नानक नीच करे विचार ( मनचाहा दर्पण ) डॉ लोक सेतिया
आज लिखने लगा था जिस विषय पर इक दोस्त ने मिलती जुलती कहानी का इक वीडियो मुझे व्हाट्सएप्प पर भेजा और मैंने अपनी बात लिखने से पहले उस को सुना और शुरुआत उसी से करना उचित समझा । जंगल में इक हाथी नदिया में नहाकर जा रहा था तो उस ने इक सूअर को सामने रास्ते पर आते देखा । कीचड़ से भरे सूअर से बचाव को हाथी ने रास्ता छोड़ दिया गंदगी से बचाव की खातिर । सूअर ने पूरे जंगल में जा कर ये बात इस तरह फैलाई कि सबसे बड़े जानवर ने उस से डरकर अपना रास्ता छोड़ दिया । जंगल के सभी हाथी मिलकर उस हाथी के पास आये और कहा कि तुमने हमारी नाक कटवा दी सूअर को रास्ता दे कर । हाथी ने बताया ऐसे लोगों की बातों का कोई मतलब नहीं होता है जो वास्तविकता से अनजान अपनी झूठी बढ़ाई किया करते हैं । मैं अगर चाहता तो उसे अपने पांव के नीचे कुचल सकता था रास्ते से हटने की ज़रूरत नहीं थी , लेकिन मैं उसकी बात की तरह उसकी गंदगी और कीचड़ से अपने को गंदा नहीं करना चाहता था इसलिए ऐसा किया । इधर कितने आदमी कीचड़ उछालने का कार्य कर खुद को बलशाली समझ रहे हैं जबकि ये वास्तव में उनकी बौद्धिक दुर्दशा का प्रमाण है । आधुनिक युग में उन महान पुरुषों जिन के नैतिक आदर्शों और ऊंचे मूल्यों पर चलने का साहस तक नहीं को लेकर झूठा मनघड़ंत प्रचार करने वाले समझते हैं सूअर की बात जंगल वाले मान सकते हैं । हमको ऐसे लोगों की बातों का जवाब नहीं देना चाहिए बल्कि उनसे कभी सार्थक संवाद संभव ही नहीं है । हक़ीक़त तो ये है कि जो अपने पूर्वजों की निंदा करते हैं खुद कुछ भी बन ही नहीं सकते तभी ऐसा करते हैं । जिन महान लोगों ने जीवन भर देश समाज की भलाई प्रगति का कार्य किया उनकी आलोचना करना कुंठित मानसिकता की निशानी है ।
बात सबसे पहले ख़ुद को देखने समझने की होनी चाहिए मगर कमाल है सभी को हर किसी की चिंता है ख़ुद अपनी नहीं । जिसे भी देखते हैं सभी दुनिया भर की कमियां ढूंढते हैं कहीं अच्छाई भी किसी की दिखाई देती है तो उसका कोई महत्व नहीं समझते बल्कि कहते हैं इस में अचरज की कोई बात नहीं है । हालांकि सब को भटकना सहज लगता है बड़ा आसान होता है दुनिया जिस तरफ जा रही उसी ओर चलते जाना क्योंकि ऐसे में कोई सवाल नहीं करता सही क्या गलत क्या । दुनिया से अलग हटकर अपनी कोई राह बनाना सरल नहीं होता है । बहुत विरले लोग होते हैं जो बहती धारा के विपरीत तैरने का जोख़िम उठाते हैं भले लोग उनको नासमझ नादान ही नहीं पागल कहते हैं । सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन कंप्यूटर इंटरनेट ने एक तरफ सबको अपनी बात अपनी सोच विचार ज़ाहिर करने को माध्यम उपलब्ध करवाया तो दूसरी तरह अपनी नासमझी और बिना पढ़े समझे कुछ भी कहने पर ख़ुद अपनी ही कलई खुलने का भी कारण बन गया है यही मंच । कभी लोग बड़े और उच्च आदर्शवादी महान