नेगिटिव अच्छा पॉज़िटिव ख़राब ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
बाकी ज़माने दुनिया वालों विश्व के तमाम देशों को जो बात कोरोना ने आकर समझाई हमारे देश में किसी को बहुत पहले समझ आ गई थी। उन्होंने नेगेटिव होना पसंद किया और उनको अच्छा लगा जैसे कोई ख़लनायक डायलॉग बोलता है डरना चाहिए उनका डर हो ये अच्छा है। मगर उनको ये बात यूं ही समझ नहीं आई उन्होंने ध्यान पूर्वक देखा समझा तभी अपनाया इस नकारात्मकता के महान विचार को अपना आदर्श बनाकर तमाम लोगों को उल्टी पढ़ाई नफरत की पढ़वा कर अपना अनुयायी ही नहीं अपना अंधभक्त बना दिया। जितने भी बड़े बड़े राजनेता देश के उनसे पहले हुए उन्होंने भले देश समाज के लिए कितने ही सराहनीय कार्य किये कुछ समय बाद सभी ने उनकी अच्छाई को भुला दिया लेकिन उनसे जो जो भी गलतियां हुईं गलत कदम अनुचित आचरण या मनमर्ज़ी के फैसले किये उनको किसी ने कभी भुलाया नहीं कभी माफ़ नहीं किया। बस किसी के दामन पर कोई दाग़ कोई छींटा पड़ गया तो किसी भी आयोग या न्यायपालिका के निर्दोष घोषित करने से उनकी दाग़दार चादर चमकदार सफ़ेद हो नहीं पाई मैली चादर लेके उनको उस दुनिया में जाना पड़ा। मगर बाद मरने के क्या होगा इसकी चिंता वो लोग कभी नहीं करते जिनको जब तलक हैं मौज करना पसंद है। शायद ऐसा पहली बार हुआ कि कोई सत्ताधारी शासक बाद में हमेशा इतिहास में मशहूर होकर रहने को नेगटिविटी की अहमियत को समझ कर इस राह पर चलने और आलोचना निंदा की परवाह छोड़ आगे बढ़ता जा रहा है चलता चले जा रहा है।
हज़ार साल तक लोग याद रखेंगे उनके झूठे वादों के कीर्तिमान बनाने को। अच्छे दिन लाने की बात का असर ऐसा है कि कोई कभी भविष्य में उनकी मांग तो क्या सपने में भी चाहत नहीं करेगा। ये शब्द रात को सपने में सुनकर लगता है जैसे डरावना ख़्वाब था जो ख़त्म होने को ही नहीं है। लोग प्यार को भूल जाते हैं मार याद रहती है बचपन से बुढ़ापे तक। क्या खूबसूरत कमाल करते हैं जनाब अपने करम गिनवाते हैं उंगलियों पर जबकि उनके ज़ुल्मों-सितम का कोई हिसाब ही नहीं। ये शब्द किसी शायर की ग़ज़ल के हैं और ये आगे भी जाने किस शायर की कही बात है कि , वो अगर ज़हर देता तो सबकी नज़र में आ जाता , तो यूं किया कि मुझे वक़्त पर दवाएं नहीं दीं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ जो हुआ उसकी कल्पना शायर क्या कोई नहीं कर सकता क्योंकि उसने जानकर इरादतन गलत दवाएं देने जैसा काम किया। ऐसे ऐसे निर्णय अकेले अपनी मनमानी से किये बिना जानकर लोगों से सलाह मश्वरा किये कि देश की व्यवस्था संविधान और सभी न्याय और सुशासन देने को स्थपित अंग बेकार और बेमानी हो कर रह गए।
उनकी सोच कोरोना की तरह है नेगेटिव होना अच्छी बात लगती है पॉज़िटिव कोई होना नहीं चाहता। पल पल गिनती जारी है कितने पॉज़िटिव अभी बाक़ी हैं सबको नेगेटिव करना लक्ष्य है। बताया जा रहा है इक टीका ईजाद किया जा रहा है सभी को रोग के रोगाणु का इंजेक्शन दिया जाएगा जिस से उनके शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता विकसित होगी कितने समय को अभी पता नहीं है। लेकिन तत्वज्ञानी विचार व्यक्त कर रहे हैं कि पिछले दिनों के सोशल मीडिया पर देखे परिणाम साबित करते हैं कि नकारात्मक राजनीति का असर आने वाली पीढ़ियों तक कायम रहेगा। इतना ही नहीं उच्च शिक्षित बड़े बड़े पदों पर नियुक्त लोग भी विवेकहीनता का शिकार होकर नेगेटिव विचारधारा को बढ़ावा देकर जिस शाख पर बैठे हैं उसी को काटने का काम करने को देश और समाज की भलाई कह कर कर रहे हैं। नेगेटिव होना इतना अच्छा पहले कभी नहीं लगता था।
2 टिप्पणियां:
बिल्कुल सटीक।
धारदार लेख👌
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