जनवरी 20, 2024

सबकी अपनी रामकहानी ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया

      सबकी अपनी रामकहानी ( लघुकथा ) डॉ लोक सेतिया 

पत्रिका आजकल कागज़ के पन्नों पर नहीं सॉफ्टवेयर द्वारा पीडीऍफ़ फ़ाइल पर प्रकाशित होने लगी है ऐसी ही इक पत्रिका जो स्वयं को विश्व प्रसिद्ध बताती है ने सभी लिखने वालों को अपनी अपनी रामकहानी आगामी अंक के लिए घोषित तिथि तक भेजने का अनुरोध किया । कुछ पल बाद नियम घोषित किया गया पंजीकरण का शुल्क सौ रूपये भेजना अनिवार्य है । पिछले अंक में तीन सौ रचनाएं छपी थी अर्थात तीस हज़ार पत्रिका की इक पीडीऍफ़ फ़ाइल बनाने की कीमत पहले आओ पहले छपवाओ की नीति निर्धारित हुई । जिनको सौ रूपये नहीं देने उनकी मर्ज़ी भला इतने नेक कार्य में इतना भी योगदान कोई नहीं करना चाहता । हम सिर्फ एक ही को जानते हैं उन्हीं से अनुमति मांगी ताकि कोई कॉपीराइट का झगड़ा बाद में नहीं खड़ा हो । उनकी जगह कोई प्रतिनिधि मिले सचिव जैसे पद की तरह हालांकि आजकल निजि सचिव नहीं ख़ास लोगों के प्रवक्ता प्रतिनिधि जनसंपर्क अधिकारी जैसे प्रभावशाली शब्द उपयोग किए जाते हैं । देखा वहां लंबी कतार लगी थी अनगिनत लोग उनके आयोजित होने वाले कार्यक्रम की जानकारी सब से पहले अपने टीवी चैनल पर दिखाना चाहते थे । हर कोई चाहता था पल पल की खबर जिस घड़ी वो आयोजन स्थल को चलें लाइव दर्शक को दिखला सकें सभी की सीधे प्रसारण की आई बी वैन प्रतीक्षा कर रही थी । 
 
जाने ये करिश्मा कैसे हुआ कि मैंने खुद को भगवान जी के विशेष कश में उनके सामने पाया । जैसा कि हम सभी को मालूम है ईश्वर बिना कुछ बोले हमारे अंतर्मन की बात सुन लेते हैं वही हुआ । प्रभु बोले पता है क्या चाहते हो आप लेखक , लेकिन जिस रामकहानी की अनुमति लेना चाहते हो उस का कोई अता - पता कोई ओर - छोर खुद मुझी को ख़बर नहीं है । राम तो एक ही है सृष्टि की शुरुआत से हर जगह कण कण में रहता है अब ये किस की बात हो रही है कौन कहां से कहां आने-जाने वाला है । मैंने भी इतना शोर अपने नाम को पहले कभी नहीं सुना है बस उत्सुकता है ख़ुद देखते हैं क्या खेल तमाशा किस की माया है । पूछने से पहले ही बता दिया किसी हाथी घोड़े रथ या विमान की आवश्यकता नहीं उनको जहां जाना पहुंच जाते हैं । कोई बुलाए तो सही शुद्ध अंत:करण से  , समय व्यतीत होता रहा प्रभु को कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी क्योंकि सभी मुख से जो बोल रहे थे भीतर अंत : करण से आवाज़ नहीं आ रही थी । मैंने कहा भगवन आप व्यर्थ पुरातन ढंग से अनुरोध पाने की राह देख रहे हैं आजकल व्हाट्सएप्प सोशल मीडिया पर संदेश भेजते हैं सभी और देख लो नगर नगर क्या उत्सव का माहौल है । भगवान मान गए और कहने लगे आप को जिस भी लोकेशन का पता है चलते हैं साथ साथ , और मैंने गूगल मैप से सही दिशा निर्देश पाने को जगह शेयर कर दी । 
 
पकल झपकते ही हम पहुंच गए लेकिन प्रवेश द्वार पर पहचान निमंत्रण पत्र की मांग सुरक्षाकर्मी करने लगे । भगवान ने समझाया भला भगवान जिस जगह रहते या रहने वाले उस जगह किसी को चिंता करने की क्या आवश्यकता है । जो सभी का रखवाला है उसकी रक्षा कोई इंसान करेगा , समझदार हो जानते नहीं उस की मर्ज़ी बगैर इक पत्ता नहीं हिल सकता तो उस का घर कोई तोड़ सकता है बल्कि किस इंसान की हैसियत है भगवान को रहने को कोई आवास बनवा कर दे सके । संसार को बनाने वाले को दुनिया का कोई इंसान कुछ भी देने योग्य नहीं है जो भी है उसी का है फिर ये तेरा मेरा का झगड़ा कौन कर रहा है । मुझे निराश देख प्रभु ने कहा लेखक काहे निराश हो जिस रामकहानी की ख़ोज कर रहे अभी शुरू ही नहीं हुई है बस इक सपना है जो लोग नींद में सोते हुए नहीं दिन को जागते देख रहे दिखलाना चाहते हैं । क्या तुमको मालूम है इन में किसी को कोई रामकहानी पढ़नी भी नहीं है , ये सभी तो बचपन की चित्रकथाओं से आगे कुछ भी जानते तक नहीं हैं । बड़ी बड़ी किताबें पढ़ना इनको पसंद ही नहीं मगर बिना किसी भी ग्रंथ को पढ़े समझे ये तमाम उन पर बहस चर्चा झगड़े करते हैं । कोई वास्तविक ज्ञानवान या संत इनको कुछ नहीं समझा सकता है । मेरी जो भी रामकहानी है उसका प्रारंभ कोई नहीं जानता और अंत कभी हो नहीं सकता है ये जितनी भी धार्मिक कथाओं की सभी बात करते हैं ये मेरी वास्तविक कहानी में किसी कहानी के किस्से हैं जो वाचक विषय को समझाने को घड़ते रहते हैं । जैसे धरती गगन का कोई सिरा नहीं मिलता ठीक उसी प्रकार विधाता की कोई कहानी किसी किताब में कैद नहीं की जा सकती न ही उसे किसी दायरे में सीमित किया जा सकता है । ये कोशिश करने वाले समझते हैं सब जानते हैं जबकि जो जानता है कि वो सब नहीं जानता कुछ जनता है , लेकिन जो सोचता है सभी कुछ जानता है वो कुछ भी नहीं जानता है । 
 
 छोटी विचित्रताएँ - मुझे अपनी कहानी बताओ

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