लोगों की बातें किया करते थे ताकि उन से कोई सबक सीख कर अपने जीवन का और समाज का कल्याण संभव हो । लेकिन आजकल जो होने लगा है बहुत ही अनुचित और नकारात्मक आपत्तिजनक है किसी भी बड़े व्यक्ति के व्यक्तत्व की विशेषताओं को भी गलत ढंग से प्रस्तुत कर उनकी छवि को धूमिल करने का जतन करना । शायद हमने भुला दिया है कि सूरज की तरफ थूकने से खुद अपने आप को गंदा करते हैं । आजकल यही काम अधिकांश लोग करते ही नहीं बल्कि समझते हैं कि उनका कार्य बहुत ही प्रभावशाली है क्योंकि तमाम लोगों को अपनी अतार्किक मनघड़ंत बातों से विवश कर दिया है रात को दिन समझने को ।
मुझे अजीब लगता है जब किसी की साहित्यिक रचना की अथवा शानदार उदाहरण की सराहना करता हूं तो तमाम लोग विषय और संदेश समझने की जगह कोई दूसरा कारण तलाश करने लगते हैं । मेरा स्वभाव है अनुचित या गलत का विरोध करने के साथ अच्छी और शिक्षप्रद बात की खुले मन से तारीफ़ करना । इस कार्य में जिस की बात है उस का किस विचारधारा से क्या संबंध है इस पर ध्यान नहीं देता । इक बड़ी हैरानी की बात आजकल दिखाई देती है हर कोई खुद अपने आप को महान समझने एवं साबित करने को व्याकुल लगता है । कुछ ख़ास कर दिखलाने की जगह ख़ास और समाज में महत्वपूर्ण दिखाई देने की चाहत ने लोगों को इक ऐसी राह पर चलने को विवश कर दिया है जिस की कोई मंज़िल ही नहीं कोई अंत नहीं है । ऐसा अक़्सर होता है बल्कि अधिकांश होता है जब भी किसी से कोई गंभीर विषय पर चर्चा करते हैं तब जैसे उनको सही घटना विवरण या वास्तविकता को समझने को उनके अभिमत से अलग कोई पक्ष का ज़िक्र करते हैं तो सभी समझने की जगह बचने की राह देखते हैं । किसी बहाने कोई अन्य बात करने लगते हैं या फिर कहते हैं बस कभी बाद में वार्तालाप करते हैं । विडंबना की बात है सार्थक संवाद भी लोग सोचते हैं जब भी उनको आवश्यकता सुविधा हो तभी होनी चाहिए ।
नानक और कबीर जैसे लोग दुनिया में सच्चाई और भलाई को खोजते थे और उनको सभी में कुछ न कुछ अच्छा दिखाई देता था । शायर कवि कथाकार लेखक लोग प्यार और मानवता की विचारधारा को सब से अधिक महत्व दिया करते थे और किसी से भी बैर की भावना नहीं रखने की ज़रूरत समझते थे । ये कितना अजीब खोखलापन है कि तमाम लोग प्यार मुहब्बत की नहीं टकराव की मनमुटाव की आपसी सदभाव की नहीं अपितु अकारण द्वेषभावना की सोच रखने लगे हैं । किसी को छोटा साबित कर नीचा दिखला कर कोई बड़ा या महान नहीं बन सकता है बल्कि ऐसा करना घटिया कार्य कहलाता है । मनुष्य में गुण अवगुण दोनों ही होते हैं और हमको हर किसी से अच्छाई सीखनी चाहिए और बुराई से बचना चाहिए । अपनी शारीरिक ही नहीं मानसिक पवित्रता को भी गंदगी से बचाना आवश्यक है ।
1 टिप्पणी:
बढ़िया लेख....लोग दूसरों में बहुत कमियां निकालते हैं खुद के अंदर नही झाँकते
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