाकार भी कोई रखा होगा। सब ठीक है मान लेते हैं। बस ये कुछ खर्च हैं जो आपके निजि खर्च हो सकते हैं देश के प्रधानमंत्री के नहीं उनका बता देना ईमानदारी से सच सच बेहद ज़रूरी है। 

    आपने क्या शानदार लिबास पहने हैं बेहद कीमती होंगे ही इतना तो बताया जा सकता है क्या जितना उन पर खर्च हुआ आपकी आमदनी से अधिक तो नहीं है। ऐसे सज धज करने वाली कई महिलाओं के पति दिवालिया होते देखे हैं हमने। कोई खज़ाना मिला हो तो बता देना किस जगह से खुदाई की थी।  ये आप ही कर सकते थे कि गरीबी का रोना रोते रहे और खुद शहंशाहों से बढ़कर रईसाना ज़िंदगी का मज़ा लूटते रहे। गांधी लालबाहदुर जाने क्या सोचते होंगे ऊपर बैठे। काश अपनी ये राजसी विलासिता को बढ़ावा देने की जगह गरीबों का दर्द समझा होता और सभी सरकारी ओहदों पर बैठे लोगों को जनता के करों से मिले धन का दुरूपयोग बंद करते। जिस देश में आधी आबादी भूखी सोती है राजनेताओं का बंगलों में शाही ढंग से रहना जनसेवा नहीं अपराध की तरह है। हिसाब लगाओ आपसे पहले किसी ने खुद पर इतना धन बर्बाद किया था। अपने भीतर झांकते नहीं लोग औरों की बुराईयां देखते हैं। शायद आप पर जितना पैसा व्यर्थ बर्बाद हुआ उस से हर दिन हज़ारों लोगों का पेट भर सकता था। कथनी और करनी का इतना अंतर कभी नहीं देखा इतिहास में बल्कि विरोधाभास साफ नज़र आता है।

  धर्म के जानकर हैं और धार्मिक दान पुण्य कोई व्यक्ति करता है पूजा अर्चना हवन यज्ञ आदमी पंडितजी द्वारा संकल्प लेता है अपने नाम पिता के नाम कुल आदि से जिसका संबंध देश के संविधान से नहीं किया जा सकता है। पुण्य आपके नाम दान आपके नाम खर्च आपके नाम ही होना चाहिए। पांच साल में जितने ऐसे कार्य किये हैं आपके व्यक्तिगत खर्च हैं अपनी आमदनी से किये जाने चाहिएं ही थे हुए भी होंगे। बता दें कि कितना खर्च दान धर्म के मद में किया है। आपकी श्र्द्धा किसी भी धर्म में हो सकती है मगर देश का संविधान धर्म निरपेक्षता का पक्षधर है। देश का खज़ाना अपनी धार्मिक आस्था को निभाने पर व्यय करना धर्म भी उचित नहीं समझेगा। सत्ता का दुरूपयोग किसी भी तरह नहीं किया जाना चाहिए। 

नहीं अपनी विदेश की यात्राओं और सरकार के इश्तिहारों से आपके गुणगान की बात नहीं करते क्योंकि उसको जनहित देश सेवा कहना आसान है। आपके घर दफ्तर रहन सहन पर हर दिन लाखों का व्यय भी परंपरा है अपने दो चार गुणा बढ़ाया ही तो है। आप के एक एक मिंट की कीमत जनता ने चुकाई है बदले में अच्छे दिन के नाम पर जो मिला सच होता तो आज अच्छे दिन आपको भी याद रहते भाषण देते समय। लेकिन किसी भी राजनेता को अपने व्यक्तिगत धर्म आदि के आयोजन खुद अपनी आमदनी से करने ही चाहिएं। 

                            सवाल पूछने वाले जवाब क्यों नहीं देते । 


 


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