देशभक्त गोडसे हैं गांधी गाली है ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया
कुछ भी कहना बेकार है इस सोच पर धिक्कार है हिंसा उनका धर्म है अहंकार ही अहंकार है कैसी बनी सरकार है जीहज़ूरी गुलामी अंधभक्ति पसंद सच मगर नहीं स्वीकार है। विरोध सहन होता नहीं सच से नहीं नाता कोई झूठ उनकी विरासत झूठ की जय जयकार है। कमाल की बात है उनको गर्व है गोडसे की तरह जो उनको पसंद नहीं उनको गोली मारने की बात खुलेआम करते हैं। फिर किसलिए अपनी कही बात से मुकरते हैं जब सामने सच खड़ा हो इल्ज़ाम और पर धरते हैं। गोडसे को मानते हैं गांधी से नफरत करते हैं मज़बूरी का दस्तूर निभाते समाधि पे फूल चढ़ते हैं। देशभक्ति उनके लिए सबसे बड़ा हथियार है जब उनकी अपनी सरकार है दंगों का कारोबार है शांति सिर्फ दिखावे को दिया छपने को इश्तिहार है। भीड़ बनकर निकलते हैं साथ पुलिस को लेकर चलते हैं ये लोग खुद अपने दुश्मन हैं ज़हर पीकर पलते हैं। दिल में गोडसे रहता है मुंह से गांधी कहते हैं सत्ता अगर नहीं हो तब छुपकर बिल में रहते हैं।
गोडसे की संतान सरकार से कहती है हमको छूट दो मिटा देंगे गांधीवाद की हस्ती तक जो सत्ता नहीं कर सकती जाने किस बात से डरती है। ऐसे गोडसे भक्तों पर कोई रपट लिखता नहीं इंसाफ़ बेबस खड़ा सब देखता कुछ भी पर करता नहीं। हैवान बनकर इंसान का मिटाना चाहते ज़मीं से नामो- निशां। नफरत की आग सत्ता की मनमानी दंगों की उनकी दास्तां उनको चाहिए ऐसा जहां जिस में नहीं आदमी का बाक़ी कोई निशां। जो सच के झंडाबरदार होने का दम भरते हैं गांधी को समझते हैं पैसा जेब अपनी भरते हैं लेकिन गोडसे के चाहने वालों से इतना घबराते हैं उनके लिए नफरत की चर्चा को देश की भलाई बताते हैं। गांधी कहां है कोई नहीं जानता गोडसे की बात आजकल कौन नहीं मानता। जीना है जय गोडसे की औलादों की बोलना है सत्ता का तराज़ू है गांधी से भारी पलड़ा गोडसे का है झूठ ही को सच कहना बंदरों का तोलना है। ये गोडसे के बंदर हैं बुरा देखते हैं बुराई सुनते हैं बढ़ चढ़ कर बुरा बोलते हैं। राज़ की बात नहीं है खुद गुनाह करने की बात खोलते हैं। उनके अपराध न्यायपालिका संविधान तक को नहीं समझ आते नहीं मुजरिम साबित हो कर कोई सज़ा पाते नहीं। न्यायधीश बन बैठे हैं इंसाफ कर पाते नहीं कौन चोर है कौन कोतवाल जानते हैं बतलाते नहीं। 11 बज गए हैं रस्म निभाते थे।
2 टिप्पणियां:
सामयिक सार्थक...गोडसे की विचारधारा का विधायक है जो छूट मानता है हिंसा करने की
सार्थक व्यंग्य।
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