सितंबर 19, 2018

भगवान भी भारत भुमि छोड़ गये ( व्यंग्य कथा ) डॉ लोक सेतिया

  भगवान भी भारत भुमि छोड़ गये ( व्यंग्य कथा ) डॉ लोक सेतिया 

    आज बताता हूं अभी तक नहीं बताया क्योंकि मुझे खुद उसकी बातों का ऐतबार नहीं आता था। कोई है जो हर पल मेरे साथ रहता है और मुझसे अपनी व्यथा कहता रहता है। भगवान है यही बताता है मैं उसपर हंसता हूं और मेरे हंसने पर वही खिलखिलाता है , मुझे खुश देख खुश वो हो जाता है। बाकी दुनिया का हर कोई मुझे रुलाता है। कभी सामने कभी सपने में चला आता है , मेरे किसी भी काम नहीं आता है। मैंने कई बार मौत मांगी है नहीं देता और कोई भी मुझे कत्ल करने जब जब आता है वही मुझे बचाता है। मुझे मरने क्यों नहीं देता मैं शिकायत भी करता हूं। साफ बात है भगवान से मैं कभी नहीं डरता हूं। मुझे पागल कहता है खुद को भी पागल कहलवाता है। पागलपन का सबसे मधुर नाता है , भगवान हमेशा समझाता है। पागलपन हम दोनों को बेहद भाता है , मगर औरों को पागल बनाना हमें नहीं आता है। मैंने उस पर भी लिखे हैं व्यंग्य कई पढ़कर उसको बहुत लुत्फ़ आता है बार बार पढ़ता है याद दिलाता है। जाने खुद पर हंसने में उसे कैसा मज़ा आता है। कोई जब भी मुझे महफ़िल में बुलाता है बनकर तमाशाई संग संग जाता है। मुझे नज़र आता है औरों को क्यों नहीं दिखाई देता , मेरे सवाल को सवाल उठाकर उलझाता है। जिनको देखना ही नहीं मुझे नहीं उनसे कोई भी नाता है। अच्छा भी लगता है मगर बातें बहुत बनाता है , लो पहुंच गए हम इक महफ़िल में और अचानक कहीं वो छुप जाता है।
            ये इक मेला है जिसमें बच्चा खो जाता है। बिना सोचे समझे हर कोई ताली बजाता है। झूठ के पुल हर वक्ता बनाता जाता है मगर उस जगह रेत ही रेत है पानी नहीं नज़र आता है। वो पुरानी कहानी फिर से दिखाई देती है किताब का हर वर्क पुराना है नया शासक अपने नाम की जिल्द से सजाता है। फिर कहता है मेरा संविधान देश को चलाता है संविधान बोलता नहीं क्या हालत उसकी सत्ताधारी बनाता है। सभा में हर कोई खुद अपने ही गुण गाता है किसी और की झूठी तारीफ करता है दिल में जिसे खराब समझता है मगर इसी तरह उल्लू सीधा किया जाता है। भगवान बाद में सभी का सच मुझे समझाता है। ये जो आज किसी को महान घोषित कर रहा था उसकी पीठ में घाव लगाता है। किसी का नहीं हुआ न कभी होगा सबको अपना बताता है , जिस भी जगह जाता है उसी रंग का हो जाता है। गिरगिट भी इसको देख अपने को कम पाता है। किसी को किसी की बात पर रत्ती पर भरोसा नहीं है सबको सभी का झूठ नज़र भी आता है। कोई भी झूठ से दुश्मनी नहीं करता दोस्ती निभाता है। ये सब कब बदलेगा मरे ज़ुबान से सवाल निकल आता है , मरे बात पर कथा कोई सुनाता है। सरकार ने नया पुल नफरतों से बनवाया है , सबको उसी पुल से गुज़रने का फरमान सुनाया है। कतार में सभी को उसने लगाया है , कोई नदी नहीं है जहां उसने पुल बनाया है टोलटैक्स की तरह अपनों को बिठाया है। लूटा सभी को कुछ को भगाया है , कोई उसकी बात समझ नहीं पाया है , हर गुनाह का दोष किसी और पर लगाया है। सब हाथ जोड़ कर खड़े हैं सामने उस जैसा कोई नहीं समझा रहे हैं , सब एक जैसे हैं दल भी नेता भी इस राज़ को छुपा कर भी घबरा रहे हैं। आज़ादी की बात पर मुझसे कहते हैं तकदीर कोई किसी की बदलता नहीं है , कायरता है जो ज़ुल्म खा कर मुस्कुरा रहे हैं। मैंने उनको इक ग़ज़ल सुनाई है 65 साल होने पर किसी शायर ने कही जगजीत सिंह ने गाई है।



