सितंबर 25, 2018

औरत ऐसी पहेली है ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

     औरत ऐसी पहेली है ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

       हर सवाल का जवाब है वो , फिर भी लगती है लाजवाब है वो। जितना छुपाता है उतना नज़र आता है , ये कोई ऐसा पहना नकाब है वो। अपनी ही भाषा में लिखी गई किताब है वो , हिसाब सबका लेती मगर बेहिसाब है वो। उसका नशा है सब पर तारी रहता , खुद खुदाया की पिलाई कोई शराब है वो। आग ही आग है जलाती है , उसको छूलो अगर तो जैसे आब ( पानी ) है वो। सबको लगती अपनी बचपन की सहेली है , सच कहा खुदा भी न समझा ये क्या पहेली है। आप अपने को जो बताती है , नहीं होती वही कभी भरमाती है। महफिलों की शमां बन जाती है , जलती नहीं है बस जलाती है। ये भी उलझन समझ नहीं आती है , दिया है कौन कौन बाती है। सारे लोग दुनिया के डरते हैं खुदा से , खुदाई उससे खौफ खाती है। घर पे बारात उसके आती है , झूमता हर इक बाराती है। लेकर आया जो बारात था , शामत इक उसी की आती है। नासमझ हैं सभी के सभी , समझदार इक वही कहलाती है। सखी किसी की न वो सहेली है , हर इक औरत अबूझ पहेली है। हल तुम कभी न तलाश करना जी , थोड़ा हटकर ही बात करना जी। किसी आफत को बुलाते हो , पर सोच संभल कर बात करना जी। चूहे बिल्ली की इक कहानी है , बिल्ली शेर की भी नानी है। जो भी शेर कहलाता है , बिल्ली भीगी बन ही जाता है। औरत का अजब बही खाता है , सब पर उधार चढ़ता जाता है। जिस किसी ने भी आज़माया है , आज़मा कर वही पछताया है। मोम जैसी नज़र भी आती है , पत्थरों से बनाई जाती है। उसी की दिल में उसके चाहत रखती है , जिसकी चाहत ही नहीं बतलाती है। बस इसी बात का भरोसा है , उसे ललचाता पानी पूरी समोसा है। बाकी हर बात उसकी झूठी है , मनाने की खातिर ही रूठी है। हर औरत है एक जैसी ही मगर , हर कोई अपने में अनूठी है। खुद समस्या है समाधान भी है , मानते हो सब कि  बड़ी महान भी है। वही धरती है चांद भी और सितारों का आसमान भी है।  आधी दुनिया उसे समझते हो , मान जाओगे इक दिन सारा जहान है वो। चलो उससे मिलाते हैं तुम्हें , ये कहानी सुनाते हैं तुम्हें। 
 
       आपको जब पास होगा बुलाना , कहती है थोड़ा फासला तो बढ़ाना। जब कहती है नहीं कुछ भी चाहिए , समझना कि उसे सभी कुछ चाहिए। उसकी हर बात ही अजीब है , बस उसी का ही नसीब है। कोई भी उसको बराबर नहीं लगता है , पर अकेले में भी डर लगता है। दुनिया से उसको मिला कुछ भी नहीं , दुनिया मगर उसके सिवा कुछ भी नहीं। नाम उसी का वफ़ा है मगर , सच है कि वफ़ा कुछ भी नहीं। किसी हरजाई की बात करती है , बेवफ़ाई की बात करती है। आदमी है मगर अच्छा है अपने भाई की बात करती है। उसको शादी से लगता है बहुत डर , कब बजेगी शहनाई की बात करती है। सासु की बात नहीं कहती अब चाची ताई की बात करती है। रोज़ कोई परेशान करता है , काम वाली बाई की बात करती है। मौसम की बदलती है लेकिन , राम दुहाई की बात करती है। इक उसी का उजाला भी है , जो अपनी परछाई की बात करती है। जिसने ऐसी पहेली बनाई थी , याद खो गई उसी खुदा की नहीं आई थी। खोजने इसका हल जो लोग गये , खुद कहीं गुम हुए वापस नहीं लौटे लोग गये। ये कोई चाल है या फिर कमाल है , समझ पाये खुदा की मज़ाल है।

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