जनवरी 22, 2021

अपनी निशानी छोड़ जा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       अपनी निशानी छोड़ जा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

कौन था कैसा था जब विदाई का समय हुआ हर कोई संवेदनशीलता दर्शा रहा था। कोरोना की ये गाथा युग युग तलक दुनिया भुलाना नहीं चाहेगी। जो विस्तार से लिख रहा बोलकर सभी को समझाना चाहता है डॉक्टर होने से उसका सबसे करीबी जानकार है। कोरोना से पास नहीं आना दूर नहीं जाना जैसा संबंध बन गया था। कोई महमान कितने दिन रहता है ये दुनिया चार दिन का मेला है हर कोई आता अकेला जाता भी अकेला है। ज़िंदगी बड़ा अजब झमेला है सामान सौ बरस का पल का नहीं भरोसा है महल दुमहले भरी तिजोरी साथ ले जाते नहीं इक पाई इक धेला है। खेल सभी ने अच्छी तरह खेला है उसकी तस्वीर लगती गीली मिट्टी का जैसे ढेला है। कोरोना बहुत उदास था आंसू बहा रहा था जाने लगा अपने कर्म पर पछता रहा था। बड़ी कोशिश मुश्किल से डॉक्टर ने उसकी निशानी रख ली थी शायद जब कभी फिर से मुसीबत खड़ी हुई उसी से उसका पता पूछेंगे। रोग जिसने दिया उसी से दवा पूछेंगे। न न करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे करना था इनकार मगर इकरार तुम्हीं से कर बैठे। गीत फ़िल्मी है मगर कोरोना कोरोना रटते रटते जाने क्या सूझा है उसको मिटाने की नहीं बचा कर रखने की बात करने लगे हैं। शायद मुहब्बत इसी को कहते हैं खुद अपने क़ातिल को बुलाते हैं ज़ुल्मी को गले लगाते हैं दिल में अपने बसाते हैं।
 
पहले अपना परिचय बताना ज़रूरी है कथावाचक कोई पंडित मौलवी पादरी धर्म उपदेशक नहीं खुद डॉक्टर साहब हैं। किसी भी टीके की ज़रूरत रोग के उपचार के लिए होना उचित है मगर ऐसा टीका हर कोई नहीं लगवा सकता है मगर जब कोई टीका रोग होने से पहले सभी को लगाना पड़ता है ताकि उनको रोग से बचाया जा सके तब विषय गंभीर होता है। ऐसा कितनी बार होता है कि जब तक बचाव का टीका बनाते हैं रोग ही ख़त्म हो चुका होता है इसलिए अब की बार जल्दी जल्दी टीका बनाया गया है ताकि शोध करने वालों का किया काम व्यर्थ नहीं चला जाये। आपको जानकर हैरानी होगी कि भविष्य में कोरोना के रोगाणु कभी ख़त्म नहीं होंगे क्योंकि उनकी ज़रूरत रोग से बचाव का टीका बनाने को रहेगी इस ज़रूरत की ख़ातिर उसको ज़िंदा सुरक्षित रखा जाएगा। शायद आपको भूल गई होगी ये खबर कि चीन की लैब से कोरोना दुनिया में फैला था जब उसको परखने वालों का उस पर काबू नहीं रहा था। हम तो आत्माओं तक पर काबू रखने वाले लोग हैं कोरोना हमसे भागकर जाएगा कैसे और कहां। अब जब इस टीका बनाने का महत्व और चर्चा हर कोई समझता है तब रोग के रोगाणु और रोग से बचाव का टीका दोनों को उपयोगी बनाने की खातिर हमेशा जीवित रखना होगा। 
 
दुनिया में कितने लोग आते हैं कुछ लोग अपनी यादें छोड़ जाते हैं उनकी कहानियां अनंत काल तक सभी दोहराते हैं। कोरोना अपनी आत्मकथा लिखने को कह गया है थोड़ा बताया ज़्यादा बाकी रह गया है। उसकी तस्वीर के टुकड़े जोड़ रहे हैं तार के साथ तार मिलाकर नहीं रत्ती भर भी छोड़ रहे हैं। हज़ारों साल से जिनको सबसे खतरनाक बड़ा गंभीर रोग समझते थे कोरोना ने सबकी छोटी औकात बना दी है। कितनी कहानियां कितने रोग पर क्या क्या अदाकारी क्या क्या अभिनय कितने किरदार निभाए हैं। आनंद का डायलॉग क्या नाम है जैसे किसी वायसराय का नाम हो बिमारी हो तो ऐसी , हम सब तो रंगमंच की कठपुलियां हैं जिसकी डोर उपरवाले के हाथ में है कब कौन कैसे उठेगा कोई नहीं जानता। कोई समय था तपेदिक को सबसे बड़ा समझते थे गब्बर सिंह की तरह दहशत होती थी मगर कैंसर जैसे रोग भी हर किसी के बस में आने लगे थे तब कोरोना ने आकर दुनिया भर में अपने नाम का परचम सभी से ऊंचा फहराया। विश्व का सबसे ताकतवर देश भी उसके नाम से थरथराया। हर किसी ने अपना अपना गणित लगाया कितना खोकर क्या क्या पाया। जिस ने भी कोरोना की दवा का नुस्खा इम्युनिटी बढ़ाने को बताकर खूब पैसा कमाया वो कभी अपनी करनी पर नहीं शर्माया। कोरोना छोड़ गया है उन सभी लोगों के भेस में अपना डरावना साया। 
 
कहां है दादी कहां है नानी सुने सुनाये नई कहानी। जब मर गया सबकी आंखों का पानी छोड़ गया कोरोना अपनी निशानी। दूध का दूध पानी का पानी। राजा जानी ओ राजा जानी। 
 

 
 

कोई टिप्पणी नहीं: