मार्च 08, 2023

होली का सरकारी फ़रमान ( राज़ की बात ) डॉ लोक सेतिया

     होली का सरकारी फ़रमान ( राज़ की बात ) डॉ लोक सेतिया  

आपने क्या समझा कि ये आपके हमारे लिए कोई खुशखबरी की बात है , जी नहीं हज़ूर ये उनकी आपस की बात है । सरकार ने ये इश्तिहार सरकारी विभागों को भेजा है होली पर सभी अधिकारी कर्मचारी सबको ये संदेश  ध्यान पूर्वक पढ़ना है बिल्कुल उसी तरह जैसे शपथ उठाई जाती है । लिखा है सरकार जो चाहे सब संभव है कुछ भी नहीं जो सरकार नहीं कर सकती है लेकिन क्या सरकार को जो करना चाहिए वो सब करना है गंभीर विषय यही है । सरकार को सब नहीं करना चाहिए सिर्फ वही करना चाहिए जिस से सरकार के सरकार होने का मतलब समझ आता रहे हर किसी को । सरकार चाहती है जैसा हो ये शब्द लिखने से मंशा साफ नहीं हो जाती है मगर सरकार चाहती है ऐसा होना लाज़मी है लिखने का अर्थ है कुछ भी हो आपको आदेश का अनुपालन करना ही होगा अन्यथा आप दोषी समझे जाएंगे । 75 साल से सभी राजनेताओं अधिकारियों ने यही किया है बस सरकार चलती रहनी चाहिए भले सब रुक जाए और सरकारी तौर तरीका कभी किसी हाल में बदलना नहीं चाहिए । साकार जनता चुनती है बनाती है लेकिन आज तक कभी किसी ने नहीं समझा कि सरकार जनता की या जनता की खातिर है । सरकार किसी शासक नेता की कहलाती है या किसी राजनैतिक दल की अथवा गठबंधन की मिली जुली खिचड़ी जैसी सरकार । खिचड़ी अमूमन मज़बूरी से खाई जाती है शौक से अधिकांश लोग नहीं खाते हैं । जिनको खिचड़ी पसंद भी होती है उनको भी खिचड़ी के हैं चार यार घी , पापड़ ,  दही , अचार साथ चाहिएं ही । गठबंधन भी कुछ मिलता जुलता होता है यारी निभाने में सरकार अक्सर खुद और बीमार होने लगती है । 

     विषय की बात करते हैं जो भी कुछ बनाता है वो उसकी होना आवश्यक नहीं है , घर कोई बनाता है उस में रहना किसी और को होता है । जनता सरकार को बनाती है पर जनता सरकार की मालिक नहीं सरकार को जनता अपनी गुलाम लगती है । शासक बनकर जनता के पैसे से शानो शौकत ठाठ-बाठ राजनेताओं का अधिकार होता है और जनता को उसका हक़ भी सरकारी ख़ैरात की तरह मिलता है । होली पर सरकारी फ़रमान जारी हुआ है कि सरकार की धूमिल होती छवि को झाड़ पौंछ कर सुथरा नहीं चमकदार बनाया जाना चाहिए । सोशल मीडिया पर ध्यान पूर्वक निगाह रखनी है और गरीबी भूख बेरोज़गारी से लेकर बेदर्दी एवं तानाशाही को भला किया जा रहा घोषित करना ज़रूरी है । उदाहरण स्वरूप एमरजेंसी को आपात्काल इक अनुशासन पर्व है के इश्तिहार चरों तरफ दिखाई देते थे । सब को यकीन होने लगा था देश कोई त्यौहार मना रहा है बस उसको दोहराना है सुशासन लाना घोषित करना है जनता को उल्लू बनाना है । जनता को देशभक्ति का सबक पढ़ाना है खुद देश को बर्बाद कर जश्न मनाना है , नीरो की तरह बंसी बजाना है । अगला चुनाव जीतना है शतरंज का खेल खेलते हैं हर दांव आज़माना है । सबसे ज़रूरी मोहरा वज़ीर है फ़िल्म का नाम भी वज़ीर है ये आख़िर में राज़ बताना है जो खुद को राजा रानी घोड़े हाथी समझते रहे उनको प्यादों से पिटवाना है । मौसम भी आशिक़ाना है कहीं से सत्ता को अपने पास लाना है पाक़ीज़ा का युग नहीं कोठे पर मुजरा नहीं देखने जाते ठेकेदार से नवाब साहब तलक सरकार का जिनसे गहरा याराना दोस्ताना है उनका दिल क्या मांगता है समझना है उनको समझाना है । सत्ता की नर्तकी को दरबार में नचवाना है आइटम सॉन्ग का लुत्फ़ उठाना है महिला दिवस को होली संग मिलाना है औरत को बस इक इस्तेमाल की चीज़ बनाकर उसका भविष्य उज्जवल बनाना है इक्कीसवीं सदी का आधुनिक ज़माना है । राज़ खुला तो बात ये निकली है कि सरकार महिला दिवस पर होली का हास्य कवि सम्मेलन आयोजित करवाना चाहती थी इस लिए इक व्यंग्यकार जो महिलाओं की बड़ी चिंता करता है उसी से ये फ़रमान लिखवा कर भिजवा दिया लेकिन समय पर गंभीर बात को इक मज़ाक़ था कहकर पीछा छुड़ा लिया है । 



 
  


1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Bdhiya lekh....Vastav me sarkaar vo nhi krti jo krna chahiye