जनवरी 09, 2024

शीशा हो या दिल हो , आख़िर टूट जाता है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

शीशा हो या दिल हो  , आख़िर टूट जाता है ( व्यंग्य )  डॉ लोक सेतिया 

बनाने वाले ने हज़ारों तूफ़ान इक छोटी सी जगह भर कर नाम रख दिया दिल । इस दिल के टुकड़े हज़ार हुए कोई इधर गिरा कोई उधर गिरा । फिल्म वालों ने दिल का कारोबार खूब जमकर किया और ग़ज़ब ढाया दिल को बेचा दिल से दिल टकराया पैसा बनाया अश्क़ों का इक दरिया हर तरफ बहाया । दिल का क्या कसूर कब क्यों किस पर आया । सच्ची खरी बात तो ये है सभी सीने में दिल रखते हैं लेकिन सबका दिल धड़कता नहीं है प्यार के नाम से । कोई सोने के दिल वाला कोई चांदी के दिल वाला पत्थर का है मतवाला तेरा दिल । क्या लाजवाब गीत है 1961 की फ़िल्म माया का बस कोई नहीं जानता दिल से खेलने का ये सिलसिला कब कैसे किसने शुरू किया । यकीनन ये किसी दिमाग़ की खुराफ़ात रही होगी दिल बेचारा कब समझता है दिमाग़ वाले क्या क्या नहीं खेलते हैं । चांदी की दीवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया इक धनवान की बेटी ने निर्धन का दामन छोड़ दिया । खिलौना जान कर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो कोई पागल गीत जाता है और अमीर पिता अपने बेटे का पागलपन दूर करने को बाज़ार से इक नाचने वाली को घर लाता है । मुन्नाभाई जब नकली डॉक्टर बन अस्पताल चलाता है तब इक शख़्स बार बार हर्ट अटैक का अभिनय दोहराता है । जाने ये कौन सा झोला छाप है कि हरजाई है जिस ने राम किट नाम से तीन दवा की सोची समझी चतुराई है । शायद उसको दिल को रोगों से कैसा बचाना है सबक नहीं समझाना अस्पताल में दिल के मरीज़ों को बुलावा भेजना पसंद आया है । राम का नाम सही समय याद आया है जिसे देखो हर कोई राम धुन गाता है प्रभु राम का आमंत्रण आया है , इक नई रामायण भी टेलीविज़न पर दिखला रहे हैं । राम बेघर थे उनको इक शानदार भवन में बसा रहे हैं दिल से राम कब के निकल चुके हैं अब पत्थर की प्रतिमा में प्रवेश करवा रहे हैं । अभी किसी को राम किट का प्रसाद बांटने का ख़्याल नहीं आया है ये भी किस्सा आपको नहीं सुनाया है । कलयुग में जो भी नहीं हो वही काफी है आपको मनमानी की छूट है हर बात की माफ़ी है । 
 
ये अभी इक सपना है कभी बस रेलगाड़ी में सस्ती दवाएं बिकती थीं सब को समझाते थे लाख मर्ज़ की एक दवा है क्यों न आज़मा ले । सच है आजकल बड़े बड़े डॉक्टर कुछ इसी तरह जिस जगह जैसे राह मिले रोगियों की तलाश करते हैं । बड़ा फैला हुआ ये व्यौपार है हर गली चौराहे पर कोई न कोई इश्तिहार है , सभी अस्पतालों में नर्सिंगहोम में रोगियों की भीड़ है जिधर जाओं भरमार ही भरमार है भटक रहे हैं लोग मिलता नहीं चैन लुट रहा दिल का करार है । हमारे देश की शिक्षा स्वास्थ्य सेवा प्रशासन पुलिस न्याय से हर राज्य की देश की सरकार भगवान भरोसे है । सोचने समझने वाले हैरान हैं भारत देश की जनता का कोई भी नहीं बस वही इक भगवान है । कुछ साल पहले ये सिलसिला शुरू हुआ था असली देसी घी ख़राब है बंद किया था कुछ और शुरू करवाया था , जब भैंस गई पानी में तब समझ आया था , किसी कंपनी ने ये कारनामा करवाया था और सभी को स्वस्थ्य रहने की चाह में धीमा ज़हर खिलाया था । आजकल हर कोई मासूम है हर कोई ही ज़ालिम है दिल तोड़ने का अजब ये सितम है ये रोग सभी ने पाला है हर कहानी में दिल की बात मिर्च मसाला है । दिल हमने भी कितनी बार जोड़ा है अब गिनती नहीं याद किस किस ने दिल अपना तोड़ा है , इश्क़ की राह में कौन दोस्त रकीब है ये सवाल कठिन थोड़ा है कौन है जिस ने ख़्वाब तोड़ा है कोई है जो रस्ते का रोड़ा है । 
 
इक फ़िल्म आई थी जिस में समझाई किसी ने बाबू भाई मोशाय को अपनी चतुराई थी , वहम का ईलाज कहते थे हमीम लुकमान के पास नहीं था उनको लड़नी गरीबी भूख से लड़ाई थी बस इसलिए ऐसे मरीज़ को गंभीर बिमारी बतलाई थी करनी तगड़ी कमाई थी । ये इक नई पहेली है कौन स्वास्थ्य से लेकर सब का बाज़ार लगाए है हर जगह इक वही नज़र आये है रोग को जड़ से मिटाना है कहने वाला हर रोग की दवा बनाए है । खोटा सिक्का जिस का खरा कहलाता है बस वही सच्चा सभी को झूठा साबित कर चोर चोर चिल्लाता है । तन मन दोनों रोगी हैं सभी जोगी हैं सभी भोगी हैं । शायर निदा फ़ाज़ली जी की ग़ज़ल से शेर अर्ज़ है ,  औरों जैसे होकर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में  , कुछ लोगों का सीधा-पन है कुछ अपनी अय्यारी है । आजकल ज़माना इसी तरह की जादूगरी का है झट पट अपनी सूरत बदल लेते हैं सीरत वही रहती है मक्कारी वाली ।  सीता को सब आता है रस्सी पर चलना नहीं आता गीता कुछ भी कर सकती है शक़्ल दोनों की एक जैसी है जब सभी बहरूपिए हों तो पहचानना आसान नहीं है । आजकल सब मिलता है सिर्फ दिल-ए - नादान नहीं । 
 

 

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