खुदा से शिकायत ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
हमेशा सोचा था
रहा नहीं गया
कह दिया।
खुदा तूने किस बात का
बदला लिया
सारी ज़िंदगी मुझे
दर्द ही दर्द दिया।
दर्द ही दर्द दिया।
बोला हंसकर मुझसे खुदा
तुझको मैंने
प्यार किया यही किया।
तुझे दर्द मिले
ज़ुल्म किये सभी ने
हर दिन अपमान का
विष भी पिया।
विष भी पिया।
पल भर नहीं
भूला मुझको कभी
बस इक मेरा
हमेशा नाम लिया।
हमेशा नाम लिया।
समझा दुःख सहकर
सभी के दुःख
सभी के दुःख
किसी से कभी
नहीं बदला भी लिया।
मैंने कहा बता मेरे खुदा
सब का दर्द मैंने सहा
अपना समझ औरों का
दर्द सदा है लिखा।
दर्द सदा है लिखा।
कोई तो होता मेरा
भी साथी दुनिया में
भी साथी दुनिया में
हर घड़ी सबसे
अकेला ही मैं लड़ा।
तुमको सच बोलने की
ताकत दी थी मैंने
ताकत दी थी मैंने
खुदा बोला तभी
कभी नहीं तू किसी से डरा।
लेकिन फिर भी
मिला मुझे सच का सिला
मिला मुझे सच का सिला
रोया मैं झूठ रहा
हंसता हुआ खड़ा।
खुदा हंसा हंसकर
इतना ही कहा
इतना ही कहा
सच बोलकर निडर
तू है हमेशा रहा।
झूठ बाहर से
हंसता हुआ लगता था
हंसता हुआ लगता था
अंदर से रहता था
सच से डरा डरा।
सुख मिला हो या
दुःख हो मिला किसी को
दुःख हो मिला किसी को
बड़ी बात है
कौन किस तरह है जिया।
दुनिया को
मिला सब कुछ लेकिन
मिला सब कुछ लेकिन
उनको नहीं
जो तुझको मिला है खुदा।
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