फ़रवरी 11, 2021

अपशब्द बोलकर लीद मत खाओ ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

  अपशब्द बोलकर लीद मत खाओ ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

चलो सबसे पहले उनकी कही बात को उनके तराज़ू के पलड़े पर रखते हैं तोलते हैं बाट भी वही रखना ज़रूरी है। तो कहा है इक जमात है जो जिस किसी का आंदोलन हो वहीं मिलते हैं। बड़ी देर कर दी मेहरबां बताते बताते हम नहीं समझते सोचते रह जाते। ये राजनेता कौन हैं जो हर गली हैं जाते हर सभा में ये नासमझ पढ़े लिखों को सबक पढ़ाते। छुपाते हैं अपने सारे बही खाते शर्म इनको नहीं आती झूठ को सच बताते। धर्म की बात धर्म वालों पर छोड़ो सत्ता मिली है राजधर्म समझो निभाओ नहीं जोड़ सकते देश को मगर इस तरह मत तोड़ो मरोड़ो। सच की बात समझो मन की बात करना छोड़ो मन की बात मतलब की बात होती है मन आत्मा ज़मीर कुछ और होते हैं खुद से खुद मुलाकात होती है। कुर्सी मिल गई तो खुद को सर्वज्ञानी समझने लगते हैं हर विषय पर भाषण देने को किसी से लिखवाने लगते हैं अन्यथा तथ्य गलत बतलाने लगते हैं। ये राजनेता कौन हैं जो कभी किसी कभी दल जाने लगते हैं जो दुश्मन थे दोस्त बनकर शासन चलाने लगते हैं। अर्थव्यवस्था का सबक जो समझाने लगते हैं उनको हिसाब अपना समझने में बड़े ज़माने लगते हैं। इतिहास बदलकर गलत को सही सही को गलत समझते हैं अपनी नासमझी पर हंसकर रुलाने लगते हैं। जिस विषय पर कुछ नहीं जानते हर उस विषय पर टीवी पर सभा में भाषण चर्चा कर गंगा को जमुना बताने लगते हैं। होश इनके चुनाव हार कर ठिकाने लगते हैं। माहमारी की बात से बचाव से उपचार तक कौन है जो सब को समझाता है नहीं जिसको क ख ग तक इस का आता है जनाब हर किसी के अंगने में आपका क्या काम है। जो है नाम वाला वही तो बदनाम है। परजीवी कितने हैं कौन हैं कैसे कैसे हैं सबकी तलाशी ज़रूरी है। जिनका गुज़ारा बिना सत्ता के नहीं होता है सफ़ेद हाथी देश पर बोझ हैं उनकी पहचान अवश्य की जाए देशसेवा के नाम पर लूट बंद की ही जाये।  
 
चलो आज धर्म वालों की तर्ज़ पर सच झूठ और अर्धसत्य की परख करने को दो पुरानी धार्मिक कथा और बोध कथा नीति कथा की चर्चा करते हैं। कथा से पहले इक लोक कहावत जैसी बात करते हैं किसी चमड़े के धंधे वाले को इक दिन राजा बनाया तो उसने चमड़े के सिक्के जारी कर दिए। इक और बात कहते हैं इक भिखारिन को राजा ने रानी बनाया तो उसको तब तक चैन नहीं आता था जब तक भीख नहीं मांगे इसलिए वो रानी बनकर भी महल की दीवारों से भीख मांगती थी। भीख मांगने की आदत खराब होती है। अब धार्मिक कथा शुरू करते हैं। इक साधु राजा के पास भिक्षा मांगने आया तब राजा ने कहा अभी मेरे पास घोड़ों की लीद है वही उसके बर्तन में डाल दी। भगवान आपको कई गुणा फल दे आशीर्वाद दिया और चला गया। भीतर जाकर अपनी पत्नी को बताया तो उसने समझाया ये आपने क्या कर दिया है। जानते हैं आपको अगले जन्म में वही लीद कितना बड़ा ढेर खाना पड़ेगा। राजा की पत्नी साथ रहती थी और हर पत्नी पति की गलती बतलाती है चाहे राजा हो या भिखारी। जिनकी पत्नी साथ नहीं रहती उनको कौन गलती समझा सकता है। खैर राजा उस साधु की कुटिया पर गया क्षमा मांगने तो देखा वहां लीद का अंबार लगा हुआ था। साधु ने बताया दान की वस्तु इसी तरह बढ़ती है और अभी कुछ पल हुए हैं आपके जीवन काल तक इसका पहाड़ बन जाएगा। 
 
राजा ने विनती की कोई उपाय बता सकते हैं। साधु ने कहा मुझे पिछले जन्म का फल मिला है तब मैंने आपसे भीख मांगी थी आपने कुछ नहीं दिया और मैंने आपको अपशब्द बोले थे। अपशब्द का बदला मुझे लीद खानी पड़ेगी। फिर भी आप आएं हैं तो आपको उपाय बताता हूं। आपको कुछ ऐसा करना होगा जिस से शहर भर के लोग आपको गाली अपशब्द बोलकर आपकी ये लीद खुद खा लें। तब राजा ने इक रथ पर किसी नर्तकी के साथ हाथ में शराब की बोतल लेकर सवारी निकाली जिस के आगे आगे उनके कर्मचारी घोषणा करते जाते कि राजा जी आ रहे हैं उनका अभिवादन करें। और हर नगरवासी बाहर निकलता राजा के पाप कर्म को देखता और उसे गाली अपशब्द कहता। मगर इक दार्शनिक को देखा राजा को नमस्कार किया अपशब्द नहीं बोले। राजा ने उसको दरबार आने को संदेश भिजवाया। आपने मुझे अधर्म करते देखा कुछ नहीं कहा क्यों क्या डरते हैं। नहीं दार्शनिक बोले मुझे आपके बदले लीद नहीं खानी है उतनी बची होगी आपको खुद खानी होगी। आपके सभी नागरिक नहीं समझे और आपकी बात दोहराते रहे मुझे नहीं किसी की अनुचित बात का समर्थन करना मगर उसके फल का भागीदार भी नहीं बनना है। 
 
उनकी पत्नी साथ रहती तो अवश्य समझाती आपको जीवन भर भीख मांगनी पड़ी क्योंकि आप ने पिछले जन्म कुछ ऐसा किया होगा मगर अब इस जन्म अपशब्द बोलकर फिर से लीद खाने का काम मत करो जाकर अपनी गलती की क्षमा मांग लो ये लोग माफ़ कर देते हैं।  

कोई टिप्पणी नहीं: