सपनों के सौदागर लोग ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
आपको क्या चाहिए स्वर्ग धरती पर लाने चांद तारे तोड़ लाने के वादे आशिक़ से बढ़कर जान हाज़िर है कहने वाले भाषण में सभी कहने के बाद याद नहीं रखने की आदत राजनेताओं की पहचान यही है। देश की खातिर जीने मरने संविधान की शपथ न्याय का संकल्प सब औपचारिकता की तरह निभाते हैं इन का अर्थ उनको नहीं मालूम। सरकारी अधिकारी कर्मचारी कर्तव्य निभाने की कसम खाते हैं फ़र्ज़ को छोड़ सत्ता का उपयोग अधिकार हासिल कर मनमानी करते हैं। देशभक्ति देशसेवा जनता की समस्याओं का निदान उनकी चिंता का विषय नहीं होते हैं ये झंडा फहराने के बाद केवल लिखा लिखवाया भाषण दोहराना होता है हर बार। उनकी ईमानदारी की बात ईमान से कही जाती नहीं है।
आपने फ़िल्म नाटक में किरदार निभाते अदाकार को कितना साहसी कितना सच्चा कितना भलेमानुष का अभिनय कितनी लाजवाब शैली में देख कर तालियां बजाईं और वाह वाह की होगी। उनको खुदा नहीं खुदा से ऊंचा दर्जा देते हैं वास्तव में वही अभिनेता समाज में जीवन जीता है साधारण व्यक्ति की तरह धन पैसा दौलत शोहरत हासिल करने को लालायित और जितना भी मिले अधिक पाने की हवस रखता बेहद गरीब धर्म के अनुसार धनपशु होना। कलाकार संगीतकार समाज को दिशा दिखलाने का नहीं भटकाने का कार्य करते हैं। शिक्षक जब ज्ञान देने की जगह शिक्षा का व्यौपार करने लगते हैं तब पढ़ने वाले डॉक्टर बनकर भी स्वास्थ्य को बढ़ावा देने को छोड़ रोग को उपचार से अधिक धन अर्जित करने का साधन समझते हैं।
धर्म उपदेशक धर्म की बात करते हैं धर्म की राह नहीं चलते , उनका आचरण उनकी बताई समझाई शिक्षा के विपरीत होता है। जिन धार्मिक किताबों उनमें वर्णित महान साधु संतों की वाणी का वर्णन करते हैं उनका पालन खुद करना तो क्या उनको समझते तक नहीं हैं। धर्म के नाम पर संचय और अपने स्वार्थ सिद्ध करने पर ध्यान देते हैं। अख़बार टीवी चैनल जिनका फ़र्ज़ था झूठ को बेनकाब करना सच को सामने लाना वो सबसे अधिक मार्ग से भटके लोग झूठ अधर्म अनीति और स्वार्थ की राजनीति से तमाम अन्य अनुचित आचरण करने वालों का साथ देते हैं झूठ का गुणगान और सच के क़ातिल बनकर अपने टीआरपी विज्ञापन के मोहजाल में अंधे हैं।
रिश्ते नाते संबंध सभी मतलब और ज़रूरत के हिसाब से बदलते हैं कहने को अपनत्व वास्तव में बुरे समय कोई किसी के साथ खड़ा नहीं होता है। कहने को शादी विवाह या अन्य अवसर पर भीड़ नज़र आती है मगर मन से भावना से किसी का कोई लगाव नहीं होता है। ख़ास अपने लोग आपको ऊंचा बढ़ाने नहीं नीचा दिखाने को मौके की तलाश में रहते हैं। दोस्ती की बात कैसे छोड़ सकते हैं फेसबुक दोस्ती का मंच होता था जो आजकल बदल कर मतलब की बात से खुद अपने फ़ायदे और गुणगान का स्थान बन गया है। लगता है हम दिन में जागते हुए सपने देखते हैं बड़े खूबसूरत सुहाने ख़्वाब जो टूटने को ही होते हैं।
अब लगता है दुनिया समाज कोई फूलों का चमन नहीं बस इक वीराना है कांटों भरा इक रेगिस्तान जिस में तपती लू और धूप में कहीं कोई पेड़ नहीं छाया देने को। लेकिन सभी ने इसको नकली कागज़ के फूलों से पत्थर से बने शानदार महलों में बनवटी सजावट से दिखाने को खुशनुमा बना दिया है। कौन है जो झूठे छलने वाले सपनों का सौदागर नहीं है। किसी काम की नहीं है आपकी ये दुनिया जिसका वास्तव में कोई वजूद ही नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें