विवशता उपरवाले की ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
सबकी भलाई के लिए किसी ने कठिन तपस्या की और उपरवाले को मना लिया दुनिया के सभी इंसानों के दुःख दर्द परेशानियां ख़त्म कर सभी को सुखमय जीवन जीने को उचित व्यवस्था करने के लिए। बस धरती से तमाम चिंताओं समस्याओं का अंत करने का निर्णय करने से पहले विधाता ने इंसान से पूछा बताओ कुछ और चाहत बाकी तो नहीं। विश्व के सभी जीव जंतु खामोश थे ये जानकर कि उनको सभी कुछ मिलने वाला है और क्या मांगना उपरवाले से धन्यवाद करना चाहते थे कि तभी भारत देश का सत्ताधारी राजनेता सामने आकर कहने लगा कि हां मुझे थोड़ा और चाहिए अगर आप वचन निभाना चाहते हैं। ऊपरवाला हैरान था भला इसको पहले कितना कुछ मिला हुआ है अब और कितना क्या चाहता है भगवान बोले कि वचन की बात कहां से आई मैंने इतना पूछा है क्या कोई कमी रह गई है। राजनेता कहने लगा मुझे लगता है आपकी जगह मुझे भगवान बना दो तो मैं इस दुनिया को आपसे अच्छा बना सकता हूं। भगवान समझ गए ये इंसान कितना खतरनाक है इसको भगवान बनाया तो सबसे पहले मुझी को किनारे लगाना चाहेगा। बस इक मतलबी राजनेता की बढ़ती हवस को भांपकर उपरवाले ने अपना इरादा बदल दिया ये समझ कर कि इंसान को ऊंचे पद और उसकी काबलियत से बढ़कर अधिकार देने से उसकी इंसानियत ही नहीं बचेगी और इंसान तो इंसान वो भगवान को भी मिटाने की सोच और मानसिकता पालता है। धर्मराज ने भी भगवान को सचेत किया था कि जिनको आपने शासक और ताकतवर बनाया है और जिनको आपने धन दौलत सभी कुछ देकर बड़े बड़े दौलतमंद उद्योगपति कारोबारी बनाया है उनकी चाहत है भूखे गरीब लोगों से उनका रोटी का निवाला भी छीनकर उनको अपना गुलाम बनाकर उन पर शासन करना।
ये देख कर तपस्या करने वाले समाज और दुनिया की भलाई चाहने वाले हैरान हैं उनको अफ़सोस होने लगा है ये कैसे लोग सत्ता पर बैठे हैं उन्होंने देश की आज़ादी और संविधान की व्यवस्था इसलिए तो हर्गिज़ नहीं की थी। आज़ादी और संविधान को उन्होंने अपने निहित स्वार्थ पूरे करने को अनुचित उपयोग किया है और अब इंसान बनकर रहने की जगह इंसानियत को भुलाकर ज़ुल्म कर के भी ज़ालिम कहलाना नहीं चाहते मसीहा कहलाने की ज़िद रखते हैं। गरीब लोगों को ज़हर पिलाना चाहते हैं अमृत का नाम देकर। भगवान की दुविधा बढ़ गई है जब नारद मुनि जी ये बतला रहे हैं कि यही लोग आपके सबसे बड़े भक्त समझे जाते हैं। विधाता को अब ध्यान आया है कि ये कलयुग है और शायद घोर कलयुग है जिस में कौवा मोती चुगता है हंस चुगेगा दाना दुनका गीत के बोल सच हो रहे हैं राम जी कह गए सिया जी से ऐसा कलयुग आएगा। भव्य राममंदिर बनवाया जायेगा लेकिन भगवान राम कभी बनवास से लौटकर नहीं आएगा शासन उनके नाम पर कोई और चलाएगा। चुनाव आयोग सर्वोच्च न्यायालय देखते रह जाएंगे सत्ताधारी अपनी मनमानी करते जाएंगे बड़े बड़े पदों पर निर्वाचित लोग नहीं मनोनीत लोग बैठ कठपुतली का नाच दिखाएंगे। लोग झंडा फहराएंगे तालियां बजाएंगे झूमेंगे गाएंगे दुनिया को उल्लू बनाएंगे मेरा हिन्दुस्तां गाकर सुनाएंगे। भगवान इंसान की गलती की सज़ा देता है माफ़ी भी कभी मगर खुद उसने इतनी बड़ी भूल कैसे की है कलयुग में झूठ को सिंहासन पर बिठाकर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें