अप्रैल 20, 2019

जो नहीं बचा उसका जश्न मनाते लोग ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया

  जो नहीं बचा उसका जश्न मनाते लोग ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया 

       सरकारें भी जश्न मनाती हैं एक दो तीन चार साल होने का। बाकी कितना वक़्त पास है बकाया इसका विचार नहीं करती आजकल सरकारें। पल भर का भरोसा नहीं और सामान सौ बरस का ऐसी बात है। पांच साला जश्न मातम लगता है मानो जान जाती है सत्ता नहीं। जो करना था सो ना किया जो नहीं करना था करते रहे , अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत। बोया था जो वही काटना है इतनी सीधी सी बात है मगर सरकार झूठ का बही खाता बनाती है जनता को दिखाने को अपना हिसाब छुपा कर रखती है। इक नया घोषणा-पत्र जारी करती है अगले पांच की सत्ता की बात है मगर वादे बीस साल बाद तक के। नीयत का खोट है जितना समय संविधान देता है उसी की बात हो और पिछला हिसाब साफ हो कहा जो जो किया या नहीं किया। दुनिया अजीब है सब को पता है ज़िंदगी चार दिन की है मगर कोई मौत की सच्चाई को नहीं समझता। कई पहले आये थे कई बाद में आएंगे रहना कोई नहीं चलाचली का मेला है , भीड़ में हर शख्स अकेला है।

     हम जब भी बात करते हैं आज की बात नहीं करते पीछे की बात करते हैं जो बीत गया वक़्त लौटता नहीं और आगे का कोई भरोसा नहीं आज को जीना है नज़र मिलाकर वही करते नहीं। कभी कोई बताता है मेरे पुरखे अमीर थे राजा थे वज़ीर थे जागीरदार थे। महल थे जाने क्या क्या कहानियां याद रखते हैं। कभी कोई अपने माता पिता दादा परदादा की गरीबी की बात करता है और मैंने कितनी दौलत जमा की है उस पर इतराता है। विचार नहीं करते उनके पास धन दौलत नहीं था फिर भी ख़ुशी ख़ुशी जीवन जिया और कोई मलाल नहीं था कम अधिक होने का। आपके पास कितना है मगर पाने की हवस मिटती नहीं। कोई गरीब होकर भी अमीर था और कोई धनवान रईस बनकर भी मन से गरीब है। कुछ साथ लाया नहीं कोई कुछ साथ जाना नहीं फिर अपना क्या है जो अपने उपयोग किया नेकी की वही अपनी है। संतान परिवार या किसी की खातिर बदी की तो नाम बदनाम आपका होगा , कोई भी पुरखों की बदनामी की विरासत नहीं ढोना चाहता है। अपने चेहरे पर हर सुबह कोई नकाब लगाकर निकलते हैं और शाम को घर आते उसको उतार टांग देते हैं खूंटी पर। ज़मीर मन आत्मा का सामना कोई नहीं करना चाहता , जो नहीं है कहलाना और जो वास्तव में है उसको स्वीकार नहीं करना इसी से आपकी वास्तविकता समझ आती है।

 हम लोग भी हर वर्ष बढ़ती आयु की बात करते हैं अब हम वरिष्ठ नागरिक बन गए क्या इतना काफी है हरकतें अभी बचकानी हैं। ये अच्छी बात है अपने भीतर बचपन को बचाये रखना चाहिए। मेरी जन्म 30 अप्रैल 1951 को हुआ मुझे क्या पता बड़े होने पर देखा बही में दर्ज था तब किस चीज़ का क्या भाव था सोने का गेंहूं का। समझ आया अच्छा वक़्त चला गया आयु बढ़ती गई सब कुछ ज़रूरत का महंगा होता रहा कीमती आदर्श भावनाएं नैतिकता सस्ती होती गई। शराफत दो कोड़ी की समझी जाने लगी और चालाकी का दाम आकाश पर चढ़ता रहा। साल बढ़ते रहे हम गिनती करते रहे बिना विचार किये खोया है या पाया है। 

       आपके पास करोड़ या पचास लाख रूपये थे खर्च होते रहे और आज आपका बैंक बैलेंस पांच लाख या कुछ हज़ार है तो आप क्या जश्न मनाओगे मेरे पर कितना धन दौलत थी जो लुटवा चुका अब थोड़ी बची है। आपकी आयु कितनी है का अर्थ है कितने साल जीना है अभी जो गुज़र गए उनका हासिल क्या है इस पर सोचना क्या पाया क्या खोया है। जन्म दिन नव वर्ष जैसे दिन विचार विमर्श करने को होने चाहिएं जश्न तो ज़िंदगी का हर दिन मनाना चाहिए। ज़िंदगी सालों की लंबाई से नहीं जो किया उसकी सार्थकता से आंकनी चाहिए। 11 दिन बचे हैं इस साल के अभी भी जीना शुरू नहीं किया कोई जीना सिखला दे मुझे यारो। जीने का अंदाज़ सबको नहीं आता लोग मर मर ज़िंदा होने का मातम करते हैं जन्मदिन मनाना औपचारिकता बन गई है केक खाने से ख़ुशी नहीं मिलती जियो हुए जी भर कर जियो। इक गीत याद आया है। सुनना। 



                              ना मुंह छुपा के जिओ और ना सर झुका के जिओ।

                                  ग़मों का दौर भी आए तो मुस्कुरा के जिओ।


                                     घटा में छुपके सितारे फ़नाह नहीं होते

                                 अंधेरी रात के दिल में दिये जला के जिओ।


                                 ना जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो

                                हर एक पल की ख़ुशी को गले लगा के जिओ।

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