                 टीवी पर चैनल खुद को सारे जहां से सच्चा बता रहे हैं भगवान मुस्कुरा रहे हैं। सच किसे कहते हैं हम भी नहीं समझ पा रहे हैं। मीडिया वाले विज्ञापन के पलड़े में तुले जा रहे हैं , जो खिला रहे हैं उसी की गाये जा रहे हैं। भगवान कहां हैं सुनते हैं कि आ रहे हैं , भगवान जानते हैं क्या खिचड़ी पका रहे हैं। उधर टीवी पर सीरियल में भगवान को फ़िल्मी धुन पर नाच नाच कर मना रहे हैं , नाचने को नचनियां बुला रहे हैं। झटके लटके ठुमके लगा रहे हैं , भगवान को खुश करना है या खुद अपना दिल बहला रहे हैं। आप को हम सीधा प्रसारण दिखा रहे हैं , भगवान हमारे साथ हैं आकाश मार्ग से देखने आये हैं अपनी आंखों से दुनिया का हाल बिना विमान चालक आसमान पर खुद भी उड़ रहे हैं मुझको भी उड़ा रहे हैं। आपकी दुनिया क्या यही है जब पूछा तो सच में बहुत शरमा रहे हैं। कहना पड़ा भगवान क्या बनाकर इंसान को पछता रहे हैं , बोले बताओ कहीं इंसान नज़र भी आ रहे हैं। हैरान कर दिया भगवान को सभी लोग क्या नज़र आ रहे हैं। कुछ सोच बीच आकाश रुककर हवा में इक कथा सुनाने की बात से मुझे शायद बहला रहे हैं। चुप मुझे कहा है आगे जो सुनाई देगा लिखूंगा भगवान के वचन हैं पढ़ना , आसन लगा रहे हैं। 
 
      ये लोग खुद को इंसान समझते ही नहीं तो इंसानियत की बात कैसे होती भला। कोई हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई बताता है तो कोई जाति क्षेत्र से समझता उसका नाता है। कोई नेता कोई अधिकारी कोई ख़ास कोई आम कोई अगड़ा कोई पिछड़ा कोई दलित कोई स्वर्ण कोई कारोबार कोई अभिनेता कोई खिलाड़ी कोई किसान कोई मज़दूर हर कोई कुछ और अपनी पहचान बताते हैं। पुरुष हैं कि महिला हैं इसका भी बना लिया है भेदभाव और कितनी दीवारें उठा रहे हैं , अपने को भला और सभी को बुरा बतला रहे हैं। अच्छाई क्या है उसको भुला रहे हैं , दुनिया को जन्नत नहीं दोजख बना रहे हैं स्वर्ग जैसी धरती को नर्क बना लिया है मगर अपनी करनी पर नहीं पछता रहे हैं। कोई नहीं समझता है मैंने सबको हाथ पांव ही नहीं सोचने को दिमाग भी और समझने समझाने को अन्तरात्मा भी दी हुई है और किसी को बुराई की राह जाने या अच्छाई की राह चलने को कभी मैं आदेश नहीं देता। जो खुद करते हैं उसको मैंने किया कहते हैं मेरे साथ कितना अनुचित है करते जो अपने कर्मों के आरोप दुनिया वालों पर भी और मुझी पर लगा रहे हैं। सब  सामने देखा है तुमको भी दिखलाया है , अब इस दुनिया से मेरा नहीं मतलब कोई मैंने कोई जहां बसाया था तुम लोगों ने खुद  उसे बर्बाद किया और इसको बनाया है। चलो किसी अदालत में बेदखली का स्टाम्प पेपर लिखवाते हैं , उसके बाद अलविदा कहते हैं भगवान ने निर्णय किया है दुनिया को दुनिया वालों के भरोसे छोड़ जाते हैं। उठो भी मुझे पत्नी ने नींद से जगाया है , फिर वही ख़्वाब मुझे रात भर आया है। सपनों ने सभी को कितना तड़पाया है , हर बार कोई नया सपना बेचने को लाया है। सपनों से जनता को बहलाकर राज चलाया है , हमने खोया है सभी कुछ सत्ता वालों ने सब पाया है। भगवान कब का चले गये छोड़ कर बाकी जो बची है झूठी मोह माया है। उसका नाम लेकर किस किस ने चूना लगाया है। बाहर किसी ने घंटी बजाई है कोई आया है , जाकर देखा कोई नहीं है जाने किस का साया है। 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत सार्थक सामयिक👌👍