देश अपना तबाह कर बैठे ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
लोग कैसा गुनाह कर बैठे , देश अपना तबाह कर बैठे। राजनेताओं अधिकारी वर्ग न्यायपालिका धर्म की दुकानदारी करने वालों फ़िल्म टीवी मीडिया अख़बार यहां तक कि तथाकथित लिखने वाले पढ़े लिखे साहित्य की समाज की बात और सच का आईना दिखलाने का दावा करने वालों के भटकने की ही बात नहीं है। ये हम लोग हैं जिन्होंने अपने देश को समाज को इन सभी के रहमो करम पर छोड़ दिया है ये देश को व्यवस्था को बर्बाद करते रहे और हम सभी मूक दर्शक बनकर तमाशा देखते रहे कुछ भी नहीं किया खुद अपने देश और समाज को सुरक्षित रखने की खातिर। अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत। ये अपने कर्तव्य से विमुख होने को दोष उनको देकर दिल को झूठी तसल्ली दिलासा देना है अपनी भूल को समझते तो इसको कभी होने नहीं देते और हो गया तो ठीक करने को बहुत कुछ कर सकते थे। चलो आज खुद अपनी बात पर विचार करते हैं।
जिनकी महानता की बात की जाती है जिन्होंने देश को आज़ाद करवाने को जीवन अर्पण किया तन मन धन सभी न्यौछावर करने के बाद बदले में कुछ चाहते नहीं थे उनके आदर्श उनकी कुर्बानी को हमने जाना नहीं समझा नहीं। हमने सूरज में धब्बा ढूंढने का काम किया उनके देश जनता से प्यार को समझने की बात छोड़ उनकी गलतियां तलाश करते रहे। अपने माता पिता पूर्वजों की बुराई करना सबसे बड़ा अपराध है क्योंकि ऐसा करते हुए हम भूल जाते हैं कि आज जिस ऊंचाई पर खड़े हैं उस ईमारत की बुनियाद उन्हीं से बनी है। और हमने क्या किया केवल अपने मतलब अपने फायदे खुदगर्ज़ी को महत्व देते रहे। देश समाज को दरकिनार किया उसके लिए अपने फ़र्ज़ की नहीं बस अधिकार की चिंता की , समझदार मानते हैं खुद को इतना नहीं सोचा समझा कि जिस पेड़ की छांव चाहते हैं जिस से फल खाने को व्याकुल हैं उस की देखभाल सुरक्षा कोई और नहीं करेगा।
दो तरह के लोग होते हैं एक जो देश समाज को सभी देकर गर्व से सीना उठाकर चलते हैं जिनको मालूम होता है यही उनकी सफलता है सार्थक जीवन देश जनता समाज को लेकर अपना कर्तव्य निभाने का मतलब जानते हैं। उनको सत्ता की धन दौलत की ताकत की ज़रूरत होती ही नहीं उनकी ताकत उनके जीवन का निस्वार्थ निडरता से कर्तव्यपथ पर चलना होता है। शोहरत की कामना करते ही नहीं उनकी शोहरत उनके आचरण से खुद होती है और ऐसी शोहरत उनके बाद भी रहती है कोई उन पर कितने झूठे आरोप लगाए वास्तविकता सभी जानते हैं। वास्तविक अच्छे महान लोगों की बुराई उनको छोटा करने की कोशिश करने वाले लोग खुद बेहद बौने होता हैं जिनको लगता है कि पहाड़ की ऊंचाई पर खड़े होने से उनका कद बड़ा लगता है जबकि असलियत ये है कि पहाड़ पर खड़े व्यक्ति और भी बौने लगते हैं। किसी को छोटा कर के आप बड़े नहीं बन सकते हैं। बड़े लोग अपनी बढ़ाई नहीं करते हैं।
अपने हमने सोचना है किस को अपना आदर्श समझते हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जिनका जन्म दिन 11 अक्टूबर को है जिन्होंने जीवन भर गांधीवादी विचारधारा पर चलने का काम किया और अपने निजी रिश्तों से अधिक महत्व देश समाज को देने का काम करते रहे। तानाशाही का विरोध किया आपात्काल के बाद दुष्यंत कुमार के शब्दों में " एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यूं कहो , इस अंधेरी कोठरी में एक रौशन-दान है "। मगर इस से बढ़कर विडंबना की बात क्या हो सकती है कि जिसने जीवन में कितनी बार सत्ता के बड़े बड़े पदों को ठुकरा कर जनसाधारण की बात की और देश को नई दिशा दिखलाई हमने उनको भुला दिया है। गांधी जी लालबहादुर जी के जन्म दिन भी 2 अक्टूबर को थे उनकी सोच को सादगी को भी हमने नहीं समझा उन्होंने कभी अपनी खातिर कुछ सत्ता धन का लोभ नहीं रखा। आज हम उनको महान बताने लगे हैं जिनको सत्ता दौलत ताकत ऐशो-आराम देश की जनता की समस्याओं से अधिक ज़रूरी लगते हैं।
हम क्या कर सकते हैं कहकर बचना उचित नहीं है। तमाम अनुचित कार्य तानाशाही मनमानी करने वाले नेताओं का गुणगान खुद अपने ही देश से कपट करना है। जिन अपराधी घोटालेबाज़ सत्ता का इस्तेमाल अपने मकसद से करने वालों ने देश की दुर्दशा की है उनको किस ने सत्ता पर बिठाया है और इतना ही नहीं हम लोग शासक वर्ग नेताओं अधिकारी लोगों के अहंकारी और कर्तव्य नहीं निभाने ईमानदार नहीं होने की बात को उनकी असलियत को समझने के बाद भी उनके सामने नतमस्तक होकर खड़े होते हैं जो देश के गुनहगार हैं उनके पक्ष में खड़े होना है। अगर उनकी गलत नीतियों का विरोध करने का साहस नहीं भी है तो उनकी जय जयकार और समर्थन करने का काम तो नहीं कर सकते हैं।
कुछ नहीं बहुत कुछ अभी रह गया है कहना है जल्दी ही आगे लिखना होगा। आखिर में इक ग़ज़ल का मतला अभी लिखनी है रचना आपके सामने पेश है।
2 टिप्पणियां:
सच है।
उपयोगी आलेख।
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