मार्च 07, 2023

भगवान परेशान मैं हैरान ( होली की ठिठोली ) डॉ लोक सेतिया

     भगवान परेशान मैं हैरान ( होली की ठिठोली ) डॉ लोक सेतिया 

नशे का चढ़ा हुआ खुमार था 
मैं था फुटपाथ पर खड़ा हुआ
 
कर रहा नहीं आने वाले का
बड़ी बेताबी से इंतिज़ार था । 
 
होली के रंगों का सजा इक 
हुड़दंग का खुला बाज़ार था 
 
अजनबी जाना पहचाना वही 
घोड़े पर शान से सवार था । 

उसने मुझे आवाज़ देकर बुला 
नाम पता ठिकाना पूछ लिया  
 
याद नहीं देखा लगते कहा तो
बतलाया कलयुगी अवतार था । 
 
कहने लगा मुझे लिखते हो क्या 
किसलिए भला मिलता है क्या 

मैंने कहा खुद क्या तुमने किया 
दुनिया बना नहीं बंदा खुश था ।
 
ऐसा लगा परेशान था ख़ुदा बड़ा
थोड़ा सा घबरा गया शरमा गया
 
कोई जवाब नहीं देने को सूझा
बेबस बेचारा हुआ लाचार था । 

उसने सुनाई दास्तां ज़ुबानी तब
दुःखी आवाज़ भरा हुआ गला 

दुनिया ज़माने से इंसानों से
भगवान हो गया बेज़ार था । 

दिल में छुपा कर रखते हैं 
मुहब्बत जिस को कहते हैं  

सोशल मीडिया पर क्योंकर 
तमाशा बनाया दिलदार था ।
 
बस शोर है हर तरफ मचा यही
भगवान है धर्म क्या चीज़ क्या
 
वजूद बदल गया कोई बोलो
कब भला मैं कहीं सरकार था । 
 
जिस ने जैसा चाहा मर्ज़ी से
खिलौना बना खेला है मेरे संग 

हैरान हूं परेशान हूं इंसाफ़ करो 
बेख़ता सज़ा का न हक़दार था ।  
 

तस्वीरों तकरीरों सोशल मीडिया
के जंगल में भटका दिया मुझको 
 
नहीं जानता कौन भगवान बना हुआ
मैं तो ऐसा नहीं बस रूहानी प्यार था ।