कभी मस्ती में यारो हम भी होंगे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
कभी मस्ती में यारो हम भी होंगे
हुए सब दूर रंजो- ग़म भी होंगे।
सुलगती रेत का दरिया यहां है
यहीं बारिश के सब मौसम भी होंगे।
बहुत लंबा जहां फैला हुआ है
मुसाफिर लोग कुछ पैहम भी होंगे।
किसी तरहा मना लेंगे उन्हें हम
अगर रूठे हुए हमदम भी होंगे।
नहीं आंसू बहेंगे अब कभी भी
हमारे दर्द जितने कम भी होंगे।
न भरने ज़ख्म देंगे लोग अब पर
मिला जो चारागर मरहम भी होंगे।
नज़र आते नहीं "तनहा " कहीं अब
कभी इक रोज़ हर आलम भी होंगे।
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